ईरान-इजराइल के बीच 12 दिन चला युद्ध बीच में अमरीका द्वारा ईरान के एक साथ तीन परमाणु ठिकानों पर हमला, जवाबी कार्यवाही में ईरान का कतर में स्थित अमरीका के सैन्य ठिकाने पर अल-उदैद हमले के आखिरी परिणाम क्या निकला ? कहना मुश्किल है। यह युद्ध और इस युद्ध के हासिल नटखट बच्चे की हरकतों की तरह देखने में आए है। ये हरकतें अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रही हैं। इजराइल ने ट्रंप की शह पर ईरान पर मिसाइलों से हमले इसलिए किए, जिससे उसकी परमाणु क्षमता को नष्ट कर अपने देश की रक्षा कर ली जाए। इसी दौरान आ बैल मुझे मार कहावत को चरितार्थ करते हुए अमरीका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमले किए। और दावा किया कि इन परमाणु संयंत्रों को इतना नुकसान हो गया है कि अब कई साल तक ईरान परमाणु बम नहीं बना पाएगा। ये बम बनाना तब और मुश्किल हो गया है, जब इजराइल ने ईरान पर किए पहले ही हमले में वहां के अनेक परमाणु वैज्ञानिकों को मार दिया था। युद्ध के ग्यारहवें दिन ट्रंप ने दावा किया कि दोनों देश युद्ध विराम के लिए तैयार हो गए हैं। परंतु इस घोषणा के बाद दोनों ही देशों ने एक-दूसरे पर हमले किए। यही नहीं ईरान ने भी अमरीका के अरब देशों में स्थित सैन्य ठिकानों पर हमले किए। इन हमलों के संदर्भ में ट्रंप ने कहा कि उसे कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। इसलिए अमरीका ने ईरान पर कोई जवाबी हमला नहीं किया और ट्रंप ने दावा कर दिया कि उनकी मध्यस्थता से युद्ध विराम लागू हो गया है। कतर ने भी इस युद्ध विराम में मध्यस्था के भूमिका अदा की। लेकिन इस युद्ध की जरूरत क्या थी, यह सवाल जस की तस बना हुआ है।
दरअसल इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कह रहे हैं कि ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता नष्ट हो गई है। परंतु पलटवार करते हुए ईरान ने कहा है कि वह अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखेगा। ट्रंप ने भी कह दिया कि ईरान बम बनाने से बहुत दूर हो गया है। तब इस युद्ध का परिणाम क्या निकला? परमाणु हथियारों के जानकार कह रहे हैं कि ईरान के पास 20 परमाणु हथियार बनाने की क्षमता थी, जो अब घटकर 6 बम बनाने की रह गई है। जबकि ट्रंप का लक्ष्य था कि ईरान यूरेनियम क्षमता बढ़ाने के लिए जिस तेजी से संवर्धन कर रहा है, वह तय सीमा से बाहर की बात होती जा रही है। लेकिन ईरान की परमाणु बम बनाने की क्षमता कम भले ही हो गई हो, पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। यह तथ्य तीनों देशों के आए बयानों से सत्यापित होता है। अतएव ईरान पर किया गया बेवजह हमला, कुछ वैसा ही रहा जैसा 2003 में अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने ईराक पर यह कहते हुए किया था कि ईराक के पास बड़ी मात्रा में जैविक हथियार हैं। जबकि युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद अमरीका जैविक हथियार होने का कोई प्रमाण दुनिया को नहीं दे पाया। बावजूद यह आशंका बनी हुई है कि ईरान के परमाणु ठिकानों पर जो बम गिराए हैं, उनसे यदि रिसाव होता है तो एक बड़े भू-क्षेत्र में परमाणु विकिरण का संकट पैदा हो सकता है।
अमरीका ने जिन तीन परमाणु स्थलों पर हमला किया है, वह सभी ईरान के प्रमुख यूरेनियम संवर्धन ठिकाने हैं। यहां संयंत्रों में प्राकृतिक यूरेनियम को अत्यधिक संवर्धित यूरेनियम में बदला जाता है। इसी यूरेनियम को प्रयोग परमाणु बम में किया जाता है। परमाणु बम युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक विस्फोटकों और रसायनों से भिन्न होते हैं। ये बहुत कम समय में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा छोड़ते हैं, यह ऊर्जा अनेक कड़ियों में रसायनिक प्रक्रियाएं आरंभ कर देती हैं। जो व्यापक और दीर्घकालिक क्षति पहुंचा सकती है। हमलों के कारण परमाणु विकिरण रिसाव की आशंका बनी हुई है। अतएव कह सकते हैं कि अमरीका ने परमाणु विकिरण संकट खत्म किया है या बढ़ाया है। अमरीका का यह हमला दुनिया के अंतर्राष्ट्रीय कानून और अपने ही देश के कानूनों की परवाह नहीं करता है। इसीलिए अमरीका के भीतर इस परमाणु हमले को लेकर अमरीकी जनमत विभाजित दिखाई दे रहा है। दरअसल किसी देश पर हमला करने के लिए ट्रंप को अमरीकी संसद में हमले का प्रस्ताव लाकर अनुमोदन की जरूरत थी। परंतु उन्होंने इस प्रक्रिया पर अमल नहीं किया। जबकि अमरीका की ही बात करें तो अप्रैल 2003 में इराक पर हमले के समय बुश ने संसद से मंजूरी ली थी। इसलिए ट्रंप के समर्थकों के साथ विपक्ष भी नाराज है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून परमाणु बम के उपयोग को मानवता के विरुद्ध अमानुषिक कृत्य मानते हैं। इनके उपयोग के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के कठोर आर्थिक व राजनीतिक प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन जितनी भी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं हैं, वे सब अमरीका या अन्य पश्चिमी देशों के दबाव में रहती हैं। यही देश इन संस्थानों को चलाने के लिए धन मुहैया कराते हैं और इन्हीं देशों के लोग इन संस्थानों के सदस्य होते हैं, इसलिए यहां पक्षपात साफ दिखाई देता है। अतएव ईरान में परमाणु विकिरण फैल भी जाए, तब भी अमरीका के विरुद्ध कोई प्रतिबंध लगाना असंभव है। संकट का कूटनीतिक हल निकालना जरूरी है। इसलिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम रोकना जरूरी है। उसे समझौते के लिए बात करनी चाहिए। बातचीत से कूटनीति हल तो नहीं निकला लेकिन अमरीका की धमकी ने युद्ध विराम का काम कर दिया। 2023 में आईएईए ने कहा कि ईरान में 83.7 प्रतिशत शुद्धता के यूरेनियम कण मिले हैं और उसके पास 128.3 किलो संवर्धित यूरेनियम है। मई 2025 में आईएईए ने दावा किया कि ईरान के पास 60 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम की मात्रा 408 किलो है। इससे कई परमाणु बम बनाए जा सकते है। इसे ही नष्ट करने के लिए युद्ध और युद्ध विराम का यह खेल खेला गया। लेकिन अब ईरान ने कह दिया है कि वह अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखेगा। तब फिर इस युद्ध के परिणाम क्या निकले।