आखिरकार केंद्र सरकार ने नुमलीगढ़ तेल शोधनागार (एनआरएल) के बीपीसीएल के हिस्से को बेचने का फैसला ले ही लिया। उल्लेखनीय है कि ऐतिहासिक असम समझौते के परिणामस्वरूप असम के इस चौथे तेल शोधनागार का निर्माण हुआ था। उल्लेखनीय है कि इस शोधनागार में बीपीसीएल का 61.65 प्रतिशत, ऑयल इंडिया का 26.35 प्रतिशत तथा असम सरकार का 12.35 प्रतिशत हिस्सा है। बीपीसीएल के हिस्से को सार्वजनिक क्षेत्र के तेल प्रतिष्ठान ऑयल के हवाले करने के केंद्र के फैसले के बाद इसे 25 मार्च को अमली जामा पहनाया गया। राज्य में चुनावी व्यस्तता के दौरान ही नई दिल्ली में बीपीसीएल, ऑयल इंडिया, ईआईएल तथा असम सरकार के बीच हुए समझौते के तहत बीपीसीएल के हिस्से को हस्तांतरित करने का फैसला किया गया। समझौते के तहत बीपीसीएल का हिस्सा समाप्त करने के बाद ऑयल का हिस्सा पहले के 26.35 से बढ़ाकर 80.16 प्रतिशत किया गया। असम सरकार के पहले के 12.35 प्रतिशत का हिस्सा बढ़ाकर 15.47 प्रतिशत किया गया। इसमें ईआईएल भी नया हिस्सेदार बन गया जिन्हें 4.37 प्रतिशत का हिस्सा प्रदान किया गया। बीपीसीएल का कुल हिस्सा 9875.96 करोड़ रुपए बिक्री होने के बाद नए समझौते के तहत एनआरएल में ऑयल का निवेश 8675.96 करोड़, असम सरकार का 499.99 करोड़ तथा ईआईएल 39.84 करोड़ रुपए का होगा। गौरतलब है कि केंद्रीय वित्तमंत्री की इस घोषणा के बाद एनआरएल का भले ही निजीकरण नहीं हुआ किंतु एनआरएल के सभी तेल बिक्री केंद्र बीपीसीएल के जरिए निजी क्षेत्र के हवाले जाना लगभग तय हो गया। गौरतलब है कि वर्ष 2008 से ही एनआरएल के एनर्जी स्टेशनों पर बीपीसीएल का दबदबा है। एनआरएल को इन एनर्जी स्टेशनों को बीपीसीएल से वापस लेना चाहिए था, किंतु एनआरएल का मूल हिस्सेदार बीपीसीएल होने के कारण कंपनी से तेल बिक्री केंद्रों को आज तक एनआरएल अपने पास लाने में नाकाम रही। इस बीच शोधनागार सूत्रों के अनुसार ऑयल व ईआईएल की निजी बिक्री व्यवस्था न होने के कारण एनआरएल की उत्पादित तेल सामग्री की बिक्री को लेकर कंपनी फिलहाल अनिश्चितता में है।
आखिरकार बिक गई एनआरएल
