भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र यहां के लोगों के स्वभाव में है। फिलहाल हम अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। ऐसे वक्त में देशभर में कई तरह की बहस चल रही है, इसमें वर्तमान मोदी सरकार को  लेकर भी बहस जारी है। विपक्षी पार्टियां अक्सर आरोप लगाती हैं कि वर्तमान सरकार भारतीय लोकतंत्र और देश के संविधान को कमजोर कर रही है। ऐसे में विपक्ष ने संविधान बचाओ अभियान तक शुरू कर दिया है।  पक्ष-विपक्ष के इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच हमें यह जानना जरूरी है कि आखिरकार हमारा देश कैसे चलता है? उल्लेखनीय है कि भारत की राजनीति संविधान के ढांचे में काम करती है जहां पर राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है और प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। भारत एक संघीय संसदीय और लोकतांत्रिक गणतंत्र है। यह एक द्वि-राजतंत्र का अनुसरण करता है अर्थात केंद्र में एक केंद्रीय सत्ता वाली सरकार और परिधि में राज्य सरकारें। संविधान में संसद के द्विसदनीयता का प्रावधान है, जिसमें एक ऊपरी सदन (राज्य सभा)जो भारतीय संघ के राज्य तथा केंद्र-शासित प्रदेश का प्रतिनिधित्व करती है और निचला सदन (लोक सभा) जो भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करती है। शासन एवं सत्ता सरकार के हाथ में होती है। संयुक्त वैधानिक बागडोर सरकार एवं संसद के दोनों सदनों, लोकसभा एवं राज्यसभा के हाथ में होती है। न्याय मंडल शासकीय एवं वैधानिक दोनों से स्वतंत्र होता है। संविधान के अनुसार भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक देश है, जहां पर सरकार जनता के द्वारा चुनी जाती है। अमरीका की तरह भारत में भी संयुक्त सरकार होती है, लेकिन भारत में केंद्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जो कि ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है। बहुमत की स्थिति में न होने पर सरकार न बना पाने की दशा में अथवा विशेष संवैधानिक परिस्थिति के अंतर्गत केंद्र सरकार राज्य सरकार को हटा सकती है और सीधे केंद्रीय शासन लागू कर सकती है, जिसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है। भारत का पूरा राजनीति खेल मंत्रियों के द्वारा निर्धारित होता है। यह एक लोकतांत्रिक, धार्मिक और सामुदायिक देश है, जहां युवाओं में चुनाव का बड़ा वोट केंद्र भारतीय राजनीति में बना रहता है यहां चुनाव को लोकतांत्रिक पर्व की तरह मनाया जाता है। भारत की राजनीति जिसमें सभी व्यक्ति को समानता अधिकार प्रदान करने के लिए चुनाव होता है,परंतु फिलहाल चुनावी गणित को सामने रखकर चुनाव लड़ा जाता है। परिणामत:आज उम्मीदवार बहुमत से नहीं,बल्कि चुनावी गणित के आधार पर चुनाव जीत रहे हैं। ऐसे में एक-तिहाई या एक चौथाई वोट पाकर भी उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं। इसलिए आजकल राजनीतिक पार्टियां राजनीतिक वैज्ञानिक के दिशा-निर्देश में चुनाव लड़ रही हैं और अपने क्षेत्र में डमी कैंडिडेट खड़ा करवाकर अपने प्रतिद्वंद्वी की दावेदारी को कमजोर कर रही हैं। दूसरी ओर राजनीतिक दलों की ओर से लगातार लोक-लुभावन वादे कर चुनाव जीते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री लगातार ऐसे वादों और ऐसी संस्कृति  पर अंकुश लगाने पर जोर दे रहे हैं। हम इससे इंकार नहीं कर सकते कि राजनीतिक दलों की ओर से मतदाताओं को की जाने वाली पेशकश समय के साथ बदलती रहती है। निश्चित तौर पर लोकलुभावन मांग और इससे जुड़े निर्णय नए नहीं हैं लेकिन इस बात पर बहस हो सकती है कि दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था पर इनका क्या असर होगा। राजनीतिक दलों को इस प्रकार के वादे करने से कोई नहीं रोक सकता। कांग्रेस पार्टी ने 2019 के आम चुनाव में यह वादा किया था कि देश के सर्वाधिक गरीब 20 फीसदी परिवारों को सालाना 72,000 रुपए की राशि दी जाएगी। किसी लक्षित समूह को नकदी हस्तांतरण करने में कुछ भी गलत नहीं है। बल्कि इसे सब्सिडी के बजाए समर्थन का बेहतर तरीका माना जाता है।