घर की आंतरिक सज्जा आपके स्वास्थ्य, समृद्धि, बिजनेस और जीवन शैली को प्रभावित करती है। आपको भाग्यशाली भी बनाती है। आप चहुंमुखी विकास एवं उन्नति चाहते हैं तो वास्तु सूत्रों का इस्तेमाल घर की सज्जा और निर्माण में अवश्य ही करें।

ड्राइंग रूम का द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में बनवाएं। यदि कोई पुराना मकान खरीदें तो पहले यह पता कर लें कि घर में दो या तीन माह की अवधि में किसी की मृत्यु तो नहीं हुई है। उत्तर-पूर्व के कमरे में दंपति को न सोने दें। मास्टर बेडरूम यानी गृहस्वामी का कमरा दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए। कुंआरी यानी अविवाहित लड़कियों को तथा मेहमानों के लिए उत्तर-पश्चिम का कमरा सही रहता है।

बैडरूम में दक्षिण दिशा की ओर पैर करके शयन न करें। ऐसा करने से व्यक्ति को अशांति मिलती है और नींद भी गहरी नहीं आती है। दुकान में कैश बॉक्स को दक्षिण-पश्चिम के कोने में उत्तर-पूर्व दिशा की ओर खोलें।

घर में नहाना घर पूर्व दिशा की ओर होना अति उत्तम होता है। रसोई घर का द्वार मध्य भाग में रखें। बाहर से आने वाले व्यक्तियों को चूल्हा या गैस दिखाई नहीं देना चाहिए। घर में टॉयलेट का द्वार पूर्व दिशा में होना चाहिए। टॉयलेट दक्षिण या उत्तर दिशा में शुभदायक होता है। घर के पश्चिम तथा दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम दिशा में सीढ़ियां होना बहुत ही शुभ तथा लाभप्रद होता है।

नैऋत्य का निचला हिस्सा स्टोर के लिए शुभ होता है। इस हिस्से में कभी भी शयन कक्ष और न ही कैश बॉक्स रखें। पूजा घर के लिए यह स्थान शुभ नहीं होता। नल उत्तर-पूर्व कोने में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर लगवाएं। घर में उत्तरी दिशा में स्थित कक्ष बड़े होने चाहिए। दक्षिण दिशा में स्थित कक्षों की ऊंचाई अधिक रखें। बेडरूम में ड्राइंग टेबल को उत्तर-पूर्व दिशा में रखें।

बेसमेंट में निवास करना बहुत ही अशुभ है। अतः बेसमेंट का निर्माण न करें। 

ड्राइंग रूम की दीवारों को लाल या काले रंग से न रंगवाएं। बेडरूम में देवी देवताओं की प्रतिमा न रखें। ड्राइंग रूम की दीवारों को सफेद, पीला, गुलाबी, हरा या नीला आदि रंगों से रंगवाना श्रेष्ठ माना गया है।

घर के बीचोंबीच चौक में सीढ़ियां या किसी प्रकार का निर्माण कार्य न कराएं। ड्राइंग रूम या बैठक में उत्तर-पूर्व कोण में प्राकृृतिक दृश्य लगवाएं।

रसोईघर, शौचालय, बाथरूम तथा पूजा स्थान को एक दूसरे के पास न बनवाएं। अटैच्ड टॉयलेट-बाथरूम कमरे की पश्चिम दिशा में बनवाएं। इसे कमरे के वायव्य कोण में भी बना सकते हैं। घर में टूटा-फूटा दर्पण न रखें।

अध्ययन कक्ष ईशान कोण में रखें तथा अध्ययन के लिए इस प्रकार की व्यवस्था करें कि अध्ययन करने वाले व्यक्ति का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रहे। उत्तरी-पूर्वी कोने को घर का दिमाग कहा जाता है। अतः इस कोने को सदैव साफ रखें। बेडरूम में बीम के नीचे शयन न करें। घर में काष्ठ या धातु की बनी दैवीय प्रतिमा न रखें। 

घर में उल्लू, लोमड़ी, सिंह, चीता, गीदड़, बिल्ली आदि पशु-पक्षियों की प्रतिमा न रखें। सैप्टिक टैंक को घर के उत्तर व पूर्व दिशा में न बनवाएं।

घर के सामने तुलसी का पौधा लगाने से भू-स्वामी को सुख-शांति की प्राप्ति होती है। बारिश के पानी का बहाव उत्तर या पूर्व दिशा की ओर से रखें।

भवन निर्माण में हमेशा नए काष्ठ तथा बिना जंग लगा हुआ लोहा एवं नई ईटों का ही इस्तेमाल करें। घर के बड़े बुजुर्गों को दक्षिण-पश्चिम दिशा में शयन करने से मानसिक शांति तथा सुख मिलता है। घर को दक्षिण या पश्चिम दिशाओं में ऊंचा एवं उत्तर तथा पूर्व दिशाओं में नीचा रखें।

घर या व्यापारिक प्रतिष्ठान के उत्तरी-पूर्व कोने को खुला रखें। उत्तरी-पूर्वी कोने को अवरुद्ध कर देने से भगवान की कृृपा व आशीर्वाद नहीं मिल पाता है।

घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में गड्ढा होने पर गृहस्वामी पर अनेक संकट तथा कठिनाइयां आती है। गृहस्वामी को भयंकर रोग होने की आशंका रहती है। घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक खुला स्थान न छोड़े अन्यथा गृहस्वामी पर अनेक कष्ट आते है। पुरुष वर्ग के लिए खतरा बना रहता है। सीढ़ियों के नीचे तथा ऊपर दोनों ओर ही द्वार होना चाहिए। नीचे का द्वार सदैव बड़ा तथा ऊपर का द्वार छोटा होना चाहिए। यदि किसी पुराने घर या पैतृक घर में सीढ़ियां उत्तर से पूर्व दिशा की ओर बनी हों तो इस प्रकार के वास्तुदोष को समान करने के लिए भवन के दक्षिण या पश्चिम में एक कमरा बनवा दें। घर में जल का प्रवाह पूर्व दिशा में होता है तो गृह स्वामी पर अनेक शुभ प्रभाव पड़ता है। गृहस्वामी को धन-संपत्ति तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। वायु प्रदूषण से बचाव हेतु घरों में शुद्ध वायु जिन घरों में प्रवेश करे उनके विपरीत दिशाओं में एक्जॉस्ट फैन लगवाएं। खिड़की तथा रोशनदान के निर्माण के लिए पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर दिशा श्रेष्ठ तथा शुभदायक है। द्वार के सामने या बराबर में खिड़कियां होने से चुंबकीय चक्र पूर्ण हो पाता है। अतः खिड़कियों का निर्माण हमेशा दरवाजों के समीप करवाएं। ऐसा करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। मुख्य द्वार को दक्षिण तथा पश्चिम दिशा में बनाने से बचे तथा उत्तर या पूर्व दिशा में ही मुख्य द्वार के लिए स्थान शुभ फलदायक होता तथा श्रेष्ठकारी होता है।

घर का भूखंड ईशान कोण में ऊंचा होता है तो यह गृहस्वामी पर बहुत ही अशुभ प्रभाव डालता है। गृहस्वामी को धन-संपत्ति की हानि होती है तथा आरोग्य लाभ भी नहीं मिलता है। घर को कभी भी उत्तर या पूर्व दिशा की ओर अधिक न रखें और न ही कोई बना बनाया घर जो इन दोनों दिशाओं में बना हो तो उसे न खरीदें। 

अतः मैं पाठकों से यही कहता चाहूंगा कि उपरोक्त वास्तुसूत्र अपनाकर सुख-शांति से जीवन व्यतीतत करें ताकि दुःख, रोग,असफलता आपसे कोसों दूर रहे।