अब इमरजेंसी की कभी पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे
संविधान से समाजवाद व पंथनिरपेक्ष
शब्दों को हटाने की हिमायत की
पूर्वांचल प्रहरी कार्यालय संवाददाता
गुवाहाटी:मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा ने शनिवार को दावा किया कि समाजवादी और पंथनिरपेक्ष पश्चिमी अवधारणाएं हैं तथा इन शब्दों को संविधान से हटा दिया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री डॉ.शर्मा ने कहा कि इन शब्दों को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 के 42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम के जरिए संशोधन के माध्यम से इसमें समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान की प्रस्तावना में जोड़ी थी। मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा कि मैं पंथनिरपेक्ष कैसे हो सकता हूं? मैं कट्टर हिंदू हूं। मुसलमान व्यक्ति कट्टर मुसलमान होता है। वह पंथनिरपेक्ष कैसे हो सकता है? प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शर्मा ने उपरोक्त आशय की बातें ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित द इमरजेंसी डायरीज इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर नामक पुस्तक के विमोचन के दौरान कहीं, जिसमें आपातकाल के काले अध्याय का वर्णन है। उल्लेखनीय है कि यह पुस्तक (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी (जो उस समय आरएसएस के युवा प्रचारक थे) के साथ काम करने वाले सहयोगियों के अनुभवों और अन्य अभिलेखीय सामग्रियों पर आधारित है। पुस्तक 1975-77 के दौरान आपातकाल और इसके 'प्रतिरोध आंदोलन में मोदी की भूमिका का वर्णन करती है। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पंथनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा तटस्थ होने के बारे में नहीं है, बल्कि यह सकारात्मक रूप से संबद्ध होने के बारे में है।
उन्होंने कहा कि पंथनिरपेक्ष शब्द उन लोगों द्वारा शामिल किया गया था जो इसे पश्चिमी दृष्टिकोण से देखते हैं, इसलिए इसे प्रस्तावना से हटा दिया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि समाजवाद की पश्चिमी अवधारणा भी गांधी द्वारा थोपी गई थी, जबकि भारतीय आर्थिक सिद्धांत 'न्यास तत्व और हाशिए पर पड़े लोगों की मदद करने पर आधारित था। उन्होंने कहा कि भाजपा को तो समाजवाद की इस अवधारणा को खत्म करने की भी जरूरत नहीं पड़ी। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी. नरसिम्हाराव और डॉ.मनमोहन सिंह ने कांग्रेस के लिए यह काम किया। मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा कि आपातकाल से देश को हुए नुकसान पर चर्चा करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि हमें आपातकाल को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि हम आपातकाल को दोहरा नहीं सकते। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भारतीय राज्यों में सभी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को भंग करके और राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर लोकतंत्र को रौंद दिया था। उन्होंने कहा कि भारत की 76 वर्षों की लोकतांत्रिक यात्रा में आपातकाल इस बात की गंभीर याद दिलाता है कि सत्ता का दुरुपयोग होने पर लोकतंत्र कितना कमजोर हो सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि युवा पीढ़ी को उस भयावह अध्याय से अवगत कराया जाना चाहिए जिसमें भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचला गया और लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाला गया। एक ऐसा समय जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र पर उस हमले का विरोध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि इतिहास ऐसी घटनाओं पर गहन चिंतन की मांग करता है। अपने संबोधन के दौरान डॉ.शर्मा ने कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत और स्वतंत्र बांग्लादेश के निर्माण पर गर्व करती है, तो उसे 22 किलोमीटर चौड़े 'चिकन नेक क्षेत्र को सुरक्षित करने में विफल रहने के लिए भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो बांग्लादेश असम में रह रहे अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस लेने के लिए मजबूर हो सकता था। मुख्यमंत्री ने 1975 के आपातकाल की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय संकट का नतीजा नहीं था, बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अपनी स्थिति को बचाने के लिए एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश थी। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत की सर्वधर्म समभाव की भावना-सभी धर्मों के लिए समान सम्मान -इसकी परंपरा में समाहित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत सरकार को प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को हटाना चाहिए और इसे अपने मूल स्वरूप में बहाल करना चाहिए, जैसा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर सहित संविधान के निर्माताओं ने कल्पना की थी। पुस्तक विमोचन समारोह में शिक्षा मंत्री डॉ. रनोज पेगू, पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और प्रख्यात शिक्षाविद् नारायण बरकटकी, राज्यसभा सांसद भुवनेश्वर कलिता, प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष रत्ना ङ्क्षसह सहित कई प्रतिष्ठित सामाजिक नेता और विशिष्ठ व्यक्ति उपस्थित थे।