पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस को लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं। सर्वप्रथम ममता बनर्जी ने कांग्रेस को तोड़ने करने का काम शुरू किया। असम से कांग्रेस की जुझारू नेता सुष्मिता देव को ममता ने अपने पाले में खींचा। उसके बाद गोवा, त्रिपुरा तथा अन्य राज्यों के कई कांग्रेसी नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल करवाया। राष्ट्रीय नेता बनने के चक्कर में ममता ने पश्चिम बंगाल से बाहर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए अभियान शुरू किया है। ममता की मुहिम से कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका मेघालय में लगा था जहां पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा सहित 12 विधायकों ने अचानक कांग्रेस का साथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा में कांग्रेस के 17 सदस्यों में से केवल पांच सदस्य ही बच गए थे। अब कांग्रेस को दूसरा सबसे बड़ा झटका मंगलवार को लगा है। मेघालय कांग्रेस के बचे सभी पांच विधायकों ने मुख्यमंत्री कोनराड संगमा से भेंट कर मेघालय जनतांत्रिक गठबंधन (एमडीए) का समर्थन करने का ऐलान कर दिया। कांग्रेसी विधायकों ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को एक लिखित समर्थन-पत्र सौंपा है, जिसमें कांग्रेस विधायक दल के नेता अमपरीन लिंग्दोह सहित पांचों विधायकों के हस्ताक्षर हैं। हालांकि अभी तक ये पांचों विधायक कांग्रेस में ही हैं, किंतु ऐसी उम्मीद है कि देर-सबेर कांग्रेस को बाय-बाय कर देंगे। मुख्यमंत्री संगमा ने कांग्रेसी विधायकों का स्वागत करते हुए कहा कि आपके आने से मेघालय में विकास की गति और तेज होगी। मालूम हो कि नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की नेतृत्व वाली एमडीए में भाजपा भी शामिल है। भाजपा विधायक सोनबोर शुल्लाई मंत्री भी हैं। इन लोगों ने पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी को भी अपने निर्णय से अवगत करा दिया है। अब मेघालय विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बन गई है, जिसके पास 12 विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 21 सीटें मिली थी, किंतु वह सरकार नहीं बना सकी। भाजपा के सहयोग से एमडीए गठबंधन सरकार बनाने में सफल रही। पिछले कुछ वर्षों से पार्टी हाई कमान की नीतियों से पार्टी नेताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है। जी-23 के नाम से कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी हाई कमान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल जैसे नेता समय-समय पर पार्टी को आईना दिखाते रहे हैं। राहुल गांधी के कार्यकलाप से बहुत-से कांग्रेसी नेता नाराज हैं। उनकी नाराजगी पार्टी से पलायन के रूप में दिखाई दे रही है। पंजाब में जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां भी कांग्रेस के भीतर घमासान मचा हुआ है। प्रदेश अध्यक्ष नवजोतसिंह सिद्धू तथा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच तलवारें खिंची हुई हैं। इसका फायदा सबसे ज्यादा आम आदमी पार्टी को मिलता दिख रहा है। पिछले कुछ महीनों से पंजाब में कांग्रेस की साख गिरी है, उसकी भरपाई मुश्किल लग रही है। उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस अपने जनाधार को पाने के लिए पूरा जोर लगाए हुई है, किंतु उसमें सफल होने की उम्मीद कम ही है। कांग्रेस को अब आत्ममंथन करने की जरूरत है।
कांग्रेस को झटका
