संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले वर्ष यानी 2023 में भारत की जनसंख्या पड़ोसी देश चीन से ज्यादा हो जाएगी। अभी चीन की जनसंख्या 1 अरब 40 करोड़ से ज्यादा है, जबकि भारत की जनसंख्या इस आंकड़े के नजदीक पहुंच गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 15 नवंबर 2022 तक दुनिया की जनसंख्या लगभग 8 अरब तक पहुंच जाएगी, जबकि वर्ष 2011 में यह संख्या केवल 7 अरब थी। वर्ष 2030 तक दुनिया की जनसंख्या 8.5 अरब तथा 2050 तक कुल आबादी लगभग 10 अरब हो जाएगी। अगर जनसंख्या की रफ्तार को नियंत्रित नहीं किया जा सका तो भविष्य में कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। एशिया, अफ्रीका एवं लातिन अमरीका में दुनिया की ज्यादा आबादी रहती है। एशिया में दुनिया की कुल आबाद का 59 प्रतिशत, अफ्रीका में 17 प्रतिशत, यूरोप में 10 प्रतिशत, लातिन अमरीका 5 प्रतिशत आबादी रहती है। ऐसे देशों में बढï़ती जनसंख्या के कारण आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में समस्याएं सामने आ रही हैं। भारत में भी बढ़ती जनसंख्या के कारण चुनौती बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि बढ़ती आबादी के कारण असंतुलन पैदा हो रहा है। भारत के पास विश्व का 2.4 प्रतिशत भू-भाग है, जबकि 18 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। भू-भाग और जनसंख्या के अनुपात का विश्लेषण करने पर ऐसा लगता है कि अब यहां जनसंख्या नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पड़ गई है। बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजगार की समस्या पैदा हो रही है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग रोजगार के लिए शहरी क्षेत्र की ओर पलायन कर रहे हैं। गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्या जनसंख्या की ही देन है। ऐसी स्थिति में सरकार के साथ-साथ समाज को भी आगे आने की जरूरत है। शिक्षित अनुशासित समाज जनसंख्या को नियंत्रित करने के प्रति ज्यादा सजग होगा। भावी पीढ़ी को भी राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति गंभीर होना होगा। आसपास के क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। जनसंख्या बढऩे से देश के संसाधनों पर लगातार बोझ बढ़ता जा रहा है। भारत में भी इसके नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने का समय आ चुका है। सरकार तथा विपक्ष को जनसंख्या को धार्मिक चश्मे से देखने की जरूरत नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए जाति एवं धर्म से अलग हटकर पहल करने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गय तो भविष्य स्थिति और विस्फोटक हो सकती है। इसके लिए समाज को सजग रहना पड़ेगा। आज देश में बेरोजगारी चरम पर है। महंगाई आसमान छू रही है। कोरोना फैलने का खतरा बरकरार है। ऐसी स्थिति में जनसंख्या बढऩे से संसाधनों की और कमी होगी। जलवायु परिवर्तन एवं अन्य चुनौतियों को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण को राष्ट्रीय मिशन के रूप में आगे बढ़ाना होगा। हालांकि वर्ष 2000 के बाद दुनिया की जनसंख्या में पहले के मुकाबले गिरावट आई है। चूंकि भारत में जनसंख्या बढऩे की रफ्तार तेज है, इसको लेकर सरकार को कुछ ऐसे कानून बनाने की जरूरत है जिससे इस पर काबू पाया जा सके। असम तथा उत्तर प्रदेश में इस दिशा में कुछ ठोस एवं कड़े कदम भी उठाए गए हैं। देश के राजनीतिज्ञों द्वारा जाति एवं धर्म के आधार पर हर क्षेत्र में भागीदारी की मांग की जा रही है। देश के राजनेता इस मुद्दे को उछाल रहे हैं। राष्ट्र के व्यापक हित को देखते हुए सरकार एवं विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा, तभी जाकर इस क्षेत्र में ठोस सफलता मिलेगी।