श्रद्धा की चीखों में
गुम होती जवाबदेही
2 जुलाई 2024-यह दिन अब किसी कैलेंडर की एक तारीख मात्र नहीं है, बल्कि एक ऐसा जख्म है, जो वक्त के साथ और गहराता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के फुलरई गांव में भोले बाबा के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत और 150 से अधिक लोगों के घायल होने की त्रासदी ने देश को भीतर तक हिला दिया। एक साल बीत गया, लेकिन सवाल आज भी वही हैं, आखिर जिम्मेदार कौन है? और कब मिलेगा न्याय? भारत में धार्मिक आस्था की शक्ति असाधारण है। लोग अपने दुख, पीड़ा और पीढ़ियों की परंपराओं को लेकर सत्संगों में पहुंचते हैं। लेकिन जब यही आस्था प्रशासनिक अक्षमता और अव्यवस्थित आयोजन से टकराती है, तो श्रद्धा चीखों में बदल जाती है। हाथरस में जो हुआ, वह महज एक दुर्घटना नहीं थी, वह एक व्यवस्था की विफलता थी, जिसे रोका जा सकता था। पुलिस ने 11 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। 676 गवाह बनाए गए। लेकिन 71 लोगों पर अब भी जांच लंबित है। चौंकाने वाली बात यह है कि पूरे आयोजन के केंद्र में रहे भोले बाबा पर आज तक कोई केस नहीं दर्ज हुआ। क्या वह इस हादसे से बिल्कुल भी जवाबदेह नहीं? अगर नहीं, तो फिर कौन है? हमारे समाज में अक्सर यह देखा जाता है कि धार्मिक नेताओं और आयोजनों को कानून से ऊपर मान लिया जाता है। यह प्रवृत्ति केवल खतरनाक नहीं, बल्कि जनतंत्र और मानवाधिकार दोनों के लिए घातक है। अगर किसी के कहने पर लाखों लोग एक जगह जमा हो रहे हैं, तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उसी पर तय होनी चाहिए। फिर चाहे वह बाबा हों या आयोजक। क्या जिला प्रशासन को नहीं पता था कि लाखों की भीड़ आने वाली है? क्या भीड़ नियंत्रण, मेडिकल सुविधा, आपातकालीन निकासी मार्ग की व्यवस्था की गई थी? ये सवाल सिर्फ हाथरस के नहीं हैं, बल्कि हर छोटे-बड़े धार्मिक आयोजन के लिए चेतावनी हैं। अगर अब भी हम नहीं चेते, तो अगला हादसा किसी और शहर में इंतज़ार कर रहा होगा। एक साल बाद भी पीड़ित परिवारों को सिर्फ आश्वासन मिला है। न ठोस मुआवजा, न तेज़ न्याय। 121 चेहरों की जगह अब 121 तस्वीरें दीवारों पर टंगी हैं, और उनके नीचे बैठे बूढ़े माता-पिता, विधवा पत्नियां, अनाथ बच्चे सिर्फ यह सोचते हैं -क्या हमारा अपराध सिर्फ इतना था कि हमने श्रद्धा की थी? हर साल, हम हादसों पर मोमबत्ती जलाते हैं, श्रद्धांजलि देते हैं, और फिर भूल जाते हैं। लेकिन क्या इस बार हम यह तय कर सकते हैं कि श्रद्धा को व्यवस्था का बलि का बकरा नहीं बनने देंगे? क्या हम यह मांग कर सकते हैं कि हर आयोजन के लिए एक जवाबदेह तंत्र बने, और जो जिम्मेदार हो, उस पर सख्त कार्रवाई हो, चाहे वह कोई बाबा हो या अधिकारी? वरना, अगली बरसी पर हम फिर यही लिखेंगे-कुछ आंकड़े, कुछ सवाल और कुछ आंसू।