स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लाल किले से 103 मिनट का भाषण न केवल भारत की वर्तमान परिस्थितियों का आईना था, बल्कि आने वाले दशक की दिशा भी तय करता दिखा। 12वीं बार लगातार भाषण देने के साथ ही उन्होंने इंदिरा गांधी के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए इतिहास रचा, लेकिन यह भाषण केवल रिकॉर्ड बनाने तक सीमित नहीं था। इसमें जो स्वर उभरे, वो आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के थे। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर पर मोदी की टिप्पणी ने स्पष्ट संकेत दिया कि अब भारत केवल शब्दों से नहीं, कार्रवाई से जवाब देता है। आतंकियों को धर्म पूछकर हत्या करने जैसा घृणित कार्य करने की अनुमति देने वालों के प्रति भारत की प्रतिक्रिया स्पष्ट थी। सैन्य कार्रवाई में अब न समय बाधा बनेगा, न रणनीति का बंधन। प्रधानमंत्री ने परमाणु ब्लैकमेल के खिलाफ सख्त संदेश देकर यह भी जता दिया कि भारत अब वैश्विक मंच पर खुद को किसी डर में नहीं रखेगा। सिंधु जल समझौते को एकतरफा और अन्यायपूर्ण बताते हुए मोदी ने पहली बार इतनी मुखरता से कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। यह बयान पाकिस्तान को साफ संकेत है कि भारत अब अपनी जल नीतियों पर पुनर्विचार कर रहा है और यह पुनर्विचार भारत के किसानों के हक में होगा। मोदी का यह रुख न केवल रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश की जल नीति में ऐतिहासिक बदलाव की संभावना को भी दर्शाता है। मोदी की ओर से घोषित मिशन सुदर्शन चक्र एक स्पष्ट संकेत है कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। श्रीकृृष्ण के सुदर्शन चक्र से प्रेरित यह परियोजना महज एक मिसाइल डिफेंस सिस्टम नहीं, बल्कि आत्मरक्षा और जवाबी कार्रवाई की नई परिभाषा होगी। यह रक्षा दृष्टिकोण न केवल तकनीकी क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक मंच पर भी उसकी रणनीतिक स्थिति को बल देगा। प्रधानमंत्री ने भाषण में भले ही अमरीका या टैरिफ का सीधे जिक्र नहीं किया, लेकिन आत्मनिर्भर भारत और घरेलू उत्पादन पर दिया गया जोर अमरीका की हालिया नीतियों के प्रति अप्रत्यक्ष प्रतिक्रिया था। 25' अतिरिक्त टैरिफ और कुल 50' टैरिफ के बीच प्रधानमंत्री ने भारत के किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की सुरक्षा की बात की और स्पष्ट किया कि भारत अब किसी भी विदेशी दबाव में नीतिगत निर्णय नहीं लेगा। जीएसटी में आगामी कटौती की घोषणा ने आम आदमी को राहत देने की मंशा दर्शायी। यह न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि विपक्ष द्वारा लंबे समय से उठाए जा रहे आलोचनाओं का प्रत्यक्ष उत्तर भी है। गगनयान और स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन की दिशा में भारत का बढ़ता कदम यह दर्शाता है कि आत्मनिर्भरता केवल रक्षा और अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं, बल्कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी भारत अपना परचम लहराना चाहता है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की वापसी और मिशनों की घोषणा आत्मविश्वास और तकनीकी प्रगति का प्रतीक है। निष्कर्षत:, प्रधानमंत्री मोदी का यह भाषण केवल भावनाओं और राष्ट्रवाद का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसमें नीति, रणनीति और स्पष्ट दिशा का समावेश था। भाषण में जो ललकार थी, वह केवल विरोधियों के लिए नहीं, बल्कि देशवासियों के भीतर छिपी उस आत्मशक्ति को जागृत करने की कोशिश थी, जो भारत को अगले दशक में विश्व शक्ति बना सकती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी ने जो भाषण दिया, उसका संदेश पाकिस्तान से अमरीका तक पहुंचा, इसमें स्पष्ट संदेश था कि भारत अपनी स्वतंत्रता, संप्रभुता और अपनी आत्मनिर्भरता के मिशन के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकता है। पीएम मोदी वहीं करेंगे, जो भारत के हित में होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश के विकास के लिए काफी काम किया है और विकास की प्रक्रिया अब भी जारी है। इस प्रक्रिया में समाज के अंतिम व्यक्ति तक को शामिल किया गया है, जिनके ओठों पर अब तक मुस्कान विराजमान नहीं है। समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए खुशी का जुगाड़ करना वर्तमान सरकार का मिशन है।
आत्मनिर्भर भारत की नई परिभाषा
