राजनीति में स्थायी वफादारी कभी बड़ी बात थी, परंतु नफा-नुकसान की राजनीति ने अब इस शब्द को अपने डिक्शनरी से बाहर कर दिया है। जब राजनेता अपने मतदाताओं के प्रति ही वफादार नहीं हैं तो पार्टी की नीतियों के प्रति वफादार होना कहां तक संभव है। महाराष्ट्र की राजनीति में आज जो भी हो रहा है,स्थायी राजनीतिक वफादारी के विपरीत है। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे दोनों खुद को बाबा साहब बाल ठाकरे की नीतियों के प्रति खुद को समर्पित बता रहे हैं। यदि हम मध्यप्रदेश, कर्नाटक और अन्य कई राज्यों की सत्ता में बदलाव पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि किसी भी पार्टी से जीता विधायक अपनी पार्टी की नीतियों के प्रति वफादार नहीं है, उसे सत्ता में भागीदारी चाहिए, इसके लिए वह कुछ भी कर सकता है। इसी नीति पर अमल करते हुए शिवसेना के विधायक मुंबई से सूरत पहुंच गए और अब सूरत से चलकर गुवाहाटी में हैं। अब यह भी कहा जा रहा है कि ये गुवाहाटी से इंफाल भी जा सकते हैं। इसी बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कहना है कि उन्होंने अपना इस्तीफा तैयार रखा है। बागी विधायकों को जो भी कहना है,वे मुंबई आकर कहें,सुदूर गुवाहाटी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले शिवसेना के बागी नेता और मंत्री एकनाथ शिंदे गुजरात के सूरत से असम की राजधानी गुवाहाटी पहुंचे,जहां उन्होंने दावा किया कि इनके साथ शिवसेना के 40 विधायकों समेत कुल 46 विधायक हैं। ऐसे में महाराष्ट्र में सियासी संकट गहराता जा रहा है। शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे ने सीएम उद्धव ठाकरे की ओर से बुधवार की शाम को बुलाई गई पार्टी विधायकों की बैठक को अवैध बताया। दूसरी ओर कांग्रेस नेता कमलनाथ का कहना है कि एनसीपी और कांग्रेस एमवीए के साथ हैं। उल्लेखनीय है कि एकनाथ शिंदे को दलबदल कानून से बचते हुए उद्धव सरकार गिराने के लिए शिवसेना के 37 विधायक चाहिए, फिर भी वो रुक नहीं रहे। वो बागियों के डेरे में लगातार शिवसेना विधायकों को जोड़ते जा रहे हैं। गुवाहटी के एक पांच सितारा होटल के बाहर शिंदे ने 46 विधायक साथ होने का दावा किया। कहा जा रहा है कि बागियों की तादात 50 तक पहुंच सकती है। बस यही एक सवाल कौंध रहा है। आखिर शिंदे चाहते क्या हैं? वो लगातार जरूरत से ज्यादा शिवसेना के बागी विधायकों को क्यों जुटा रहे हैं? उधर भाजपा ने अब तक विधानसभा सत्र बुलाने की मांग क्यों नहीं की है? उद्धव से खुली बगावत के बावजूद शिंदे लगातर क्यों कह रहे हैं कि वो बाला साहेब के सच्चे शिवसैनिक हैं और उन्होंने शिवसेना नहीं छोड़ी है। दूसरी ओर गुवाहाटी में डेरा जमाए एकनाथ शिंदे ने आगामी रणनीति पर चर्चा करने के लिए बागी विधायकों के साथ बैठक की। शिवसेना की ओर से शाम पांच बजे विधायकों की बैठक को लेकर जारी किए व्हिप पर एकनाथ शिंदे ने प्रतिक्रिया दी है। ट्विटर पर उन्होंने लिखा कि सीएम उद्धव ठाकरे का व्हिप अवैध है। शिंदे ने अपने बयान से स्पष्ट किया कि सीएम उद्धव के पास ज्यादातर शिवसेना के विधायक नहीं हैं, इसलिए उनके पास यह व्हिप जारी करने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के बीच एनसीपी ने भी कल यानि 23 जून को पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई है। एनसीपी ने बैठक में पार्टी के सभी विधायकों और एमएलसी को उपस्थित रहने को कहा है।  उधर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने मंगलवार शाम को कहा कि उनकी पार्टी राज्य में सरकार बनाने की संभावना तलाश रही है। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे नेता ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि सत्ता का आसानी से हस्तांतरण हमारी प्राथमिकता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि शिवसेना अब उद्धव के हाथ से निकल गई है और शिंदे ने उस पर लगभग कब्जा कर लिया है। ऐसे में उद्धव का भावुक बयान शिवसेना के विधायकों को पुनः उनसे जोड़ पाएगा, इसमें संदेह है।