भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु व महेश त्रिदेवों में भगवान शिव संपूर्ण ब्रह्माण्ड के पालनहार, अकाल मृत्युहर्ता तथा सर्वसिद्धिदाता माने गए हैं। भगवान शिवजी की महिमा में फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि का पर्व हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष की कन्या सती का विवाह भगवान शिवजी से इसी दिन हुआ था। पौराणिक मान्यता है कि चतुर्दशी तिथि के दिन निशा बेला में भगवान शिव ज्योतिॄलग के रूप में अवतरित हुए थे जिसके फलस्वरूप महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 28 फरवरी, सोमवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 17 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 1 मार्च, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 1 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्दशी तिथि (महानिशीथकाल रात्रि 11 बजकर 43 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक) में मध्यरात्रि में भगवान शिवजी की पूजा विशेष पुण्य फलदाई होती है।
शिव आराधना का विधान : विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को चतुर्दशी तिथि के दिन व्रत उपवास रखकर भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। त्रयोदशी तिथि के दिन एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए। व्रतकर्ता को तिल, बेलपत्र व खीर से हवन करने के पश्चात् अपने व्रत का पारण करना चाहिए।
क्या करें अर्पित : भगवान शिवजी का दूध व जल से अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, चंदन, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगंधित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा का विशेष फल मिलता है।