लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थीं, जो अब नहीं रहीं। उमर 92 साल हो चली थीं। कोरोना और निमोनिया से 29 दिनों तक लड़ीं भी, लेकिन आखिरकार रविवार की सुबह सवा आठ बजे हम सबको, देश को, दुनिया को ना कह गईं। इलाज मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में चल रहा था। उनके निधन पर 2 दिन का राष्ट्रीय शोक रहेगा। देशभर में झंडा आधा झुका रहेगा। इससे पहले, सेना के जवान लता जी के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर घर से बाहर लाए। इसके बाद आर्मी, नेवी, एयरफोर्स और महाराष्ट्र पुलिस के जवानों ने उनकी अर्थी को कंधा दिया और उनकी अंतिम यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी सहित देश के गणमान्य हस्तियों ने भाग लेकर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। उनका छह दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फिल्मी और गैर-फिल्मी गाने गाए हैं, लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्व गायिका के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फिल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। उनकी जादुई आवाज के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्व गायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। भारत सरकार ने उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया था। प्यार से उन्हें लता दीदी कहकर पुकारते हैं। लता का जन्म गोमंतक मराठा समाज परिवार में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में सबसे बड़ी बेटी के रूप में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता रंगमंच एलजीके कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिए चुना। हालांकि लता का जन्म इंदौर में हुआ था, लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई। वह बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं। बचपन में कुंदन लाल सहगल की एक फिल्म चंडीदास देखकर उन्होंने कहा था कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेंगी। पहली बार लता ने वसंत जोगलेकर की ओर से निर्देशित एक फिल्म कीर्ति हसाल के लिए गाया। उनके पिता नहीं चाहते थे कि लता फिल्मों के लिए गाए। इसलिए इस गाने को फिल्म से निकाल दिया गया। लेकिन उसकी प्रतिभा से वसंत जोगलेकर काफी प्रभावित हुए। वर्ष 1942 में पिता की मृत्यु के बाद लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी मां (1945), जीवन यात्रा (1946), मांद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थीं। बड़ी मां, में लता ने नूरजहां के साथ अभिनय किया और उसकी छोटी बहन की भूमिका आशा भोंसले ने निभाई थी। उन्होंने खुद की भूमिका के लिए गाने भी गाए और आशा के लिए पार्श्व गायन किया। जब इनके पिताजी का देहांत हुआ था, उस समय इनकी आयु मात्र तेरह वर्ष थी। भाई बहिनों में बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ भी उनके कंधों पर आ गया था। दूसरी ओर उन्हें अपने कैरियर की तलाश भी थी। जिस समय लता ने (1948) में पार्श्व गायिकी में कदम रखा तब इस क्षेत्र में नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी आदि की तूती बोलती थी। ऐसे में उनके लिए अपनी पहचान बनाना इतना आसान नहीं था, परंतु इसी बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। अब जब वे इस दुनिया में नहीं हैं तो उनकी याद आना लाजिमी है। आज भारतीय गीत- संगीत का एक युग समाप्त हो गया, जो लता युग के रूप में सदैव याद किया जाएगा।
अलविदा स्वर साम्राज्ञी
