रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की वर्चुअल मुलाकात कूटनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण रही। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को अपने विचारों से अवगत कराया। पिछले कुछ दिनों से रूस से संबंध रखने के मुद्दे पर भारत और अमरीका के बीच तल्खी आ गई थी। इसी बीच दोनों देशों के बीच 2+2 वार्ता भी हुई है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं विदेश मंत्री एस जयशंकर अमरीका में हैं। हाल ही में अमरीका के उप-राष्ट्रीय सलाहकार दलीप सिंह की टिप्पणी के बाद दोनों देशों के बीच और कड़वाहट बढ़ गई थी। इसके बावजूद भारत ने 2+2 वार्ता के लिए अपने दो मंत्रियों को वहां भेजा। अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन इस वार्ता से पहले प्रधानमंत्री मोदी के साथ बात कर तनाव को कम करना चाहते थे। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमरीका चाहता है कि भारत रूस का साथ छोडक़र अमरीका के शिविर में आ जाए। रूस भारत का सदाबहार दोस्त रहा है। जब भी भारत मुसीबत में फंसा तो उस वक्त रूस ने भारत की सहायता की। ऐसी परिस्थिति में भारत का रूस का साथ छोडऩा जायज नहीं होगा। भारत पूरे मामले में तटस्थ रहकर एक तरह से रूस की मदद ही कर रहा है। दूसरी बात यह है कि भारत का 50 प्रतिशत से ज्यादा हथियार रूस से खरीदा जाता है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय भी रूस भारत के लिए पूरी दुनिया के सामने डटकर खड़ा हो गया था। अमरीकी रक्षा मंत्री लॉयड आस्टिन एवं विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ वार्ता के दौरान भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अमरीका और भारत के संबंध पहले से काफी अच्छे हुए हैं। दोनों ही देश रक्षा, सुरक्षा एवं हिंद प्रशांत क्षेत्र आदि मसलों पर मिलकर काम कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई। दोनों देशों ने पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि उसके नियंत्रण वाले किसी भी क्षेत्र का उपयोग आतंकवादी हमलों के लिए न किया जाए। दोनों देशों ने 26/11 के मुंबई आतंकी हमले तथा पठानकोट हमले के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का आह्वान किया। सीमापार आतंकवाद के बारे में भी विस्तार से चर्चा हुई। विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के बीच समुद्री सुरक्षा के मुद्दे पर घनिष्ठ भागेदारी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी के मुद्दे पर भी दोनों देश मिलकर काम करने पर सहमत हुए हैं। अमरीका ने कई क्षेत्रों में भारत को प्रलोभन देने की भरसक कोशिश की ताकि भारत रूस का साथ नहीं दे। अमरीका जानता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन से मुकाबला करने के लिए भारत का सहयोग जरूरी है। वार्ता के दौरान भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी फैसले के पहले अपने राष्ट्रहित की तिलांजलि नहीं दे सकता। वह अमरीका के साथ काम करता रहेगा, किंतु रूस का भी साथ नहीं छोड़ेगा।
मोदी-बाइडेन की महामुलाकात
