कलावा धारण करने की परंपरा काफी पुरानी है। आमतौर पर इसे किसी पर्व-त्योहार और पूजा-पाठ के समय धारण किया जाता है। इसके अलावा चैत्र नवरात्रि की अवधि में भी इसे धारण करना अत्यंत शुभ माना गया है। हिन्दू धर्म में कलावे को एक पवित्र धागा माना गया है। धार्मिक दृष्टि से इसे अनिष्टों से रक्षा करने वाला सूत्र कहा गया है। यही कारण है कि इसे रक्षा सूत्र भी कहते हैं। माना जाता है कि जो व्यक्ति कलावे को विधि-विधान से धारण करता है उसकी न सिर्फ अनिष्टकारी चीजों और हर प्रकार के कष्टों से रक्षा होती है अपितु व्यक्ति के जीवन पर कई शुभ प्रभाव भी पड़ते हैं। लेकिन कलावा अगर गलत नियमों के साथ या नियमों की अनदेखी कर के पहना जाए तो इसके उल्टे प्रभाव से व्यक्ति का सुख चैन नष्ट हो सकता है और उसकी हसती खेलती दुनिया सड़क पर आ सकती है। कलावे को बनाने में 3 तरह के धागों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें लाल, पीले या सफेद रंग के धागे का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि इसके 3 धागे तीन शक्तियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के प्रतीक हैं। कलावा धारण करने की सावधानियां :- धर्म शास्त्रों के मुताबिक कलावा सूत का बना होना चाहिए।  इसे मंत्रों के साथ ही बांधना चाहिए।  साथ ही इसे किसी भी दिन पूजा के बाद धारण करना चाहिए।  लाल, पीला और सफेद रंग का बना हुआ कलावा सबसे अच्छा माना गया है।  कालावे को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए ताकि उसमें किसी का पैर ना लगे।

अलग-अलग कामनाओं के लिए कौन सा कलावा धारण करेंः-

शिक्षा में उन्नति और पढ़ाई में एकाग्रता के लिए नारंगी रंग का कलावा धारण किया जाता है। इसे किसी भी बृहस्पतिवार के दिन धारण करना उत्तम माना गया है।  विवाह संबंधी समस्या को दूर करने के लिए सफेद रंग का कलावा किसी शुक्रवार के दिन सुबह के समय धारण करना चाहिए।  रोजगार और आर्थिक लाभ के लिए नीले रंग का कलावा बांधना अच्छा माना गया है। इसे किसी शनिवार की संध्या में धारण करना चाहिए। साथ ही इसे किसी बुजुर्ग से बंधवाना चाहिए।  नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के लिए काले रंग का सूती धागा बांधना चाहिए। हालांकि इसे धारण करने से पहले मां काली के चरणों में अर्पित करें। इसके साथ किसी अन्य धागे को ना बांधें।  हर प्रकार से रक्षा के लिए लाल, पीले और सफेद रंग का कलावा धारण करना उत्तम माना जाता है।