रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच दुनिया दो धड़ों में बंटती नजर आ रही है। एक तरफ अमरीका एवं पश्चिमी देश यूक्रेन के समर्थन में आ गए हैं। ये देश रूस पर लगातार प्रतिबंध लगाकर एवं यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति कर उसकी मदद कर रहे हैं। दूसरी तरफ चीन तथा कुछ अन्य देश रूस की कार्रवाई को सही ठहरा रहे हैं। भारत पूरे मामले में तटस्थ रुख अपनाये हुए है। भारत और रूस की दोस्ती जगजाहिर है। जब भी भारत पर मुसीबत आयी रूस आगे बढक़र भारत का साथ दिया है। जब रूस पर चौतरफा आर्थिक प्रतिबंध लग रहे हैं वैसी स्थिति में भारत का रूस के खिलाफ जाना उचित नहीं है। स्थिति को देखते हुए भारत ने तटस्थ रुख अपनाये हुए है। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। भारत की बढ़ती आर्थिक एवं कूटनीतिक शक्ति के कारण दुनिया में भारत का कद बढ़ता जा रहा है। विश्व के बड़े-बड़े देश के नेता भारत की ओर रुख कर रहे हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव दो दिन की यात्रा पर भारत पहुंचे। आश्चर्य की बात यह है कि रूसी विदेश मंत्री के दिल्ली पहुंचने से पहले अमरीका के उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह दिल्ली में थे। उसी वक्त ब्रिटेन की विदेश सचिव लिज ट्रस भी दिल्ली में थीं। अमरीका और ब्रिटेन के राजनयिक भारत को अपने पक्ष में करने के लिए हरसंभव कोशिश की। अमरीका के उप-राष्ट्रीय सलाहकार ने तो यहां तक कह दिया कि अगर भारत पर चीन हमला करता है तो रूस बचाने नहीं आएगा। लेकिन भारत ने बिना किसी दबाव में आए रूसी विदेश मंत्री के साथ द्विपक्षीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर बात की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रूसी विदेश मंत्री से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुलाकात करने का समय दिया। इसके अलावा मोदी ने दुनिया के किसी विदेश मंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को मिलने का वक्त नहीं दिया। चीनी विदेश मंत्री वांग यी भी भारत आए थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने के लिए वक्त मांगा था, किंतु प्रधानमंत्री ने व्यस्तता की वजह से मिलने का मौका नहीं दिया। भारत यात्रा से पहले चीनी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान में इस्लामी देशों के फोरम से कश्मीर के मुद्दे पर जो विवादित बयान दिया था उससे भारत काफी नाराज है। रूस भारत को रियायती दर पर तेल, कोयला तथा दूसरे साज-सामान खरीदने के ऑफर दे रहा है। भारत अपने राष्ट्रहित को देखते हुए इसको स्वीकार करने से परहेज नहीं कर रहा है। अमरीका इस बात को लेकर नाराज है। भारत का कहना है कि अगर यूरोपीय देश रूस से तेल एवं प्राकृतिक गैस खरीद रहे हैं तो हम क्यों नहीं खरीदें? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रूस ने भारत को युद्ध के बीच मध्यस्थता करने का ऑफर दे दिया है। यह ऑफर रूस अभी तक किसी भी देश को नहीं दिया है। जापान के प्रधानमंत्री भी खुद भारत आए तथा उन्होंने भारत में 3.2 लाख करोड़ रुपए निवेश का ऐलान भी कर दिया। दिल्ली में दुनिया के राजनयिकों का जमावड़ा यह साबित करता है कि भारत का कद लगातार बढ़ता जा रहा है।
भारत की बढ़ती ताकत
