अमरीका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद भारत और चीन के बीच संबंध लगातार प्रगाढ़ हो रहे हैं। भारत और अमरीका के बीच बढ़ते तनाव ने दोनों एशियाई देशों को आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ आने पर मजबूर कर दिया है। वर्ष 2020 में लद्दाख के गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुए सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों के संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। उसका नतीजा व्यापार एवं दूसरे क्षेत्रों पर दिखाई दे रहा था। पाकिस्तान के खिलाफ किए गए ऑपरेशन ङ्क्षसदूर के दौरान जिस तरह अमरीका का पक्षपातपूर्ण रवैया रहा, उसको देखते हुए भारत ने भी चीन के साथ संबंध सुधारने पर जोर दिया। चीन भी चाहता है कि रूस, भारत तथा चीन एक मंच पर आकर अमरीका को जवाब दे। चीनी विदेश मंत्री वांग यी के दो दिवसीय भारत दौरे के बाद दोनों देशों के बीच और गरमाहट आई है। चीन ने फिर से भारत को दुर्लभ खनिज पदार्थ, उर्वरक एवं टनल खोदने वाली मशीन की फिर से आपूॢत करने की सहमति दे दी है। चीन ने फिर से मानसरोवर यात्रा के लिए वीजा जारी करने की घोषणा की है। चीन चाहता है कि भारत उसके उत्पादकों के लिए भारतीय बाजारों को खोल दे। दुर्लभ खनिज के मामले में चीन का विश्व व्यापार में 70 प्रतिशत हिस्सा है। इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों, ड्रोनों एवं बैटरी बनाने में होता है। गलवान संघर्ष के बाद चीन ने दुर्लभ खनिज पदार्थ एवं उर्वरक के निर्यात पर रोक लगा दी है। चीनी विदेश मंत्री सीमा विवाद मामले में वार्ता के लिए चीन के विशेष प्रतिनिधि भी है। उनकी वार्ता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ बातचीत हुई है। डोभाल को भारत ने भी सीमा वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधि नियुक्ति किया है। पिछले वर्ष अक्तूबर में रूस के कजान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा चीन के राष्ट्रपति शी जिनङ्क्षपग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई थी। उसी बैठक के बाद सीमा पर तनाव घटाने पर प्रगति हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति के निमंत्रण पर एससीओ की बैठक में भाग लेने के लिए इस महीने के अंत में चीन जा रहे हैं। चीनी विदेश मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट कर अपने राष्ट्रपति के निमंत्रण सौंपा हैं। मालूम हो कि अमरीका भी चीन को निशाने पर ले रहा है। ऐसी स्थिति में दोनों देश रूस के साथ मिलकर अमरीका को सबक सिखाना चाहते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध को बंद करवाने के लिए अमरीका दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर रहा है। अमरीका चाहता है कि युद्ध बंद करवा कर रूस के साथ संबंध ठीक कर लिया जाए। उसके बाद अमरीका चीन को निशाने पर लेना शुरू करेगा। ङ्क्षहद प्रशांत क्षेत्र में चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ दादागिरी कर रहा है। चीन के पड़ीसे देश अमरीका के सहयोगी देश है। अमरीकी रणनीति को देखते हुए चीन पहले से ही भारत के साथ संबंध सुधारने में लगा है ताकि भारत ङ्क्षहद प्रशांत क्षेत्र में अमरीका का सहयोगी नहीं बने। टैरिफ वार ने भारत को चीन के नजदीक जाने का मौका दे दिया है। भारत अमरीका को कूटनीतिक संदेश दे रहा है कि उसके पास और भी विकल्प है। अगर अमरीका भारत से ज्यादा पाकिस्तान को तरजीह देना शुरू करेगा तो भारत भी चीन और रूस के ज्यादा नजदीक हो जाएगा। अगर भारत, रूस और चीन एक मंच पर आ गए तो वर्ल्ड ऑर्डर बदल जाएगा। अमरीका तथा पश्चिमी देश चाहते है कि भारत आंख बंद कर उनका समर्थन करते रहे। लेकिन अब भारत झुकने वाला नहीं है। भारत अब मेक इन इंडिया के तहत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। चीन से संबंध बढ़ाने के दौरान भारत को सतर्क रहना पड़ेगा क्योंकि चीन विश्वासी नहीं है।
भारत-चीन संबंध
