रूस-यूक्रेन के बीच पिछले आठ दिनों से चल रहे भीषण युद्ध का असर दुनिया के हरेक क्षेत्र में पड़ना शुरू हो गया है।  विभिन्न देशों द्वारा रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंध का असर  वहां की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ना शुरू हो गया है। रूसी मुद्रा रूबल का मूल्य लगातार गिरता जा रहा है। अभी तक रूबल की कीमतों में 30 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। दुनिया के शेयर बाजारों में भी इस युद्ध का असर दिखाई दे रहा है। भारतीय शेयर बाजार में भी सेंसेक्स और निफ्टी में लगातार गिरावट हो रही है। रूस कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस की आपूर्ति भारत सहित दुनिया के कई देशों में करता है। रूस की तरफ से यह आपूर्ति बंद होने से कच्चे तेल की कीमतों में काफी तेजी आ गई है। 3 मार्च तक इसकी कीमतों में 3 प्रतिशत तक वृद्धि हो चुकी है। इसका नतीजा यह है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 117 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है। पिछले एक दशक के दौरान यह कीमत सबसे ज्यादा है। अगर युद्ध आगे भी जारी रही तो कीमतों में और वृद्धि हो सकती है। अमरीका तथा कुछ अन्य देशों द्वारा ओपेक देशों से कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की अपील पर कोई असर नहीं हुआ है। ओपेक देश शायद बढ़ी हुई कीमत का लाभ उठाना चाहते हैं। इस वर्ष के शुरू से ही कच्चे तेल की कीमतों में लगातार तेजी आ रही है। भारत भी बाहर से आपूर्ति होने वाले कच्चे तेल पर निर्भर है। ऐसी स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ने का सीधा असर भारत भी पड़ेगा। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चल रहे चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने पिछले तीन महीनों से पेट्रोल व डीजल की कीमतों में वृद्धि पर रोक लगा रखी है। विशेषज्ञों का मानना है कि 10 मार्च को होने वाली मतगणना के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 9 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि हो सकती है। लेकिन अगर यूक्रेन की समस्या आगे खिंचती है तो इसकी कीमतों में और उछाल आ सकती है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में उछाल का असर आवश्यक खाद्य सामग्री पर पड़ता है। तेल की बढ़ती कीमतों का बहाना बनाकर वाणिज्यिक गाड़ियां अपना रेट बढ़ा देती हैं। खाद्य सामग्री की ढुलाई के लिए व्यापारियों से ज्यादा पैसा वसूलती है, जिसका खामियाजा अंततः उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है। वैसे भी पिछले वर्ष से ही कोरोना काल के दौरान जनता महंगाई की मार झेल रही है। आमदनी कम होने एवं खर्चा ज्यादा होने के कारण परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। बढ़ी हुई महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है। दालों, सब्जियों तथा अन्य खाद्य सामग्रियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। वर्तमान परिस्थिति में अगर रूस-यूक्रेन युद्ध की मार जनता को और रुला सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार को कारगर कदम उठाने की जरूरत है। रसोई गैस की कीमतें भी महंगाई से अछूता नहीं रहेगी। वाणिज्यिक सिलेंडरों के दाम में पहले ही तेजी आ चुकी है। असम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए और समस्या पैदा हो सकती है। मालूम हो कि असम में अधिकांश खाद्य सामग्रियां रेल एवं सड़क मार्ग लायी जाती है। भाड़ा बढ़ने के साथ ही खाद्य सामग्रियों की कीमतों में तेजी आना स्वाभाविक है। दुकानदार तो इसका फायदा उठाकर मनमानी तरीके से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ा देते हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों को इस दिशा में लगातार निगरानी रखने की जरूरत है।