‘कंठ फुर्यौं गदगद गिरा, बोले जात न बैन’। तैंतीस वर्ष का हो गया हमारा पूर्वांचल प्रहरी। दशकों पूर्व असम  पर मंडराता जातीय हिंसा का हृदयविदारक अंधकार, भयभीत और लाचार-सा व्यापक समाज-ऐसे में प्रकाशपुंज बनकर इसका जन्म लेना- सत्य है कि ‘है अँधेरी रात पर, दिया जलाना कब मना है?’ प्रबुद्ध समाजचेता श्रद्धेय श्री जी एल अग्रवाला के मानस-पटल पर हुए भाव-विस्फोट का मूर्तिमान स्वरूप है प्रहरी। प्रेमचंद ने एक बार अपनी पत्नी से कहा था- ‘मैं कुदाल लेकर खेत नहीं गोड़ता तो क्या, कलम ही मेरी कुदाल है।’ स्वर्गीय अग्रवाला जी मौन न रह सके और लेखनी लेकर अन्याय के विरुद्ध खड़े दिखे- ‘जो चुप रहेगी जुबाँने नजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का।’ यों शुरू हुआ इस दैनिक का सफर और -

‘जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पे नजर है

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।’

वेदों में स्वाध्याय की तुलना ‘तप’ और ‘यज्ञ’ से की गई है किंतु विद्यार्थी जीवन के उपरांत अधिकांश नागरिकों का अध्ययन से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रह पाता। जीवन की आपाधापी अगर हम पढ़ पाते हैं तो मात्र दैनिक समाचार पत्र। वैदिक काल में शिष्य की विदा-वेला और दीक्षांत समारोह के अवसर पर गुरु कहते थे ‘स्वाध्यायात् मा प्रमद:’ अर्थात् अध्ययन में कभी नहीं चूकना। लेकिन आज डिजिटल युग है, हम लिखते कम टाइप ज्यादा करते हैं, पढ़ते कम और देखते-सुनते अधिक हैं। इलेक्ट्रोनिक मीडिया-सोशल मीडिया के संक्रामक प्रचार-प्रसार के मध्य आज लिखित साहित्य के समक्ष अस्तित्व-रक्षा की चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। ऐसे में पत्रकारिता का सफर सहज नहीं वरंच कवि बोधा के शब्दों में ‘तरवार की धार पै धावनो’ जैसा है। 

आज समूचे भारत में अशांति और अराजकता का माहौल है। कहीं राष्ट्रवाद का आग्रह है तो कहीं सांस्कृृतिक पुनर्जागरण का बिगुल बज रहा है। कहीं विस्मृत ऐतिहासिक गौरव की पुनस्र्थापना का उद्वेग है तो कहीं विवशता और आक्रोश में पत्थरबाजी और आगजनी। विश्व की परिस्थितियां भी कमोबेश कुछ ऐसी ही हैं, युद्ध, आतंक और विनाश का संकट चतुर्दिक व्याप्त है। ऐसे में हमारा दायित्व और भी बढ़ जाता है। प्रेमचंद ने कहा था- ‘साहित्य देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सच्चाई है।’ कुछ ऐसी ही बात विद्वानप्रवर रमेश भाई ओझा ने कही थी जब वे श्री जी एल अग्रवाला के निवासस्थान पर पधारे थे। उनका कहना था कि जब तीन ‘कारें’ अपना काम पूरी सत्यनिष्ठा से करती हैं तो चौथी कार खुदबखुद सही दिशा में चलती है। ये तीन कारें हैं - साहित्यकार, कलाकार और पत्रकार तथा चौथी कार है-सरकार!!

‘सर्वभूत हिते रता:’ का मूलमंत्र लेकर हम अग्रसर हैं। सत्यनिष्ठा के प्रति हम वचनबद्ध हैं। गीता में भगवान् कृृष्ण ने पार्थ को उपदेश दिया - ‘सत्य बोलो, प्रिय बोलो’... लेकिन उपदेश यहाँ रुका नहीं, आगे उन्होंने बताया कि उसकी निर्णायक कसौटी है हितकारी होना। हम भाग्यशाली हैं कि पूर्वांचल प्रहरी समूह का प्रत्येक छोटा-बड़ा सदस्य ‘सर्वजन हिताय’ के इसी उच्चादर्श से अनुप्राणित है। हमारे पाठकों का हम पर भरोसा ही हमारी कमाई है, हमारी पूँजी है। हमारा सदैव यह प्रयास रहता है कि हम युग के यथार्थ को यथावत आप तक पहुँचायें, ज्ञान-विज्ञान-इतिहास सम्बद्ध सम्यक् एवं सटीक जानकारी दें, युगीन समस्याओं के प्रति आपको चैतन्य रखें। ‘पूर्वांचल प्रहरी’ के माध्यम से ये सरोकार सदियों अभिन्न बने रहें, यही परात्पर से हमारी प्रार्थना है।