राजनीति और हिंसा का वैसा ही संबंध है, जैसा-चोली और दामन का होता है। आज पूरी दुनिया में हिंसक रणनीति और गतिविधि के बिना राजनीति की परिकल्पना नहीं की जा सकती। अंग्रेजों के बारे में कहा जाता है कि वे बांटो और राज करो की नीति अपनाते थे, परंतु आज भारत में ऐसी कोई पार्टी नहीं है,जो इस फार्मूले को फलीफूत करने से पीछे हो। आज लोगों को जाति, धर्म, कुल, खानदान, समुदाय, आदिवासी-गैर आदिवासी, रंग, नस्ल जैसे विभिन्न पैमाने को अपनाकर चुनावी समीकरण को बदलने और अपनी जीत सुनिश्चित करने की तैयारी चल रही है,परंतु ऐसी दुर्भाग्यजनक घटनाएं वहां हो रही हैं,जहां शत-प्रतिशत लोग साक्षर हैं और उनकी बौधिक क्षमता पर किसी भी तरह का शकों-सुब्हा नहीं कर सकते। समझ नहीं आता कि इन दिनों अपनी नई राजनीतिक संभावनाओं को तलाशते दल और संगठन उसका आगाज हत्या और प्रतिहत्या से क्यों करते हैं? केरल के एक ही जिले में 12 घंटों के अंदर एसडीपीआई और बीजेपी के दो नेताओं की हत्या कर दी गई। हत्याओं के बाद पूरे जिले में तनाव के बीच धारा 144 लगा दी गई है। सबसे पहले शनिवार शाम को एसडीपीआई नेता केएस शान की सड़क पर हत्या की गई। 38 वर्षीय शान अपने घर जा रहे थे तभी रास्ते में एक गाड़ी ने उनकी मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी। फिर उसी गाड़ी में से चार लोग उतरे,शान पर चाकू से कई बार वार किया और उसी गाड़ी में सवार होकर वहां से भाग गए। शान ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया। अगली सुबह कुछ लोगों ने राज्य में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के सचिव रंजीत श्रीनिवासन के घर में घुसकर उनकी मां, उनकी पत्नी और उनकी बेटी के सामने उनकी हत्या कर दी। पुलिस दोनों हत्याओं की जांच कर रही है। करीब 50 लोगों को हिरासत में ले लिया गया,जिनमें से अधिकांश बीजेपी,आरएसएस और एसडीपीआई के कार्यकर्ता हैं। राज्य के आलपुर्रा जिले में इस समय धारा 144 लागू है। केरल में बीजेपी के अध्यक्ष के. सुरेंद्र्रन ने सीधे-सीधे श्रीनिवासन की हत्या का आरोप पॉप्युलर फ्रं ट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर लगाया एसडीपीआई पीएफआई का ही राजनीतिक संगठन है। साथ ही सुरेंद्रन ने शान की हत्या के पीछे आरएसएस और बीजेपी की कोई भी भूमिका होने से इनकार किया। एसडीपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष एमके फैजी ने शान की हत्या का आरोप आरएसएस पर लगाया है। केरल में इस तरह की राजनीतिक हत्याओं का एक लंबा इतिहास है। पिछले 15 सालों में राज्य में 125 राजनीतिक हत्याएं हुईं,जिनमें लगभग बराबर की संख्या में आरएसएस और सीपीएम के कार्यकर्ता मारे गए हैं। आज तक इन हत्याओं की संस्थागत रूप से ना जांच हो पाई है और ना किसी को सजा दी गई है। 2009 में एसडीपीआई की स्थापना के बाद इस पार्टी के कार्यकर्ता भी इस हिंसा की जद में आने लगे। बाद में उन पर भी इस हिंसा में शामिल होने के आरोप लगने लगे। 2014 में केरल सरकार ने केरल हाई कोर्ट को एक हलफनामे में बताया था कि पीएफआई और उससे जुड़े एक और संगठन एनडीएफ के कार्यकर्ताओं को 27 हत्याओं, 86 हत्या की कोशिश के मामलों और सांप्रदायिक हिंसा के 106 दूसरे मामलों में शामिल पाया गया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि लोकतंत्र में सभी राजनीतिक पार्टियों को अपना दायरा बढ़ाने का अधिकार है,इसके लिए वे बड़े पैमाने पर अपना प्रचार अभियान चला सकते हैं। सभा, जुलूस और रैली का आयोजन करने की उन्हें पूरी स्वतंत्रता है,परंतु गला काट राजनीति को प्रशय देना सही नहीं है और यह मानवता के खिलाफ है। इसलिए गला काट राजनीति हर हाल में बंद होनी चाहिए और इसे प्रोत्साहित करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए ताकि ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लग सके।
राजनीतिक हत्याएं
