मानव तस्करी एक प्रकार का अपराध है, जिसमें किसी मानव को खरीदा और बेचा जाता है। खरीदे जाने के बाद उसका इस्तेमाल मुफ्त में आजीवन मजदूरी कराने,उसके शरीर के अंगों को बेचने एवं अन्य लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है। इनमें इंसानों को मुख्य रूप से औरतों और बच्चों को खरीदा और बेचा जाता है। मानव तस्करी को मानव के खिलाफ अपराध के रूप में माना जाता है,क्योंकि इससे पीड़ित अपने अधिकारों से वंचित हो जाता है। खास बात यह है कि निर्भया मामले के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी ने 2013 में कानून में हुए बदलाव के दौरान इस धारा को और सशक्त बनाते हुए जबरिया मजदूरी, बंधुआ मजदूरी या अंग प्रत्यारोपण के लिए किसी व्यक्ति या बच्चे को बहला फुसलाकर,धोखा देकर, प्रलोभन देकर या जबरदस्ती करके उसका शारीरिक या मानसिक शोषण करना भी इसमें जोड़ दिया। गृह मंत्रालय ने इसी क्रम में एक एडवाइजरी जारी करते हुए बाल श्रम या बंधुआ श्रम के मामलों में भी इस धारा के अंतर्गत नियोक्ताओं, तस्करों और दलालों पर कार्रवाई करने के लिए सभी राज्यों को पत्र लिखा। यदि किसी बच्चे को जबरन मजदूरी या बाल श्रम के लिए किसी एक जगह से ले जाकर दूसरी जगह उसका शोषण किया जा रहा है तो कम से कम 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। यदि मालिक एक से अधिक बच्चों को लाकर काम करवा रहा है तो 14 साल से अधिक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। यदि हम राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की 2020 में प्रकशित भारत में अपराध रिपोर्ट पर नजर डालें तो वर्ष 2020 में देश में 4709 लोग मानव दुर्व्यापार का शिकार बने। इनमें से 2222 बच्चे थे, जिनमें 845 लड़कियां थीं और 1377 लड़के. सबसे ज्यादा 815 बच्चे राजस्थान में ह्यूमन ट्रैफकिंग का शिकार बने, जिनमें 53 लड़कियां थीं और 762 लड़के। झारखंड में 114 बच्चे मानव तस्करी का शिकार बने, जिनमें 98 लड़कियां थीं और 16 लड़के। अच्छी बात यह है कि जिन राज्यों में मानव दुर्व्यापार के मामले बढ़े हैं, वहां पुलिस ने ऐसे मामलों में सुसंगत धाराओं में अपराध दर्ज करने की एक अच्छी पहल शुरू की है पर दुखद तथ्य यह है कि वर्ष 2020 में इस अपराध के लिए 4966 लोगों को अरेस्ट किया गया, जिनमें से 3661 के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और सिर्फ 101 लोगों को ही सजा हुई। रिपोर्ट के अनुसार 1452 लोगों को जबरिया मजदूरी के लिए, 1466 को वेश्यावृत्ति के लिए, 46 को घरेलू दासता और 187 को जबरन शादी के लिए ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार बनाया गया। गत 21 जुलाई को अमरीका के विदेश मंत्रालय ने ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स 2022 नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में दुनिया भर के देशों को मानव दुर्व्यापार रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के आधार पर विभिन्न पायदानों पर रखा गया है। भारत को टियर 2 में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि देश में मानव दुर्व्यापार रोकने के महत्वपूर्ण प्रयास तो किए जा रहे हैं पर वो अभी इसे खत्म करने के जो न्यूनतम मानक हैं उस पर पूरी तरह खरे नहीं उतरते हैं। रिपोर्ट में ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों द्वारा मानव तस्करी निरोधी इकाइयों के मद में पैसा बढ़ाने और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा अतिरिक्त इकाइयां बनाने के लिए आदेश जारी करने जैसे प्रयासों की सराहना की गई है पर मानव दुर्व्यापार के मामलों में 89 प्रतिशत लोगों के कोर्ट से छूट जाने को लेकर चिंता प्रकट की है। इस रिपोर्ट में बंधुआ मजदूरी सहित मानव दुर्व्यापार के सभी मामलों में जांच, अभियोजन और सजा दिलाने और शिकार हुए लोगों को मुआवजा दिलवाने के लिए बेहतर और समन्वित प्रयास की आवश्यकता बतलाई गई है। इसकी रोकथाम के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक का मसौदा दो साल पहले जारी किया था। इस विधेयक को सदन में लाने और पारित करने की मांग नोबल पुरस्कार प्राप्तकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पदमश्री सुनीता कृष्णन जैसे लोग कई बार कर चुके हैं। संसद के चल रहे मानसून सत्र में जिन विधेयकों को सरकार लाने जा रही है, उसमें ये विधेयक भी शामिल है। यदि ये विधेयक इस सत्र में दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए पहुंच जाता है तो मानव दुर्व्यापार खत्म करने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा।
मानव तस्करी और विधेयक
