सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे एक संवैधानिक निकाय को उसका काम करने से नहीं रोक सकते।  हालांकि, कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग से कहा कि वह बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन संशोधन के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से कुछ ही महीने पहले हो रही है। कोर्ट ने इस प्रक्रिया को विधानसभा चुनावों से पहले जोड़े जाने को लेकर भी सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि क्या चुनाव से पहले यह प्रक्रिया पूरी हो पाएगी और कहा कि इस प्रक्रिया को काफी पहले शुरू कर दिया जाना चाहिए था। बताते चलें कि बिहार में इस साल अक्तूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की विशेष समीक्षा करने की घोषणा की है। बिहार में करीब सात करोड़ 90 लाख वोटर हैं, जिनमें से करीब दो करोड़ 93 लाख मतदाताओं को अपनी जानकारी की पुष्टि करानी होगी, जिनके नाम मतदाता सूची में 2003 के बाद जोड़े गए हैं। इसके लिए चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की एक सूची जारी की थी जिनमें से कोई भी एक दस्तावेज जमा करके मतदाता अपनी जानकारी की पुष्टि करवा सकते हंै। अगर किसी भी मतदाता की जानकारी की पुष्टि नहीं हो पाती है, तो उसका नाम सूची से हटा दिया जाएगा। चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड को शामिल नहीं किया गया था। चुनाव आयोग की इस घोषणा का विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी लगाई गई थीं। याचिकाकर्ताओं में आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल समेत कई पार्टियों के नेता और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) शामिल है। गुरुवार को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। कानूनी मामलों की वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कोर्ट से कहा कि उसके द्वारा जारी की गई 11 दस्तावेजों की सूची पूरी नहीं है और वह उदाहरणात्मक थी। इस पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह सूची पूरी नहीं है, हमारी राय में यह न्याय के हित में होगा कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और राशन कार्ड पर भी विचार करे। कोर्ट ने मौखिक तौर पर यह भी कहा कि चुनाव आयोग को सिर्फ  इन दस्तावेजों के आधार पर किसी का भी नाम वोटर लिस्ट में जोड़ने का निर्देश नहीं दिया गया है और आयोग अपने विवेक के आधार पर इन्हें स्वीकार या खारिज कर सकेगा। जस्टिस धूलिया ने कहा कि अगर आपके पास आधार कार्ड को खारिज करने की उचित वजह है तो ऐसा करें और उसकी वजह बताएं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीन बिंदु उठाए हंै।  जस्टिस धूलिया ने कहा कि याचिकाकर्ता चुनाव आयोग की शक्तियों, शक्तियों का इस्तेमाल करने के तरीके और उनकी टाइमिंग को चुनौती दे रहे हैं। बेंच इन याचिकाओं पर 28 जुलाई को अगली सुनवाई करेगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग अपनी हर प्रक्रिया को पूरा करने को स्वतंत्र है। ऐसा करने के लिए उसे संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता मिली है। कोई अवैध नागरिक वोट का हिस्सा बने ऐसा कोई नहीं चाहता। परंतु चुनाव आयोग इसलिए आम लोगों के कटघरे में खड़ा है, क्योंकि उसने बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर पुनॢनरीक्षण का कार्य शुरू किया है। इसलिए उसकी टाइङ्क्षमग को लेकर सवाल उठ रहे हैं जो वाजिब हैं।