भारत में पुनः कोरोना मामलों का बढ़ना न केवल चिंताजनक है,बल्कि दुखद भी है। कोरोना का डर जब कम हो गया है,तब संक्रमण के नए आंकड़े तनाव बढ़ाने लगे हैं। फिलहाल महाराष्ट्र और दिल्ली में इसका प्रभाव सर्वाधिक है, परंतु धीरे-धीरे इसका प्रसार असम सहित पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी दिखने लगा है। असम में इसका सर्वाधिक असर गुवाहाटी में दिख रहा है। रोगियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। फिलवक्त इससे मौत की कोई खबर नहीं है, फिर भी रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी जारी है। उल्लेखनीय है कि विशेषज्ञ बार-बार कहते रहे हैं कि कोरोना महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। यह हर 4-6 महीने में एक बार सिर उठाती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार सभी देशों के लिए जरूरी है कि वे अपने नागरिकों को वैक्सीन की बूस्टर डोज दिलवाएं। खासतौर पर ज्यादा उम्र वाले लोगों को तीसरी खुराक लगनी बहुत जरूरी है। विशेषज्ञ अकसर आगाह करते रहे हैं कि जिन लोगों में संक्रमण की आशंका ज्यादा है, उनके लिए बूस्टर खुराक बहुत ही जरूरी है। क्या अब हर चार-छह महीने पर कोरोना की एक लहर आती है या आएगी? इसी साल जनवरी-फरवरी में तीसरी लहर आई थी,उसके पहले विगत वर्ष अप्रैल-मई में दूसरी लहर। अभी चौथी लहर की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन शायद हम उस स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं। अनुभव यही है कि भारत में लोग जांच कराने के मामले में आलसी हैं, जो लोग जागरूक हैं, वही जांच के लिए आगे आते हैं। जानकार भी यह मानते हैं कि सक्रिय मामले वास्तव में दर्ज मामलों से कहीं ज्यादा होंगे। जून महीने के शुरू में ही संक्रमण बढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ है। तेज संक्रमण के लिए दो नए वैरिएंट को जिम्मेदार बताया जा रहा है। बीए-4 और बीए-5 वैरिएंट पर निगाह रखी जा रही है। हालांकि,कुल मिलाकर इसे खतरनाक नहीं माना जा रहा है,लेकिन कोरोना संक्रमण से जो तनाव होता है,जो परेशानी होती है, उससे भला कौन इनकार करेगा? किसी भी तरह के संक्रमण को गंभीरता से लेने की हिदायत डॉक्टर देते आए हैं। इसमें तो कोई दो राय नहीं कि जब-जब लोगों ने सावधानी बरतने में ढिलाई बरती है, तब-तब संक्रमण का शिकंजा कसा है। हमारी इस कमी या असावधानी को हर जगह महसूस किया जा सकता है। भीड़-भाड़ वाले कार्यक्रमों की भी वापसी हो गई है,बाजारों में भी खूब भीड़ उमड़ रही है,पर्यटन स्थलों पर भी लोगों का हुजूम लापरवाह घूम रहा है। मई महीने में ही कुछ राज्यों में मास्क को जरूरी बनाया गया था, लेकिन यह निर्देश ज्यादातर कागजों पर ही रह गया है। ऐसा नहीं है कि केवल भारत में ही कोरोना मामले सामने आ रहे हैं। दुनिया में लगभग दो करोड़ से ज्यादा सक्रिय मामले हैं। अभी भी दुनिया में प्रतिदिन छह लाख से ज्यादा मामले आ रहे हैं। रोज 1,300 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। अतः लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। ध्यान रहे, भारत में सावधानी के दम पर ही संक्रमण को घटाया गया था, फिर कोताही की गलती हम नहीं कर सकते। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जो बीमारी देश के लाखों लोगों को पहले ही लील चुकी है, उसके प्रति हम सतर्क क्यों नहीं रहते हैं। देश का शायद ही कोई परिवार होगा, जिसके सगे- संबंधित इससे संक्रमित न हुए हों और किसी न किसी की जान न गई हो। फिर भी हम अकसर इसके प्रति लापरवाह रहे हैं। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन अभी तक हमारे स्वभाव में शामिल नहीं है। क्या हमारे फायदे के लिए बार-बार सरकार का सख्त होना जरूरी है? क्या जब तक सरकार प्रोटोकॉल के पालन के लिए हम पर जुर्माना नहीं बरतेगी,तब तक हम कोरोना के प्रति गंभीरता नहीं दिखाएंगे,यह ठीक नहीं है, हमें खुद सतर्क होकर कोरोना से बचना होगा,इसमें ही हम सबकी भलाई है। यदि अपनी भलाई के लिए हम कार्य नहीं करेंगे तो कोई और हमारी चिंता क्यों और कैसे कर सकता है?
कोरोना ने दी फिर दस्तक
