रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध जैसे-जैसे लंबा खींच रहा है, उसके साथ ही खतरा और बढ़ता जा रहा है। अमरीका और यूरोपीय देशों से मिल रही सैन्य मदद से उत्साहित यूक्रेन लगातार पलटवार कर रहा है। यूक्रेनी राष्ट्रपति अपने समर्थक देशों से सैन्य सहायता देने की अपील कर रहे हैं। प्रतिबंधों के साथ-साथ अमरीका, फ्रांस एवं जर्मनी जैसे देश यूक्रेन के लिए सैन्य सहायता एवं हथियार आदि की आपूर्ति कर रहे हैं। जर्मनी ने यूक्रेन को एंटी टैंक मिसाइल एवं कुछ हथियारों की आपूर्ति की है। 28 फरवरी को यह युद्ध पांचवें दिन में प्रवेश कर गया है। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधि मंडलों के बीच बेलारूस में बैठक भी हुई है, किंतु यह बैठक बेनतीजा रही। रूस हर कीमत पर यूक्रेन के वर्तमान नेतृत्व को हटाना चाहता है, किंतु यूक्रेन इसके लिए तैयार नहीं है। भारत सहित कुछ देश चाहते हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच की समस्या का समाधान बातचीत से हल हो। लेकिन इसके लिए संबंधित दोनों पक्षों को व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। नाटो द्वारा रूस को धमकी देने के बाद नाराज रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने परमाणु युद्ध की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। पुतिन ने अपने न्यूक्लियर फोर्सेज तथा पैसिफिक कमान को सक्रिय कर दिया है। यूक्रेन पर अपनी पकड़ बनाने के लिए पुतिन किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। अगर नाटो ने यूक्रेन में अपनी सेना भेजी तो रूस निश्चित रूप से परमाणु हमला करने पर उतर आएगा। अमरीका और पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत रूस के खिलाफ लगाए जा रहे प्रतिबंध एवं अन्य कार्रवाई में साथ दे। लेकिन भारत कई दशकों से रूस द्वारा किए गए एहसान को कैसे भूल सकता है? 1971 के युद्ध में तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) भारत के साथ चट्टान की तरह खड़ा था। इसका नतीजा यह हुआ अमरीका और पश्चिमी देशों की हिम्मत पाकिस्तान के समर्थन में आने की नहीं हुई। यूक्रेन हमेशा भारत के विरुद्ध आवाज उठाता रहा है। 1998 में हुए पोखरण परमाणु परीक्षण के दौरान यूक्रेन अमरीका एवं यूरोपीय देशों के साथ भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाने के पक्ष में खड़ा रहा। 17 दिन बाद जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया तो यूक्रेन ने चुप्पी साध ली थी। करगिल युद्ध के वक्त तथा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 तथा 35ए हटने के वक्त भी यूक्रेन भारत के खिलाफ रहा है। यूक्रेन पिछले 30 वर्षों से पाकिस्तान को हथियार की आपूर्ति कर रहा है। ऐसी स्थिति में भारत को इस युद्ध में सोच-समझ कर कदम उठाना होगा। रूस कभी भी भारत के हितों के खिलाफ नहीं गया। ऐसे वक्त में भारत को कम से कम तटस्थ रहना ही उचित होगा। आज अमरीका के साथ भारत के बहुत अच्छे संबंध हैं, किंतु अमरीका जैसे देश पर आंख बंद कर विश्वास नहीं किया जा सकता। भारत को अपने राष्ट्रीय हित को भी देखना होगा, क्योंकि अगर भारत अमरीकी खेमे में चला गया तो इसका फायदा उठाने में चीन पीछे नहीं हटेगा। अगर रूस-चीन इकट्ठे हो गए तो एशिया में सामरिक संतुलन बिगड़ जाएगा, जो भारत के हित में नहीं है। भारत-रूस की दोस्ती कई अग्नि-परीक्षा से गुजर चुकी है। भारत को यह कोशिश करनी चाहिए कि समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो तथा विश्व परमाणु युद्ध की ज्वाला में जाने से बच जाए। सभी पक्षों को संयम से काम लेने की जरूरत है।
परमाणु युद्ध का खतरा
