पाकिस्तान की सियासत में इमरान खान अर्श से फर्श पर पहुंच गए हैं। वे अपने पांच वर्ष के कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाएंगे,ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। राजनीति में अनिश्चयता सदैव बनी रहती है और इमरान उसी अनिश्चयता के शिकार हो गए। भले ही वे एक क्रिकेट कप्तान के रूप में कभी मैदान छोड़कर न भागे हो,परंतु पाकिस्तान की बदलती  सियासत ने उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर दिया।  वे 2018 में सत्ता में आए थे। उन्होंने देश की व्यवस्था में बड़े सुधारों का वादा किया था ताकि भ्रष्टाचार खत्म हो और देश आर्थिक तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़े, लेकिन उन पर आर्थिक कुप्रबंधन और विदेश नीति के मोर्चे पर गलतियां करने के आरोप लगे। देश में आसमान छूती महंगाई, तेजी से बढ़ती बेरोजगारी, डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की दुर्गति और देश पर बढ़ते कर्ज ने उनकी लोकप्रियता को भारी नुकसान पहुंचाया। उनके आलोचकों का कहना है कि उन्होंने जनता की सहानुभूति पाने के लिए झूठी कहानियां रची। इसी बीच पाकिस्तान कई हफ्तों से राजनीतिक और संवैधानिक उथल-पुथल से गुजरा। इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार अपने खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग को तैयार नहीं थी, इसकी बजाए स्पीकर ने इस प्रस्ताव को ही खारिज कर दिया और सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने संसद को भंग कर दिया। विपक्ष इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया, जहां इमरान खान को झटका देते हुए सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय संसद नेशनल असेंबली को बहाल कर दिया और 9 अप्रैल को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार शनिवार सुबह नेशनल असेंबली का सत्र शुरू हुआ। दिन भर सियासी उठापटक के बीच ना तो प्रधानमंत्री इमरान खान संसद में आए और ना ही स्पीकर ने प्रस्ताव पर वोटिंग कराई। फिर देर रात स्पीकर असद कैसर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।  इसके बाद विपक्षी सदस्य अयाज सादिक ने स्पीकर का पद संभाला और अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराई। इसके मुताबिक 174 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया जो बहुमत से दो ज्यादा है। इसका मतबल है कि अब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं रहे। इस तरह विपक्षी नेता शहबाज शरीफ का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। वह पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं और आबादी के लिहाज से पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शरीफ के सहयोगी और पाकिस्तानी पीपल्स पार्टी के नेता बिलावल भट्टो जरदारी ने 10 अप्रैल को पाकिस्तान के इतिहास का अहम दिन बताया,जब किसी प्रधानमंत्री को पहली बार अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता से बेदखल किया गया। इससे पहले इमरान खान ने शनिवार को कहा कि वह नेशनल असेंबली को बहाल करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निराश हैं लेकिन वे इसे स्वीकार करते हैं।  इमरान खान लगातार इस बात को कहते आ रहे हैं कि उन्हें अमरीकी साजिश के तहत से सत्ता से बाहर किया जा रहा है। उनके मुताबिक उन्होंने विदेश नीति पर अमरीकी दबाव को मानने से इनकार कर दिया और इसीलिए अमरीका नहीं चाहता कि वह सत्ता में रहें। दूसरी तरफ अमरीका ने पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार किया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन की इबारत लिखी जा चुकी है। ऐसे में पड़ोसी देश की राजनीति पर भारत की भी गहरी नजर है। हम चाहते हैं कि वहां के नए प्रधानमंत्री भारत सहित अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छा रिश्ता निभाएं, जो वैश्विक शांति के लिए जरूरी है।