श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम हो गया है कि अब उससे केवल एक महीने के लिए आवश्यक वस्तुओं का बाहर के देशों से आयात किया जा सकेगा। कर्ज के भुगतान के लिए कर्ज लेने की नौबत आ गई है। डीजल एवं अन्य पेट्रोलियम पदार्थों तथा खाद्य सामग्रियों की किल्लत हो गई है, जिस कारण इनकी कीमतें बेकाबू हो गई हैं। आवश्यक खाद्य सामग्रियों की किल्लत के कारण श्रीलंका की जनता सड़कों पर उतर चुकी है, जिसको नियंत्रित करने के लिए सरकार को आपातकाल की घोषणा भी करनी पड़ी थी। जनता की सरकार के प्रति इतनी नाराजगी बढ़ गई है कि वह राष्ट्रपति भवन को घेरने को मजबूर हो गई है। जनका के आक्रोश को देखते हुए राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को छोड़कर पूरे कैबिनेट को इस्तीफा देना पड़ा है। नए वित्त मंत्री भी तुरंत इस्तीफा देने पर विवश हुए हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सत्ता में आने के बाद श्रीलंका ने भारत को छोड़कर चीन की गोद में बैठना पसंद किया। धीरे-धीरे श्रीलंका चीन के कर्ज जाल में फंसता गया। इसका नतीजा यह हुआ है कि आज श्रीलंका  दिवालियेपन की कगार पर पहुंच चुका है। अब चीन श्रीलंका को कर्ज के भुगतान के लिए कर्ज देने की पेशकश कर रहा है। इससे बड़ा मजाक श्रीलंका के साथ और क्या हो सकता है? इस विकट स्थिति में श्रीलंका को अपने पुराने मित्र भारत की याद आई है। भारत श्रीलंका को इस संकट से बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। भारत ने एक बिलियन डॉलर क्रेडिट लाइन श्रीलंका को दी है, जिसके तहत 40 हजार टन डीजल भारत ने पहुंचाया है। इसके अलावा इतनी ही मात्रा में चावल का निर्यात किया जा रहा है। श्रीलंका को और 1.5 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन देने की प्रक्रिया चल रही है। अब तो श्रीलंका के विपक्षी दलों ने भी भारत से अपने देश को बचाने की अपील की है। मालूम हो कि अप्रैल 2019 में श्रीलंका में चर्च पर हुए हमले के बाद ही वहां राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो गया था। कोरोना काल में श्रीलंका में हुई तबाही, गलत कृषि नीति, कर्ज पर ज्यादा व्यय होने तथा राजपक्षे परिवार द्वारा ऋण के गलत इस्तेमाल के कारण श्रीलंका की आर्थिक स्थिति बिगड़ती गई। आज स्थिति यह हो गई है कि श्रीलंका में दूध, ब्रेड, चीनी, दाल जैसी जरूरी चीजों के लिए लाले पड़े हुए हैं। दवाइयों की कमी के कारण अस्पतालों में सामान्य सर्जरी नहीं हो पा रही है। बिजली की कटौती से कल-कारखाने बंद हैं। अब श्रीलंका की नजर केवल भारत की तरफ है। अब देखना है कि भारत किस हद तक श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबार सकता है।