जापान ने भारत में 42 अरब डॉलर यानी 3 लाख 20 हजार करोड़ निवेश करने की घोषणा कर सबको चौंका दिया है। जापान ने यह साबित कर दिया है कि भारत उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच 19 मार्च को भारत के दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की।  दोनों नेताओं के बीच हुई बैठक में कुल छह समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। किशिदा ने चौदहवीं भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन को भी संबोधित किया। कोरोना काल के बाद पहली बार किसी जापानी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा हुई है। राजनीतिक विश्लेषक इस यात्रा पर विशेष रूप से नजर गड़ाए हुए थे। मालूम हो कि अमरीका सहित उसके सभी समर्थक देश जिसमें जापान भी शामिल है, यूक्रेन के पक्ष में खड़े हैं। नाटो के अन्य देशों की तरह जापान ने भी रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। दूसरी तरफ भारत इस पूरे मामले में तटस्थ भूमिका निभाकर एक तरह से रूस का समर्थन ही कर रहा है। ऐसी स्थिति में विश्व समुदाय की उत्सुकता स्वाभाविक थी कि जापान भारत से क्या कहता है? जापानी प्रधानमंत्री ने इतना कहा कि रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला उसकी स्वायत्तता का उल्लंघन है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। भारत इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से बचता रहा। दोनों नेताओं के बीच हुई बैठक के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, समृद्धि, स्वतंत्र नौवहन तथा अन्य मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई। मुंबई-अहमदाबाद के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन परियोजना की प्रगति के बारे में भी विस्तार से चर्चा हुई। जापान भारत के ‘मेक इन इंडिया- परियोजना में काफी दिलचस्पी ले रहा है। दोनों नेताओं के बीच स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी विचार-विमर्श हुआ। जलवायु परिवर्तन एवं सांस्कृतिक संबंधों को और आगे ले जाने पर दोनों देश सहमत हुए हैं। चीन की दादागिरी के खिलाफ बने संगठन क्वाड में भारत के साथ जापान, अमरीका एवं आस्ट्रेलिया सदस्य हैं। जापान भी चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान है। ऐसी स्थिति में जापान को भारत से सहयोग की काफी अपेक्षा है। यूक्रेन युद्ध में अमरीका की भूमिका को देखकर कई देश फिर से अपनी रणनीति तय करने में लग गए हैं। जापान एवं इजरायल जैसे देश इसके साक्षात उदाहरण हैं। भारत भी चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान है। जापान चाहता है कि भारत चीन की दादागिरी के खिलाफ उसके साथ मिलकर काम करे। यही कारण है कि भारत और जापान के बीच आर्थिक सहयोग के साथ-साथ सामरिक क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा है। जापान चाहता है कि भारत उसके क्षेत्र में ब्रह्मोस एवं अग्नि जैसे परमाणु मिसाइल तैनात करे। जापान सहित आसियान के देश भारत की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। अमरीका जैसे सुपर पावर भी चीन के खिलाफ भारत का सहयोग चाहता है। सबको मालूम है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के सहयोग के बिना चीन पर नकेल कसना काफी मुश्किल है। पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारत ने चीन को जिस तरह मुंहतोड़ जवाब दिया उससे भारत की विश्वसनीयता बढ़ी है। केवल पूर्वी लद्दाख ही नहीं, बल्कि अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय फौज चीन के खिलाफ आंख में आंख मिलाकर खड़ी है। भारत चीन की हर चाल का माकूल जवाब दे रहा है। भारत की इस भूमिका को देखते हुए चीन के पड़ोसी जापान के साथ-साथ फिलीपींस, वियतनाम, दक्षिण कोरिया एवं इंडोनेशिया जैसे देश भी भारत के साथ आकर खड़े हो रहे हैं। जापान के बड़े निवेश से भारतीय अर्थ-व्यवस्था को मजबूती मिलेगी तथा भारत को कोरोना के झटके से उबरने में भी मदद मिलेगी।