पूर्वांचल प्रहरी एक संवाददाता
गुवाहाटी : इन दिनों दीपर बिल में रंग बिरंगे प्रवासी मेहमान पक्षियों का डेरा है। शीत कालीन प्रवास के लिए सुदूर देशों से आए इन पक्षियों के संगीतमय कलरव से पूरी घाटी गुंजायमान है। बिल में इन प्रवासी पक्षियों के जोड़ा बनाने की प्रेम क्रीड़ा का अनोखा और अछ्वुत दृश्य देखते ही बन रहा है। प्रवासी पक्षियों की किलकारी देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित कर रही है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार ये पक्षी सुदूर साईबेरिया, नार्थ अमरीका, रूस, मंगोलिया, तिब्बत आदि देशों से 15 से 20 दिन का सफर तय करके यहां पहुंचते हैं। यहां पहुंचने वाले पक्षियों में मलार्ड, रेल सील, ब्लैक हेडेड, आईसीस नार्दन लेकडाउन, रीम स्लेवर, ओपेन किस्ट्रोक, सेंड डीपर आदि विभिन्न प्रजाति के पक्षी शामिल हैं। हालांकि इस वर्ष दीपर बिल में आनेवाली प्रवासी पक्षियों की संख्या में कमी आई है। बृहत्तर बोरा गांव नागरिक एक्यमंच, पश्चिम गुवाहाटी जागरूक नागरिक मंच समेत विभिन्न संगठनों की ओर से पेश रिपोर्ट के अनुासर पहले दीपर बिल में मेहमान पक्षियों की संख्या 19 हजार से अधिक थी पर अभी इनकी संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है। अभी प्रवासी पक्षियों की संख्या 4 हजार से भी कम बताई जा रही है, जो पर्यावरण के लिए चिंता का विषय है। स्थानीय पक्षी प्रेमियों के अनुसार दिन प्रतिदिन डंपिंग ग्राउंड से बढ़ रहे प्रदूषण की वजह से दीपर बिल प्रदूषित हो रहा है, जो इन मेहमान पक्षियों की संख्या में कमी का प्रमुख कारण है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार प्रवासी पक्षी अपना अधिकांश सफर दिन में तय करते हैं और रात में किसी झील या सरोवर के किनारे विश्राम करते हैं। पूरी यात्रा के दौरान पंक्षियों का मुखिया आगे आगे रहता है। शेष पक्षी उसका अनुसरण करते हैं। वन विभाग के सूत्रों ने आज यहां बताया कि बड़ी तादाद में सौ से अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षी अब तक यहां आ चुके हैं। करीब तीन माह प्रवास करने के बाद यह पक्षी वापस लौट जाएंगे। पर्यावरणविदों का कहना है कि इन दिनों नीले आकाश के तले दीपर बिल के तट पर ये मेहमान पक्षी आकर्षक मुद्रा में अठखेलियां कर अपने जोड़े तलाश रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार पक्षी एक बार जिसके साथ जोड़ा बना लेते हैं। पूरे मौसम उसी के साथ रहते हंै। पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों में प्रजनन काल अलग-अलग समय पर होता है। नर पक्षी मादा को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रकार से स्वर या जोर से आवाज करके अपने प्रेयसी को रिझाते हैं। इसी तरह कुछ प्रजातियों के पक्षी में मादा-नर को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रकार की उड़ाने या करतब दिखाती है। कुछ पक्षियों में बोलने की क्षमता नहीं होती है इसीलिए नर-मादा को रिझाने के लिए अपनी चोंच को अनेक मुद्राओं में बजाता है कभी कभी मादा एवं नर पक्षी अलग-अलग दल बनाकर एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। इन पक्षियों में मानव सुलभ ईर्ष्या एवं जलन का भाव भी दृष्टिगोचर होता है। प्रेयसी पर अन्य प¸क्षी द्वारा डोरे डालने पर दोनों पक्षियों के बीच मल्ल युद्ध भी होता है। पक्षी अपने प्रेयसी के धोखे को बर्दास्त नहीं कर पाता है। वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि पक्षियों कीे सुरक्षा के लिए वनकर्मियों को सचेत रहने के आदेश दिए गए हैं। असम सरकार की ओर से वर्ष 1986 में पलाशबाड़ी राजस्व चक्र के अधीन दीपर बिल के 194, 678, 699, 1156 नंबर चिह्न के 1031 एकड़ जमीन में तथा प्रद्योग विज्ञान व विश्व पक्षी संरक्षण परियोजना के नाम पर वन विभाग को हस्तांतरित किया गया था। वन विभाग की ओर से इस बिल के किनारे वर्ष 1991 में चकर्दो में वन्यजीव संरक्षण शिविर की स्थापना करके बिल के किनारे उद्यान व पक्षी निरीक्षण के लिए एक घर बनाया गया था। इसके अलावा सरकार की ओर से इस बिल के विकास के लिए अन्य कोई खास कदम उठाया नहीं गया है। वर्ष 2018 में असम सरकार की ओर से सिगनेचर परियोजना के अधीन दीपर बिल के विकास के लिए 10 करोड़ रुपए का आवंटन प्रदान किया गया था।