पिछले कुछ दिनों से बाढ़, भूस्खलन और भूकटाव ने असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में भारी तबाही मचाई है। फिलवक्त सिलचर से जो खबरें आ रही हैं, वह निहायत चिंताजनक हैं। वहां की स्थिति की भयावहता को देखकर मुख्यमंत्री खुद दो बार दौरा कर चुके हैं और उनके वहां जाने से राहत व बचाव कार्य में तेजी आई है,फिर भी उन्होंने निराशा जताई  कि अब तक प्रत्येक पीडि़त तक प्रशासन की सुविधा नहीं पहुंची है। जिस स्तर पर राज्य सरकार और जिला प्रशासन की ओर से बाढ़ पीडि़तों की समस्याएं दूर करने की कोशिश की जा रही है,वह सराहनीय है। फिलहाल सरकार को चाहिए कि हरेक पीडि़त तक स्वच्छ पेयजल, सूखा और पका भोजन और चिकित्सकीय सुविधाएं पहुंचाई जाए। उल्लेखनीय है कि यदि हम भारत के सिलचर और बांग्लादेश के कई इलाकों में आई बाढ़ की तुलनात्मक अध्ययन करें तो पता चलेगा कि इन दिनों दोनों जगह समस्याएं एक जैसी हैं। दोनों तरफ पीने का पानी नहीं है। लोग भोजन की समस्या से जूझ रहे हैं। सभी को सरकार की ओर से मिली सूखी सामग्री पर ही गुजारा करना पड़ रहा है। इसे विडंबना कहें या महज संयोग,परंतु सच है कि भले ही दोनों के बीच सरहदें बंट गई हैं, परंतु उनकी समस्याएं एक जैसी हैं। दु:ख एक जैसा है और पीड़ा का अहसास  भी एक जैसा है। फिलहाल  बांग्लादेश के कई इलाके पिछले कुछ दिनों से विनाशकारी बाढ़ से घिरे हैं। इसके कारण तीन दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। देश के 64 में से कम से कम 17 जिले प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हुए हैं। कई इलाकों मे बिजली भी गुल हो गई है। ज्यादातर प्रभावित जिले उत्तर और पूर्वोत्तर सिलहट इलाके में हैं। आने वाले दिनों में और अधिक वर्षा का अनुमान लगाया गया है,इसको देखते हुए बांग्लादेश के बाढ़ भविष्यवाणी और चेतावनी केंद्र ने आगाह किया है कि देश के उत्तरी इलाकों में जलस्तर खतरनाक ऊंचाई पर बना रहेगा। प्रभावित इलाकों में कई लोग भोजन, पीने के पानी और दूसरी अनिवार्य जरूरतों को हासिल करने के लिए जूझ रहे हैं। पीने के पानी को साफ करने वाली गोलियां पहुंचाने के लिए चिकित्सा दल बाढ़ प्रभावित इलाकों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार बाढग़्रस्त लोगों के लिए खाना और पीने का पानी पहुंचाने के लिए पुरजोर कोशिशों मे जुटी हुई है, लेकिन प्रभावितों का कहना है कि सरकारी मदद सुस्त और नाकाफी है। दूर-दराज के इलाकों में लोगों को कुछ नहीं मिल पा रहा है। बाढग़्रस्त इलाकों में काम कर रहे समूह ही लोगों को सूखा भोजन दे पा रहे हैं जो काफी नहीं है। लोग पके हुए खाने के लिए तड़प रहे हैं। बच्चों का खाना भी नदारद है।16 लाख बच्चों समेत 40 लाख लोग पूर्वोत्तर बांग्लादेश में बाढ़ से घिरे हुए हैं और उन्हें मदद की तत्काल जरूरत है।  प्रधानमंत्री शेख हसीना का भी कहना है कि लंबे समय से हमने इस तरह का संकट नही देखा है। ऐसी विपदाओं से निपटने के लिहाज से बुनियादी ढांचा खड़ा किया जाना चाहिए। हसीना ने ये भी कहा कि देश को इस संकट से फौरन निजात तो नहीं मिल पाएगी। उनके मुताबिक पूर्वोत्तर से बाढ़ का पानी जल्द ही घट जाएगा लेकिन बाढ़ फिर बंगाल की खाड़ी की ओर, दक्षिणी इलाके को अपनी चपेट में लेगी। उन्होंने कहा कि हमे उससे मुकाबले की तैयारी करनी चाहिए। हम लोग ऐसे भूभाग में रहते हैं जहां अकसर बाढ़ आती है और ये बात हमें अपने ध्यान में रखनी होगी। बांग्लादेश को दुनिया के सबसे ज्यादा जलवायु-पीडि़त देशों में एक माना जाता है। ऐसी आपदाओं का सबसे ज्यादा असर गरीबों पर ही पड़ता है। मेघालय के चेरापूंजी और दूसरे इलाकों में अनियमित बारिश इस बाढ़ का प्रमुख कारण है। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से जलवायु बदली है और बारिश का पैटर्न भी। ऐसी बात नहीं कि बराक वैली में असम सरकार और बांग्लादेश में हसीना सरकार समस्या के समाधान के लिए कोशिश नहीं कर रहे हैं,परंतु चाहकर भी लोगों को संपूर्ण राहत न पहुंचा पाना उनकी मजबूरी है।