बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में जब पाकिस्तानी सेना ने हथियार डाले, तब दक्षिण एशिया के इस नए आजाद हुए देश की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में थी। देश की 80 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीबी में जी रही थी। फिर अगले कुछ बरसों तक बांग्लादेश सैन्य तख्तापलट, राजनीतिक संकट, गरीबी और अकाल से जूझता रहा। लेकिन अब जबकि ये अपनी आजादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है, तब हालात पहले से बहुत बेहतर हो चुके हैं। 16 दिसंबर,1971 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सेना ने हार स्वीकार की। इसी दिन की याद में बांग्लादेश में विजय दिवस मनाया जाता है और सरकारी छुट्टी होती है। सत्तर के दशक में ये कहा जाता था कि अगर बांग्लादेश का आर्थिक विकास हो सकता है, तो किसी भी देश का आर्थिक विकास हो सकता है।  इस मामले में बांग्लादेश खरा उतरा है। विकास के मुद्दे पर बांग्लादेश को एक उदाहरण की तरह देखा जा रहा है,जिस पर सबकी निगाहें थीं। शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश उन्नति के पथ पर अग्रसर है।  संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पिछले महीने बांग्लादेश और नेपाल समेत तीन देशों को न्यूनतम विकसित देश (एलडीसी) की श्रेणी से विकासशील देशों की सूची में शामिल करने संबंधी एक ऐतिहासिक प्रस्ताव को अंगीकृत किया। इन देशों की प्रगति को प्रदर्शित करने वाली यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने अपने 76वें सत्र में इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। दर्जा बढ़ोतरी के लिए मंजूरी पाने वाले तीन देश बांग्लादेश, नेपाल और लाओस हैं। संयुक्त राष्ट्र ने  एक बयान में कहा कि पांच साल की असाधारण रूप से विस्तारित प्रारंभिक अवधि (मानक अवधि तीन वर्ष की है) के बाद तीनों देश एलडीसी श्रेणी से उन्नत होंगे। कोविड-19 के हालात से उत्पन्न आर्थिक और सामाजिक झटकों के बावजूद महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उपायों और नीतियों तथा रणनीतियों को बेहतर तरीके से लागू करने के बीच यह दर्जा बढ़ाया गया है। यह बांग्लादेश की विकास यात्रा के लिए ऐतिहासिक मील का पत्थर है। यह एक दशक से अधिक की प्रगति का प्रतिबिंब है। संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में जब बांग्लादेश को एलडीसी समूह में शामिल किया तो देश की गरीबी दर 83 प्रतिशत थी। पिछले कुछ वर्षों में गरीबी दर में गिरावट आई है और कोविड-19 महामारी से पहले 2019-20 में यह दर 20.5 प्रतिशत थी। उल्लेखनीय है कि महामारी की मार झेलने के बावजूद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है। आज बांग्लादेश अपनी करीब 16.7 करोड़ की आबादी का पेट भरने लायक अनाज उगाता है। दुनिया के कई देशों से उलट यहां जच्चा-बच्चा मृत्युदर में भी खासी कमी आई है। साल 2015 में बांग्लादेश ने निम्न-मध्यम आय वाले देश का दर्जा हासिल कर लिया था। अब यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे कम विकसित देशों की सूची से निकलने की राह पर है। आज की तारीख में देशभर के 98 फीसदी बच्चे प्राइमरी शिक्षा हासिल कर चुके हैं और सेकेंड्री स्कूलों में लड़कों की तुलना में लड़कियां ज़्यादा हैं। बीते कुछ वर्षों में इस मुस्लिम-बहुल राष्ट्र ने लड़कियों और महिलाओं की जिंदगियों को बेहतर बनाने में भारी निवेश किया है। बच्चों के कुपोषण और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य के मुद्दे पर भी इसने प्रगति की है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बांग्लादेश ने पिछले पचास साल में अपना स्वर्णिम सफर को तय किया है, इसमें कोई शक नहीं है, परंतु उसे विश्व समुदाय में सम्मान योग्य स्थान पाने के लिए और कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने प्रयास में और तेजी लानी होगी।