डोनाल्ड ट्रंप की ओर से सर्जियो गोर को भारत में अगला अमरीकी राजदूत नामांकित करने की घोषणा ऐसे समय में आई है, जब भारत और अमरीका के संबंधों में तनाव चरम पर है। गोर की पहचान एक रणनीतिक राजनयिक से कहीं अधिक, ट्रंप के अत्यंत विश्वस्त और राजनीतिक सहयोगी के रूप में होती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह नियुक्ति भारत-अमरीका रिश्तों में आई दरार को पाट सकेगी, या फिर इसे और गहरा कर देगी? ट्रंप प्रशासन की ओर से भारत पर लगाये गए टैरि$फ और रूस से तेल आयात को लेकर हालिया नाराजगी, इस बात का संकेत हैं कि वॉशिंगटन अब पारंपरिक कूटनीति से इतर, सख्त सौदेबाजी की राह पर चल पड़ा है। ट्रंप का यह स्पष्ट संदेश है कि अगर भारत अमरीका की कृृषि और डेयरी उत्पादों के लिए बाजार नहीं खोलेगा तो उसे आर्थिक कीमत चुकानी होगी। यह दृष्टिकोण न केवल भारत के घरेलू आर्थिक ताने-बाने के लिए खतरनाक है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संतुलन की समझ से भी परे है। भारत की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी कृृषि और डेयरी से जुड़ी है, ऐसे में सस्ते अमरीकी उत्पादों को खुली छूट देना एक सामाजिक और आर्थिक संकट को न्योता देना होगा। गोर का अतीत उन्हें एक परिपक्व राजनयिक की छवि देने में असफल रहा है। वे ट्रंप की किताबों के प्रकाशक, प्रचार अभियानों के रणनीतिकार और सुपर पॉलिटिकल एक्शन कमेटियों के कर्ता-धर्ता रहे हैं। इस नियुक्ति से यह साफ संकेत मिलता है कि ट्रंप दक्षिण एशिया में अपनी नीति को पारंपरिक कूटनीति की बजाय, राजनीतिक लॉबिंग और व्यक्तिगत नेटवर्किंग के ज़रिए संचालित करना चाहते हैं। भारत सरकार ने अभी तक सर्जियो गोर की संभावित नियुक्ति पर कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन 25 से 29 अगस्त तक प्रस्तावित अमरीकी अधिकारियों की व्यापारिक यात्रा का रद्द होना, अपने आप में एक संकेत है। यह न केवल भारत की नाराजगी को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि नई दिल्ली अब ट्रंप की रणनीति को गंभीरता से परख रही है। भारत और अमरीका, दोनों लोकतांत्रिक महाशक्तियां हैं और उनके रिश्ते वैश्विक राजनीति की दिशा तय करने की क्षमता रखते हैं। परंतु जब राजनयिक नियुक्तियां व्यक्तिगत वफादारी के आधार पर की जाती हैं और व्यापारिक मसलों को सख्त टैरिफ के जरिए हल करने की कोशिश की जाती है तो साझेदारी की भावना पीछे छूट जाती है। सर्जियो गोर की नियुक्ति, ट्रंप के दृष्टिकोण का विस्तार मात्र है-जहां नीति नहीं, बल्कि निष्ठा निर्णायक होती है। अब देखना यह है कि अमरीकी सीनेट इस नियुक्ति को हरी झंडी देती है या नहीं। और अगर देती है, तो क्या भारत इस नई राजनयिक पारी को स्वीकार करेगा या फिर एक और ठंडी दूरी की शुरुआत होगी। भारत और अमरीका के रिश्तों की यह अग्निपरीक्षा है। दोनों देशों के लिए यह वक्त है- बोलने का, सोचने का और जिम्मेदारी से आगे बढ़ने का। दूसरी ओर ट्रंप ने गोर की नियुक्ति एलन मस्क को नीचा दिखाने के लिए किया है। कारण कि मस्क और गोर के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। मस्क मानते हैं कि गोर किसी भी व्यक्ति के प्रति ईमानदार नहीं हैं, इसलिए उन्होंने गोर को ट्रंप के लिए छिपा सांप कहा है। मस्क की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है। उनका मानना है कि गोर के रहते भारत में मस्क का व्यापार प्रभावित होगा। समझा जाता है कि ट्रंप ने भारत में मस्क के व्यापार को प्रभावित करने के लिए गोर को भारत का राजदूत बनाया है। ऐसे में क्या गोर के राजदूत बनने के बाद टेस्ला का भी व्यापार भारत में प्रभावित होगा। समझ से परे है कि अमरीकी हित को नजरअंदाज कर ट्रंप मस्क के पीछे क्यों पड़े हैं। अब तक कोई भी अमरीकी राष्ट्रपति किसी भी उद्योगपति के पीछे इतना नहीं पड़ता था जितना ट्रंप मस्क के पीछे पड़े हुए हैं। ट्रंप और उनकी टीम दावा करती है कि वह अमरीका के पहले के गौरव और स्वाभिमान को वापस कराने में लगी हुई हंै, परंतु सच्चाई ऐसी नहीं है। ट्रंप की सनक सिर्फ विश्व के अन्य देशों को ही प्रभावित नहीं कर रही है, बल्कि अमरीकी अर्थ-व्यवस्था को भी प्रभावित कर रही है। इसलिए अमरीकी राष्ट्रपति का यह कहना कि हम सिर्फ अमरीका के हित के लिए कार्य कर रहे हैं, जो सच नहीं है। ट्रंप सिर्फ अपने व्यक्तिगत हित के लिए काम कर रहे हैं और उनकी टीम उनकी वाहवाही कर उन्हें दिग्भ्रमित कर रही है।