इन दिनों दो करोड़ बीस लाख की आबादी वाला श्रीलंका वित्तीय और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। ऐसे में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। इसी कड़ी में श्रीलंका के नागरिक पिछले 24 घंटे से राष्ट्रपति भवन पर कब्जा जमाए बैठे हैं। एक दिन पहले ही राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोडक़र भाग गए हैं। रविवार को दूसरे दिन सुबह से भीड़ के आने और जाने का क्रम बना हुआ है।  मैन गेट पर बंदूक लिए सुरक्षाबल तैनात हैं। मगर वे किसी को रोक नहीं पा रहे हैं। राष्ट्रपति भवन को नागरिकों ने टूरिस्ट स्पॉट बनाकर रख दिया है। उल्लेखनीय है कि साल 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से इस वक्त सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहे इस देश में महंगाई के कारण बुनियादी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए विदेशों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में ली। बढ़ते कर्ज के अलावा कई दूसरी चीजों ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर चोट की,जिनमें भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मानव निर्मित तबाही तक शामिल है,इसमें रासायनिक उर्वरकों पर सरकार का प्रतिबंध शामिल है, जिसने किसानों की फसल को बर्बाद कर दिया। वर्तमान में स्थितियां 2018 में बदतर हो गई है,जब राष्ट्रपति के प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने के बाद एक संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था। इसके एक साल बाद 2019 के ईस्टर धमाकों में चर्चों और बड़े होटलों में सैंकड़ों लोग मारे गए और 2020 के बाद से कोविड-19 महामारी ने प्रकोप दिखाया। अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने करों में कटौती की एक नाकाम कोशिश की,लेकिन ये कदम उल्टा पड़ गया और सरकार के राजस्व पर बुरा असर पड़ा। इसके चलते रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका को लगभग डिफॉल्ट स्तर पर डाउनग्रेड कर दिया,जिसका मतलब कि देश ने विदेशी बाजारों तक पहुंच खो दी। सरकारी कर्ज का भुगतान करने के लिए फिर श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का रुख करना पड़ा, जिसके चलते इस साल भंडार घटकर 2.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2018 में 6.9 बिलियन डॉलर था। इससे ईंधन और अन्य जरूरी चीजों के आयात पर असर पड़ा और कीमतें बढ़ गईं। इन सबसे ऊपर सरकार ने मार्च में श्रीलंकाई रुपया फ्लोट किया यानी इसकी कीमत विदेशी मुद्रा बाजारों की मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित की जाने लगी। ये कदम मुद्रा का अवमूल्यन करने के मकसद से उठाया गया ताकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज मिल जाए। हालांकि अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट ने आम श्रीलंकाई लोगों के लिए हालात और खराब कर दिए। श्रीलंका में आम लोगों के लिए स्थितियां बहुत बुरी हो गई हैं।  लोगों को बुनियादी सामान के लिए घंटों तक लाइन में लगना पड़ रहा है और वो भी उनको एक सीमित मात्रा में मिल रहा है। हाल के हफ्तों में दुकानों को बंद करना पड़ा है, क्योंकि फ्रिज, एयर कंडीशनर या पंखे नहीं चला सकते हैं। लोगों को गैस स्टेशनों पर टैंक भरवाने के लिए घंटों गर्मी में खड़ा होना पड़ रहा है, इन लोगों को संभालने के लिए गैस स्टेशनों पर सैनिकों को तैनात किया गया है। इंतजार करते-करते कुछ लोगों की जान भी चली गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि ब्रेड के दाम दोगुने हो गए हैं, जबकि ऑटो रिक्शा और टैक्सी चालकों का कहना है कि सीमित मात्रा में मिल रहा ईंधन बहुत कम है। कुछ लोगों के लिए हालात और बुरे हैं। उन्हें अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम भी करना है और सामान लेने के लिए लाइनों में भी लगना पड़ रहा है। मध्यम वर्ग के जिन लोगों के पास अपनी सेविंग्स हैं वो भी परेशान हैं, उन्हें डर है कि उनकी दवाइयां या गैस खत्म हो सकती है। कुल मिलाकर श्रीलंका की स्थिति सबसे बदतर स्थिति से गुजर रही है। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार की ओर से जिस स्तर पर कार्य करने की जरूरत थी,वैसा नहीं किया गया। नतीजतन लोग परेशान हाल हैं और उनका गुस्सा सरकारी तंत्र के खिलाफ है,जो पूरी तरह से स्वाभाविक है। फिर भी,लोगों को किसी भी तरह की हिंसा से बचने की जरूरत है। कारण कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है।