भारत-अमरीका व्यापार समझौता
भारत-अमरीका के बीच व्यापार समझौता के लिए चल रही बातचीत अंतिम चरण में है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दी गई नौ जुलाई की डेड लाइन आठ जुलाई को समाप्त हो रही है। दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर पूर्ण समझौता होना फिलहाल मुश्किल है। दोनों देशों की तरफ से नौ जुलाई से पहले अंतरिम समझौता करने की कोशिश हो रही है। 20 जनवरी को सत्ता में आने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने सर्वप्रथम अपना व्यापार घाटा कम करने के लिए दुनिया के देशों पर भारी टैरिफ लगाना शुरू कर दिया। भारत पर 2 अप्रैल 2025 को ट्रंप ने 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। बाद में उन्होंने इसे तीन महीने तक स्थगित कर नौ जुलाई की डेड लाइन तय कर दी थी। उसके बाद भारतीय वाणिज्य मंत्रालय अपने अमरीकी समकक्षों से मिलकर मतभेदों को दूर करने का प्रयास कर रहा है। अमरीका चाहता है कि भारत कृृषि, ऊर्जा एवं डेयरी क्षेत्र को अमरीकी कंपनियों के लिए खोले तथा इन तीनों क्षेत्रों के उत्पादों पर आयात शुल्क में कमी लाये। अमरीका यह भी चाहता है कि वहां के उत्पाद सोया, गेहूं, भुट्टे, इथेनॉल तथा सेव को भारतीय बाजारों तक पहुंचने में भारत आयात शुल्क में कमी लाये। साथ ही आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के बाजार में भी आयात शुल्क घटाया जाए। भारत कृृषि एवं डेयरी क्षेत्र के उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाकर अमरीकी कंपनियों को घुसने से रोक रहा है, क्योंकि इससे भारतीय किसानों को झटका लगेगा। इसके साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी प्रभावित होगा। भारत भी चाहता है कि यहां से निर्यात होने वाली वस्तुओं पर अमरीका आयात शुल्क नहीं लगाये। भारत अमरीका को टैक्सटाइल, चमड़ा, फार्मा, इंजीनियङ्क्षरंग एवं ऑटो उत्पादों का अमरीका में निर्यात करता है। भारत का जोर है कि अमरीका इन क्षेत्रों में कोई आयात शुल्क नहीं लगाये। अमरीका की मांग है कि अमरीकी औद्योगिक उत्पादों जैसे ऑटो क्षेत्र पर लगाये जाने वाला भारी भरकम टैरिफ हटाया जाए। मालूम हो कि ट्रंप बाइक कंपनी हार्ले डेविसन का उदाहरण देकर टैरिफ कम करने की मांग उठाता रहा है। भारत के अपने संवेदनशील सेक्टर जैसे डेयरी, चावल और गेहूं जैसे उत्पादों को अमरीकी उत्पादों से बचाने के लिए टैरिफ घटाने की संभावना काफी कम है। समझौते के तहत भारत कच्चा तेल, एलएनजी, वाणिज्यिक एयरक्राफ्ट और परमाणु ऊर्जा से जुड़े उपकरणों को शामिल कर सकता है। आॢथक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमरीका की तरफ से बाजार खोलने की मांग को भारत मान लेता है तो आने वाले समय में भारत को इससे दिक्कत हो सकती है। खासकर कृृषि क्षेत्र जहां भारत के पास अपने किसानों केउत्पाद खरीदने की अपनी प्रणालियां हैं। इन प्रणालियों की रक्षा के लिए भारत को अपने मानकों पर टिके रहना चाहिए। अमरीका के साथ व्यापार समझौता राजनीतिक लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ना नहीं चाहिए और न ही इन्हें एकतरफा होना चाहिए। समझौते से किसानों के डिजिटल इकोसिस्टम एवं स्वायत्त नियामकों का संरक्षण भी जरूरी है। अमरीका पिछले कुछ वर्षों से भारत की आॢथक प्रगति को देखकर जल रहा है। आॢथक वृद्धि की रफ्तार भारत में अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा है। कोरोना काल में भी भारत की प्रगति दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ी है। रक्षा के क्षेत्र में भारत मेक इन इंडिया तथा आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशी हथियारों एवं सैन्य उपकरणों का उत्पादन कर रही है। पाकिस्तान के साथ हुए ऑपरेशन ङ्क्षसदूर के दौरान यह चीज खुलकर सामने आई। स्वदेशी हथियारों ने पाकिस्तान को नतमस्तक होने पर मजबूर कर दिया। राष्ट्रपति ट्रंप के अस्थिर व्यक्तित्व ने भारत को ङ्क्षचतित किया है। कब वे अपना फैसला बदल देंगे, यह किसी को मालूम नहीं। इसी को देखते हुए भारत व्यापार समझौते के दौरान सभी प्रावधानों को लिखित में लेना चाहता है। भारत पर नियंत्रण रखने के लिए अमरीका पाकिस्तान को ट्रंप कार्ड के रूप में इस्तेमाल करता है। भारत को ट्रंप की नीतियों के प्रति सतर्क रहना होगा।