आपने इस बात पर गौर जरूर किया होगा कि जब सुबह की शुरुआत अच्छी होती है तो पूरा दिन अच्छा निकलता है। हमारा दिन हमारे लिए शुभ हो और सोचे हुए कार्य सफल हो जाएं इसके लिए भारतीय ऋषि-मुनियों ने कर(हस्त) दर्शनम का संस्कार हमें दिया है। शास्त्रों में भी जागते ही बिस्तर पर सबसे पहले बैठकर दोनों हाथों की हथेलियों (करतल) के दर्शन का विधान बताया गया है। नींद खुलते ही बिस्तर पर बैठकर ही दोनों हथेलियों के दर्शन करने से व्यक्ति की ग्रह दशा सुधरती है जिससे सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। मान्यता है कि हाथ के अग्र भाग में देवी लक्ष्मी, मध्य में मां सरस्वती एवं हाथ के मूल भाग में परम ब्रह्म परमेश्वर श्री गोविन्द का निवास होता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि दोनों हाथों में कुछ तीर्थ भी होते हैं। चारों उंगलियों के सबसे आगे के भाग में देवतीर्थ, तर्जनी के मूल भाग में पितृतीर्थ, कनिष्ठा के मूल भाग में प्रजापतितीर्थ और अंगूठे के मूल भाग में ब्रह्मतीर्थ। माना जाता है। इसी तरह दाहिने हाथ के बीच में अग्नितीर्थ और बाएं हाथ के बीच में सोमतीर्थ और उंगलियों के सभी पोरों और संधियों में ऋषितीर्थ है। जब आप सुबह नींद से जागें तो अपनी हथेलियों को आपस में मिलाकर पुस्तक की तरह खोल लें और यह श्लोक पढ़ते हुए हथेलियों का दर्शन करें- कराग्रे बसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम॥ अर्थात मेरे हाथ के अग्रभाग में भगवती लक्ष्मी का निवास है। मध्य भाग में विद्यादात्री सरस्वती और मूल भाग में भगवान विष्णु का निवास है।
अतः प्रभातकाल में मैं इनका दर्शन करता हूं। इस श्लोक में धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती और अपार शक्ति के दाता, सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु की स्तुति की गई है।