किसी भी वस्तु और उत्पाद की कीमत में वृद्धि होने को महंगाई कहते हैं। महंगाई के कारण देश की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। यह मनुष्य की रोजी-रोटी को भी प्रभावित करती है। बढ़ती हुई महंगाई भारत की एक बहुत ही गंभीर समस्या है। सरकार एक तरफ महंगाई को कम करने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश में महंगाई मानो आसमान छू रही हो। कई लोग महंगाई के कारण शहर को छोड़कर अपने गांव बस जाते हैं क्योंकि रोज की महंगाई उन्हें शहर में बसने नहीं देती। आज सभी लोग महंगाई को कम करने की मांग कर रहे हैं, परंतु महंगाई देश में साल-दर-साल ऊपर चली जा रही है। कमरतोड़ महंगाई जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में निरंतर वृद्धि (महंगी),उत्पादन की कमी और मांग की पूर्ति में असमर्थता की परिचायक है। बढ़ती हुई महंगाई जीवन-चलाने के लिए अनिवार्य  तत्वों (कपड़ा, रोटी, मकान) की पूर्ति के लिए काफी नहीं हैं। महंगाई के कारण गरीब जनता पेट पर ईंट बांधती है, मध्यवर्ग आवश्यकताओं में कटौती करती है, वहीं धनिक वर्ग के लिए आय के स्रोत उत्पन्न करती है। देशी घी तो आंख आंजने को भी मिल जाए तो गनीमत है। तन ढंकने के लिए कपड़ा महंगाई के गज पर सिकुड़ रहा है। सब्जी, फल, दालें और अचार गृहणियों को पुकार-पुकार कर कह रहे हैं  कि रूखा सूखा खाय के ठंडा पानी पीव। रही मकान की बात, अगर महंगाई की यही स्थिति रही तो लोग जंगल में रहने लगेंगे। गुवाहाटी की हालत यह है कि दो कमरे-रसोई का सेट 8 हजार रुपए किराए पर भी नहीं मिलता। इतनी महंगाई में कैसे गुजारा करेंगे देश के गरीब वर्ग और मध्य वर्ग के लोग। बढ़ती हुई महंगाई भारत-सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का परिणाम है। यह प्रकृृति के रोष और प्रकोप का फल नहीं, शासकों की बदनीयती और बदइंतजामी की मुंह बोलती तस्वीर है। काला धन, तस्करी और जमाखोरी महंगाई-वृद्धि के परम मित्र हैं। तस्कर खुलेआम व्यापार करता है। काला धन जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है। काले धन की गिरफ्त में देश के बड़े नेताओं से लेकर उद्योगपति और अधिकारी तक शामिल हैं। काले धन का सबसे बुरा असर मुद्रास्फीति और रोजगार के अवसरों पर पड़ता है। यह उत्पादन और रोजगार की संभावना को कम कर देता है और दाम बढ़ा देता है। इतना ही नहीं सरकार हर मास किसी-न-किसी वस्तु का मूल्य बढ़ा देती है। जब कीमतें बढ़ती हैं तो किसी के बारे में नहीं सोचतीं। विदेशी कर्ज और उसके सेवा-शुल्क (ब्याज) ने भारत की आर्थिक नीति को चौपट कर रखा है। भारत का खजाना खाली हो रहा है। एक ओर विदेशी कर्ज बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर व्यापारिक संतुलन बिगड़ रहा है। तीसरी ओर राष्ट्रीयकृृत उद्योग निरंतर घाटे में जा रहे हैं। इनमें प्रतिवर्ष अरबों रुपयों का घाटा भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाही और बेईमान ठेकेदारों के घर में पहुंच कर जन-सामान्य को महंगाई की ओर धकेल रहा है। गरीब देश की बादशाही-सरकारों के अनाप-शनाप बढ़ते खर्च देश की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने की कसम खाए हुए हैं। मंत्रियों की पलटन, आयोगों की भरमार, शाही दौरे, योजनाओं की विकृृति, सब मिलाकर गरीब करदाता का खून चूस रही हैं। देश में खपत होने वाले पेट्रोलियम-पदार्थों के कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा राजकीय कार्यों में खर्च होता है, लेकिन प्रचार माध्यमों से बचत की शिक्षा दी जाती है कि तेल की एक-एक बूंद की बचत कीजिए। सरकारों द्वारा आयात शुल्क तथा उत्पाद शुल्क बढ़ाए गए हैं। कीमतें बढ़ने का मुख्य कारण आर्थिक उदारीकरण है। उदारीकरण के तहत उद्योगपतियों और व्यापारियों को खुली छूट दी गई है कि वे जितना चाहे ग्राहक से वसूलें। जिन अनेक चीजों पर से मूल्य नियंत्रण उठा लिया गया है, उनमें दवाएं भी हैं। अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि पिछले पांच-छह वर्षों में दवाओं की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं । उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में वृद्धि का एक बड़ा कारण मार्केटिंग का नया तंत्र है,जिसमें विज्ञापनबाजी पर बेतहाशा खर्च किया जाता है। एक रुपए लागत की वस्तु दस रुपए में बेची जाती है। इन सबसे बचकर हमें गरीबी को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। गरीबी जब दूर होगी तभी देश की व्यवस्था ठीक होगी। हमें गरीबी को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। अगर हमें हमारे देश से गरीबी को हटाना है तो हमे महंगाई को जड़ से मिटाना होगा।