उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से कुछ ही सप्ताह पहले भाजपा के विधायकों ने इस्तीफा देकर पार्टी को चौंका दिया। इसके पीछे निजी महत्वाकांक्षाएं तो हैं ही लेकिन इससे पार्टी के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं,इनमें से अधिकांश ने समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम लिया है। खासतौर पर पडरौना से विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य के योगी सरकार में श्रम मंत्री के पद से इस्तीफे के बाद राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है। विधानसभा चुनावों में एक महीने का समय भी नहीं बचा है और ऐसे समय में मंत्री पद पर बैठे नेता का इस्तीफा सरकार और पार्टी की छवि के लिए नुकसानदेह हो सकता है। राज्यपाल को अपना इस्तीफा भेजते हुए मौर्य ने लिखा था कि वो दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों और छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की उपेक्षात्मक रवैए के कारण उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि उन्होंने अपने बेटे समेत कई सहयोगियों के लिए पार्टी से आने वाले चुनावों में टिकट की मांग की थी और इस्तीफे का कारण इस मांग का अस्वीकार किया जाना था। उनके बेटे उत्कृृष्ट मौर्य ने 2017 में बीजेपी के टिकट पर ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था लेकिन वो समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार पांडे से हार गए। मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य अभी भी बीजेपी में हैं और बदाऊं से सांसद हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मौर्य के साथ एक तस्वीर ट्वीट की और लिखा कि उनका और उनके समर्थकों का सपा में स्वागत है और बड़े ताम-झाम के साथ वे सपा में शामिल भी हो गए हैं। उनके इस्तीफे का बीजेपी पर क्या असर हुआ इसका अंदाजा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के ट्वीट से लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वामी प्रसाद मौर्य से बैठकर बात करने की अपील की। कहा जा रहा है कि बीजेपी चिंतित है कि चूंकि मौर्य पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं,उनके चले जाने से जनता में कहीं यह संदेश ना चला जाए कि पिछड़ी जातियां बीजेपी से नाराज हैं। खबर है कि बीजेपी के कई विधायक भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो चुके हैं। इससे बीजेपी पर सिर्फ तथाकथित अगड़ों के हितों के लिए काम करने के आरोपों के सपा के अभियान को बल मिलेगा। इसके अलावा सपा यह संदेश भी दे पाएगी कि पार्टी के अंदर यादवों के अलावा दूसरी पिछड़ी जातियों को भी महत्व दिया जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि पार्टी छोड़ने का यह सिलसिला बीजेपी तक सीमित रहता है और या दूसरी पार्टियों को भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है। फिर भी धरातल पर भाजपा काफी मजबूत है। कुछ मंत्रियों और विधायकों को महज पार्टी छोड़ देने से यह कतई नहीं मानना चाहिए कि भाजपा उत्तर प्रदेश में चुनावी लड़ाई से बाहर हो गई है। कारण कि पार्टी ने यूपी चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोक दी है। वह राम मंदिर, फ्री राशन और किसान निधि और अन्य लाभकारी योजनाओं के नाम पर जनता के पास जा रही है और वोट मांग रही है। जानकार बताते हैं कि ऐसी योजनाएं जिनसे आम लोग लाभान्वित होते हैं,उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फायदा सत्ताधारी पार्टी को पहुंचता है,परंतु यूपी जैसे राज्य में जातीय समीकरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर प्रदेश में अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं,जिनका नकारात्मक असर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। फिर भी इस महासमर में किसकी हार और किसकी जीत होगी, इस पर से पर्दा 10 मार्च को होने वाली मतगणना के बाद ही हट पाएगा, जिसका हमें इंतजार करना चाहिए और लोकतंत्र का तकाजा भी यही है।
यूपी विस चुनाव
