हिजाब पहनने को लेकर पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है। कर्नाटक के उडुपी स्थित एक स्कूल से शुरू हुआ विवाद देश के कई इलाकों में फैल गया है। हिजाब पहनने के समर्थक और विरोधी दोनों ही सड़कों पर उतर आए हैं तथा इस मुद्दे की व्याख्या अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं। अब तो इसकी आंच पड़ोसी देश पाकिस्तान से लेकर अमरीका तक पहुंच गई है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी तथा सूचना मंत्री फवाद हुसैन हिजाब समर्थकों के समर्थन में कूद गए हैं। पाकिस्तान ने तो इस मुद्दे पर भारतीय उच्चायुक्त को भी तलब किया था। इस मुद्दे पर अमरीका का भी बयान आया था। पाकिस्तान एवं अमरीका दोनों के बयानों पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आईना दिखाया है। पाकिस्तान को भारत के मामले में टिप्पणी करने से पहले अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए। पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं एवं सिखों सहित सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोग नारकीय जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं। शरिया कानून के तहत उनको प्रताड़ित किया जाता है। अमरीका को भी टिप्पणी करने से पहले अपने यहां की स्थिति पर नजर दौड़ा लेना चाहिए। जनवरी में अचानक कर्नाटक में हिजाब का मुद्दा उठना आश्चर्यजनक है। इससे पहले 31 दिसंबर तक ऐसी कोई समस्या नहीं थी, किंतु अचानक इस समस्या के आने पर प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं। ऐसी खबर है कि इसके पीछे कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) का हाथ है जो विवादित संगठन पीएफआई का सहयोगी संगठन है। खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संगठन धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने के लिए काम करता है। सीएफआई पिछले कुछ महीनों से मुस्लिम छात्राओं को गुमराह करने में लगा हुआ है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उछाल दिया है, ताकि मतों का ध्रुवीकरण हो सके। ओवैशी जैसे नेताओं ने मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए हिजाब के मुद्दे को मूल अधिकारों से जोड़ना शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ भाजपा ने भी हिजाब के मुद्दे पर हिंदू मतदाताओं को अपने पाले में खींचने के लिए आए मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। चुनावी महाभारत में हिजाब का मुद्दा कितना सफल होगा यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। स्कूल और कॉलेज विद्या का मंदिर होता है। स्कूलों तथा कॉलेजों में ड्रेस कोड निर्धारित होता है, जिसका पालन विद्यार्थियों को करना होता है। ड्रेस कोड से हिजाब को जोड़ना किसी भी रूप में जायज नहीं है। हिजाब के नाम शैक्षणिक वातावरण खराब करना न्यायोचित नहीं है। अब तो इस मामले की सुनवाई कर्नाटक हाईकोर्ट कर रहा है। कोर्ट का फैसला आने तक इस मुद्दे पर राजनीति करना सही नहीं है। शिक्षा के नाम पर धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देना उचित नहीं है, चाहे वह किसी भी पक्ष की तरफ से हो।