पानी हमारे लिए कितना अहम है। यह सभी जानते हैं। एक तरफ हमारे शरीर के 70 फीसदी से ज्यादा हिस्से में पानी है तो दूसरी तरफ धरती का 71 फीसदी हिस्सा पानी से ढका हुआ है। केवल तीन फीसदी पानी ही पीने योग्य है। धरती और पानी बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी नई पीढ़ी पर है। वर्तमान परिदृश्य में जल संरक्षण की अहमियत पर गंभीरता से मंथन और क्रियान्वयन अब बेहद जरूरी हो गया है। संस्कारों से ही पानी की बचत कर सकते हैं और पर्यावरण सुधार सकते हैं। नीर को बचाने के लिए नारी को आगे लाना होगा, ऐसा ईको रूट फाउंडेशन के अध्यक्ष राकेश खत्री का मानना है। पर्यावरणविद राकेश खत्री इन दिनों पानी को लेकर देश के 16 शहरों में 160 स्कूलों पर काम कर रहे हैं। नीर-नारी और विज्ञान पर आधारित थिएटरों को देश के 16 शहरों में किया जा रहा है और यह 160 स्कूलों में क्रमबद्ध तरीके से संचालित हो रहे हैं। हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, चंडीगढ़, ओडिशा आदि शहरों में आयोजित किया जा चुका है और बाकी शहरों में संचालित करने का सिलसिला जारी है। इसके लिए छोटे शहरों का चुनाव किया गया है। इसके लिए छठी क्लास से नवीं क्लास के बच्चों को शामिल किया जाता है। थिएटर के जरिए मंचन होनेवाले इस जागरूकता से भरे कार्यक्रम का मकसद यही है कि विज्ञान की बेहद सरल भाषा में नारी के जरिए नीर को समझा जाए और समय रहते उसके महत्व का आकलन कर उसे संरक्षित करने का प्रयास किया जाए। वो बात माइम के जरिए लोगों तक पहुंचे। या फिर पोस्टर पर लिखे शब्द जल की निर्मल या अविरल धारा को प्रवाहित करते हो। या फिर कलाकार अपनी भूमिकाओं के जरिए मानव मस्तिष्क में पैठ बनाए और नीर-नारी और विज्ञान को हर अंदाज में सार्थक कर दें। मकसद वहीं की नारी नीर को विज्ञान की सरल भाषा में समझाती हो। दरअसल पुराने दौर की कहावतों और कथनों को आज की युवा पीढ़ी बड़ी शिद्दत से फॉलो करती है। ठीक उसी प्रकार विज्ञान को आसान मिसालों के जरिए किसी भी तथ्य को समझाने की कोशिश की जाए तो वह बड़ी आसानी से आपके अंतःकरण में उतरता चला जाता है। वैसे भी जब नीर को नारी का साथ मिल जाए तो यह स्थिति सोने पर सुहागा से कम नहीं।
जल संरक्षण की अनोखी पहल
