फिलहाल रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है, इसका समाधान नहीं दिख रहा है। इसका असर पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधियों पर पड़ रहा है, परंतु ऐसी विकट परिस्थितियों में हथियार बेचने वाले देशों की पौ बारह है। इस युद्ध के साथ ही उन कंपनियों की मार्केट वैल्यू में उछाल आ गया है, जो सभी देशों को हथियार बेचती हैं। जर्मनी ने अपने डिफेंस बजट को दोगुने से भी ज्यादा बढ़ा दिया है। इटली,नीदरलैंड्स और स्पेन भी रक्षा बजट बढ़ा सकते हैं। ये ट्रेंड आगे यूरोप से बाहर भी देखने को मिल सकता है। किसी देश में युद्ध होना दूसरे देशों के लिए हथियार खरीदने के विज्ञापन की तरह हो जाता है। यूक्रेन पर हमला करने के बावजूद रूस पर अमरीकी या नाटो देश हमला करने से बच रहे हैं तो इसकी सबसे बड़ी वजह रूस का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर होना है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की सौ सबसे बड़ी हथियार कंपनियों ने 531अरब डॉलर मूल्य के हथियार बेचे हैं। महामारी के बावजूद दुनिया में हथियारों की बिक्री में वृद्धि जारी है। साल 2020 में दुनिया भर के देशों में कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के कारण माल की मांग में कमी आई और बाजार मंदा रहा,लेकिन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें व्यवसाय फलता-फूलता रहता है। यह हथियार निर्माण और बिक्री का क्षेत्र है। 2019 के मुकाबले हथियार का बाजार 1.3 प्रतिशत विस्तार किया। 2020 कोरोना महामारी का पहला पूर्ण वर्ष था और सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.1 प्रतिशत की कमी आई लेकिन महामारी के दौरान हथियारों और गोला-बारूद का व्यापार भी फला-फूला। पिछले साल 100 सबसे बड़ी हथियार कंपनियों ने कुल 531 अरब डॉलर के हथियार या फिर उससे जुड़ी सेवाएं बेची। यह मूल्य बेल्जियम के आर्थिक उत्पादन से भी अधिक है। अमरीका ने हथियारों के उत्पादन और हथियारों की बिक्री दोनों में दुनिया का नेतृत्व करना जारी रखा है। वैश्विक स्तर पर शीर्ष 100 हथियार कंपनियों में से 41 अमरीकी हैं। उनकी हथियारों की बिक्री 2020 में 285 अरब डॉलर थी, जिसमें साल दर साल 1.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। हथियार कंपनियां कुछ मामलों में अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करने से नहीं कतराती हैं। हथियार कंपनियां अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए अरबों डॉलर खर्च करती हैं। हथियारों की दौड़ में वैश्विक दक्षिण कंपनियों का महत्व बढ़ गया है। 100 सबसे बड़ी हथियार कंपनियों में भारत की तीन कंपनियां शामिल हैं। उनकी बिक्री कुल बिक्री का 1.2 प्रतिशत है,जो दक्षिण कोरियाई कंपनियों के बराबर है। हथियारों की बिक्री के मामले में अमरीका शीर्ष पर है, वह अकेले 37 फीसदी से ज्यादा हथियार बेचता है। इसके बाद रूस का नंबर आता है। रूस का हथियारों के बाजार में 20 फीसदी की हिस्सेदारी है, वहीं फ्रांस 8.3 फीसदी तीसरे, जर्मनी 5.5 फीसदी हिस्सेदारी के साथ चौथे स्थान है, वहीं इस सूचना में 5वें नंबर पर चीन है, जिसकी 5.2 फीसदी की हिस्सेदारी है। ग्लोबल हथियार मार्केट में सऊदी अरब 11 फीसदी, भारत 9.5 फीसदी, इजिप्ट 5.8 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया 5.1 फीसदी और चीन 4.7 फीसदी के साथ सबसे बड़े पांच खरीदार देश हैं। चीन इकलौता ऐसा देश है, जिसका नाम सबसे ज्यादा हथियार बेचने वाले और सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों की सूची में शामिल है। चीन रिवर्स इंजीनियरिंग फॉर्मूले पर काम करता है। यानी पहले वो हथियारों को खरीदता है। फिर उन हथियारों में अपनी जरूरत के हिसाब से कुछ बदलाव करता है और फिर उन्हें आगे दूसरे देशों को बेच देता है। रूस के हथियारों के टॉप थ्री खरीदार हैं -भारत, चीन और अल्जीरिया। रूस के 23 फीसदी हथियार भारत, 18 फीसदी चीन और 15 फीसदी अल्जीरिया खरीदता है। यानी रूस के हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार भारत ही है। इसी वजह से भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमलों के मामले से दूरी बनाई हुई है। रूस का खुलकर विरोध नहीं करने की एक बड़ी वजह यह भी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हथियारों की सौदागरी ने विश्व को संभावित तीसरे विश्व युद्ध में झोंक दी है, विश्व समुदाय को इस पर गंभीरता से चिंता करनी चाहिए।
हथियारों की सौदागरी
