दो देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों के बनने-बिगड़ने में वर्तमान परिस्थितियां काफी प्रभावी मानी जा रही हैं। फिलहाल जारी रूस-यूक्रेन संकट ने विश्व समुदाय को दो खेमों में बांट दिया है। ऐसे में कई पुरानी दुश्मनियों पर विराम लग रहा है तो कुछ के लिए नए दुश्मन बनकर सामने आए हैं। पिछले कुछ सालों से भारत-चीन के बीच संबंध बेहतर नहीं रहे हैं, परंतु फिलहाल चीन रूस का सबसे भरोसेमंद साथी है तो दूसरी ओर भारत अपने पुराने साथी रूस से अपना मुंह मोड़ना नहीं चाहता है। ऐसे में इस मुद्दे पर भारत और चीन दोनों प्रत्यक्ष नहीं सही,परंतु अप्रत्यक्ष रूप से दोनों एक ही खेमे के खेमेदार बन गए हैं। इसलिए  गलवान घाटी मुठभेड़ के दो साल बाद ऐसा लग रहा है कि भारत और चीन आपसी संबंधों को फिर से सुधारने की नई कोशिश की तरफ बढ़ रहे हैं। भारत में कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के सर्वोच्च नेता एक दूसरे के देशों की यात्रा पर जा सकते हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार सबसे पहले चीन के विदेशमंत्री वांग यी इसी महीने भारत आ सकते हैं। उसके बाद भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर बीजिंग जा सकते हैं।  फिर और भी कई उच्च स्तरीय यात्राएं और मुलाकातें संभव हैं। इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने दावा किया कि इन सब कदमों के पीछे चीन का उद्देश्य है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ महीनों बाद चीन में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन आएं। हालांकि, भारत और चीन की सरकारों ने इनमें से किसी भी कार्यक्रम की पुष्टि नहीं की है। मौजूदा हालात देखकर दोनों देशों के सर्वोच्च नेताओं के बीच इस तरह के कार्यक्रम की संभावना कम लगती है। मई 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक मुठभेड़ के बाद दोनों देशों के आपसी रिश्ते इस कदर बिगड़ गए थे कि स्थिति आज तक सामान्य नहीं हुई है। आज भी सीमा पर कई बिंदुओं पर दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के आमने-सामने तैनात हैं। गतिरोध को मिटाने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत के 15 दौर हो चुके हैं लेकिन गतिरोध अभी भी बरकरार है। भारत कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कह भी चुका है कि दोनों देशों के रिश्तों की बेहतरी के लिए सीमांत इलाकों में शांति आवश्यक है,बल्कि बातचीत के ताजा दौर के ठीक पहले भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने यही बात दोहराई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि दोनों देशों के रिश्तों के आगे बढ़ने का आधार परस्पर आदर,परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित ही होंगे। नेताओं के बीच इन संभावित मुलाकातों पर इन मीडिया रिपोर्टों से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि अगर इन्हें चीन ने प्रस्तावित किया है तो उसका उद्देश्य क्या है। इस समय यूक्रेन युद्ध की वजह से पश्चिमी देशों की नाराजगी झेल रहे रूस की दो ही बड़े देशों भारत और चीन ने आलोचना नहीं की है। इस वजह से माना जा रहा है कि रूस,भारत और चीन एक तरफ हो रहे हैं,लेकिन भारत बहुत सावधानीपूर्वक आगे बढ़ रहा है और अभी तक उसने किसी भी गुट में शामिल होने की आतुरता नहीं दिखाई है। भारत ने यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की आलोचना भी नहीं की और संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से खुद को बाहर रखा। देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस घटनाक्रम का भारत-चीन संबंधों पर कितना असर पड़ता है। कुल मिलाकर हम सभी चाहते हैं कि भारत-रूस के बीच संबंधों में सुधार आए ताकि इस क्षेत्र में शांति की स्थापना हो सके। दूसरी ओर रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध समाप्त हो, यह हम सबकी इच्छा है, इससे विश्व के सामने बहुत बड़ा मानवीय संकट खड़ा हो गया है, जिस पर हर हाल में विराम लगना जरूरी है।