हरेक जीवित प्राणी के लिए भोजन अति आवश्यक है। कोरोना सहित विभिन्न आपदाओं के बीच विश्व के कई देश खाद्यान्न की समस्या से जूझ रहे हैं। खासतौर पर  यूक्रेन युद्ध और अन्य वैश्विक कारणों से दुनियाभर में खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान पर हैं। इससे निपटने के लिए विश्व व्यापार संगठन ने 164 सदस्य देशों के बीच एक समझौते का प्रस्ताव रखा है जिसे भारत, मिस्र और श्रीलंका का समर्थन नहीं मिल पाया है। 164 देशों का व्यापार संगठन दो अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की कोशिश कर रहा है,जिसका मकसद खाद्य संकट के खतरे से जूझ रहे विकासशील और गरीब देशों की मदद करना है। पहले समझौते में एक घोषणा जारी करना है जिसमें विभिन्न देशों से बाजार खुले रखने,निर्यात पर पाबंदियां ना लगाने और पारदर्शिता बनाए रखने का आग्रह किया जाएगा। दूसरा समझौता इस बारे में है कि वल्र्ड फूड प्रोग्राम को जाने वाला निर्यात बंद ना हो। डब्ल्यूएफपी युद्धग्रस्त, जलवायु परिवर्तन और अन्य आपदाओं की मार झेल रहे इलाकों में भूख से लडऩे के लिए अभियान चलाता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि लगभग 30 देशों ने खाद्य, ऊर्जा और अन्य चीजों के निर्यात पर पाबंदियां लगा दी हैं जिनमें भारत की ओर से गेहूं निर्यात पर लगाई गई पाबंदियां भी शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि लोग अभूतपूर्व स्तर पर भूख का सामना कर रहे हंै। उन्होंने बताया कि 1.97 करोड़ लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है। विश्व व्यापार संगठन ने कहा है कि आमतौर पर उसके प्रस्तावों को भारत, मिस्र व श्रीलंका को छोडक़र बाकी सबका समर्थन मिला है। पहले तंजानिया भी समर्थन में झिझक रहा था लेकिन बाद में उसने समर्थन कर दिया। मिस्र और श्रीलंका के समर्थन ना करने की वजह एक मांग है। ये दोनों देश बड़े आयातक ही हैं और चाहते हैं कि समझौते में इस बात को मान्यता मिले कि खाद्य सामग्री निर्यात करने की इनकी क्षमताएं सीमित हैं। यानी भारत ही एकमात्र देश है जो इस प्रस्ताव से मूल रूप से असहमत है। इन समझौतों को लेकर भारत की आपत्ति अपने यहां भोजन के भंडार जमा करने को लेकर है। भारत चाहता है कि विकासशील देशों को अपने यहां भोजन के भंडार जमा करने की अनुमति होनी चाहिए और नियमों का उल्लंघन करने पर किसी तरह की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए। 2013 में संगठन ऐसे प्रावधानों के लिए अस्थायी तौर पर राजी हो गया था। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि संगठन की मीटिंग में यह सर्वोपरि प्राथमिकता थी। इस सर्वे के लिए 14 राज्यों में जितने लोगों से बात की गई उनमें से 79 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि 2021 में उन्हें किसी न किसी तरह की खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। 25 प्रतिशत परिवारों को भीषण खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।  13 मई को भारत ने यकायक गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके पीछे खाद्य सुरक्षा का हवाला दिया गया है और जिसके लिए कुछ हद तक यूक्रेन युद्ध को जिम्मेदार माना गया है। इससे पहले गेहूं का निर्यात बढ़ाने की बात कही गई थी। दुनिया में बढ़ती कीमतों के कारण भारत व उसके पड़ोसी और संकट वाले देशों में खाद्य सुरक्षा को खतरा है। गेहूं का निर्यात रोकने की प्रमुख वजह है घरेलू बाजार में उसकी कीमतों को बढऩे से रोकना है। इस प्रतिबंध के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें और ज्यादा बढ़ गई हैं। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 40 फीसदी तक बढ़ चुकी है। हालांकि भारत ने उन देशों को निर्यात जारी रखने का फैसला किया था, जिन्होंने भोजन की सुरक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए सप्लाई का आग्रह किया है। भारत में गेहूं की फसल को अभूतपूर्व लू के कारण काफी नुकसान हुआ है और उत्पादन घट गया है। उत्पादन घटने की वजह से भारत में गेहूं की कीमत पहले ही अपने उच्चतम स्तर पर चली गई हैं। दूसरी ओर यूएन ने कहा कि ऐसे समय में जबकि दुनिया खाने-पीने की चीजों की कमी झेल रही है,तब जमाखोरी,जरूरत से ज्यादा खाद्य सामग्री का भंडारण और उससे जुड़ी अटकलें लोगों के भोजन के अधिकार को प्रभावित करती हैं और सबके लिए भोजन मुहैया कराने की कोशिशों को कमजोर करती हैं।