भारत की जेलों में बढ़ती भीड़ के मद्देनजर न्यायिक प्रक्रिया में नए सुधारों की मांग की जा रही है ताकि मुकदमों को निपटाने में लगने वाले समय को कम किया जा सके। साथ ही जेल में रहने वाले कैदियों की संख्या भी घटे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में जेल सांख्यिकी भारत 2020 रिपोर्ट जारी की है। यहां की जेलों में बंद हर चार में से तीन कैदी ऐसे हैं जिन्हें विचाराधीन कैदी के तौर पर जाना जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन कैदियों के ऊपर जो आरोप लगे हैं उनकी सुनवाई अदालत में चल रही है। अभी तक इनके ऊपर लगे आरोप सही साबित नहीं हुए हैं। साथ ही देश के जिला जेलों में औसतन 136 फीसदी की दर से कैदी रह रहे हैं। इसका मतलब यह है कि 100 कैदियों के रहने की जगह पर 136 कैदी रह रहे हैं। फिलहाल भारत के 410 जिला जेलों में 4,88,500 से ज्यादा कैदी बंद हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक भारत में विचाराधीन कैदियों की संख्या दुनिया भर के अन्य लोकतांत्रिक देशों की तुलना में काफी ज्यादा है। 2017 तक जेल में बंद सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदियों के मामले में भारत एशिया में तीसरे नंबर पर था। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 के मुकाबले 2020 में दोषी कैदियों की संख्या में 22 फीसदी की कमी देखी गई है, लेकिन विचाराधीन कैदियों की संख्या बढ़ी है। वहीं, दिसंबर में कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई)के एक अध्ययन से पता चला है कि पिछले दो वर्षों में जेल में रहने वालों की संख्या में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है। कोरोना महामारी के दौरान नौ लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। नतीजा ये हुआ कि जेल में रह रहे कैदियों की औसत दर 115 फीसदी से बढ़कर 133 फीसदी हो गई। उल्लेखनीय है कि जेल में बंद कैदियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। पिछले पांच वर्षों में मुकदमे के नतीजे के इंतजार में जेल में बिताया जाने वाला उनका समय भी बढ़ गया है। जेलों में बढ़ती भीड़ कम करने के लिए तत्काल कारगर उपाय लागू करने की आवश्यकता है। 2020 में जेल में बंद कैदियों में 20 हजार से ज्यादा महिलाएं थीं जिनमें से 1,427 महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी थे। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगने की घोषणा के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने जेलों की भीड़ को कम करने के लिए हर राज्य में समितियों का गठन करने का निर्देश दिया था। हालांकि, उस समय कई कैदियों को अस्थायी रूप से रिहा किया गया और एक साल के भीतर उन्हें फिर से जेल में बंद कर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि अदालतों को जमानत की प्रक्रिया को आसान बनाने के नए मानदंड निर्धारित करने के लिए विशेष कदम उठाना चाहिए। खासकर उन मामलों में जहां मुकदमे लंबे समय तक चलते हैं और आरोपी वर्षों से जेल में हैं। 490 बिस्तरों वाला जेल परिसर 37 एकड़ में फैला है। मुख्य रूप से जमीन के ऊपर है। 7 गुना 12 फीट की हर कोठरी में टीवी के अलावा टॉयलेट, शॉवर, बिस्तर और एक टेबल है। सब कुछ कंक्रीट का बना है। बाहर देखने वाली खिड़की महज कुछ इंच की है। पूरे परिसर में रिमोट कंट्रोल वाले 14,000 दरवाजे हैं, कैदी हर वक्त हरकत पकड़ने वाले कैमरे की निगाह में रहते हैं। दुर्भाग्य है कि हमारे पास ऐसा कोई तंत्र या संस्था नहीं है जिसके जरिए कैदियों की बात सुनी जाए। तकनीकी तौर पर जेल में बंद कैदी इस बात के हकदार हैं कि उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक सम्मान और अधिकार मिले। हालांकि भारतीय संविधान के तहत मिले अधिकार जेलों के दरवाजों तक ही सीमित रह जाते हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारतीय जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों में से 70 फीसदी से अधिक कैदी हाशिए पर मौजूद वर्ग, जाति, धर्म और लिंग से हैं।
कैदियों की समस्या
