कांग्रेस यूंतो  तो स्वतंत्रता आंदोलन में सर्वस्व निछावर करने वाले बलिदानियों की पार्टी मानी जाती है लेकिन ना तो अब वैसे बलिदानी बचे और ना ही वैसे समर्पित, निष्ठावान और निस्वार्थ भाव से देश सेवा करने वाले उनके उत्तराधिकारी रहे। 1947 के बाद जितनी द्रुत गति से कथित तरक्की हुई उतनी ही तेज गति से स्वार्थी और देश को लूटने वालों की फौज भी खड़ी होती गई। आज लोकमान्य तिलक सरदार वल्लभभाई पटेल,  लाल बहादुर शास्त्री गुलजारी लाल नंदा, मोरारजी भाई देसाई और नरसिम्हा राव जैसे कांग्रेसी कहां हैं। हैं तो कई ऐसे नाम जो किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित हैं। 2014 के पहले तक ऐसे नेताओं की कांग्रेस में बाढ़ थी जिनके स्वार्थ की पूर्ति कांग्रेस में रहकर हो रही थी। आज भी यहां ऐसे कई नेता होंगे जो इस आशा में कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं कि कभी तो वह दिन आएगा जब उनकी पौ बारह होगी। यह कांग्रेस का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष पार्टी में विश्वास के संकट को लेकर है। आज कांग्रेस में जो थोड़े बहुत पार्टी के प्रति निष्ठावान कार्यकर्ता हैं उनकी ना तो कोई पूछ परख है और ना उनका कोई सम्मान। जो दल से बड़ा देश को माने वह हिकारत की नजर से देखा जाता है और जो देश से बड़ा दल और दल से बड़ा अपने नेता को (इंदिरा इज इंडिया, की इंडिया इज इंदिरा) माने वह सबसे बड़ा निष्ठावान माना जाता है। यूपीए के कार्यकाल को सबने देखा है। डॉ मनमोहन सिंह कहने को तो प्रधानमंत्री थे किंतु उनकी प्रथम परिवार की नजरों में क्या स्थिति थी सभी जानते हैं। सोनिया जी उनकी इस कदर अनदेखी करती थीं कि डॉ सिंह भले ही इसे सहन करते हों लेकिन कोई भी खुद्दार इंसान इसे स्वीकार नहीं कर सकता था। जो भी हो अब बीते 11 सालों से क्योंकि कांग्रेस सत्ता से बाहर है तो वे सारे वीडियो सामने आ रहे हैं जिनमें सोनिया जी कार से उतरने के बाद डॉ मनमोहन सिंह की तरफ बिना देखे आगे बढ़ जाती थीं और प्रधानमंत्री डॉ सिंह के प्रणाम की मुद्रा में उठते हाथ वापस बाजू में चले जाते थे। संभव था इन्हीं सब बातों से आहत होकर अगस्त 2020 में कुछ नेता कांग्रेस पार्टी में बदलाव के लिए आगे आए जिन्हें ग्रुप 23 का नाम मिला। लेकिन आज की स्थिति में उनमें से कुछ ने यथा स्थिति को स्वीकार कर लिया तो कुछ पार्टी से बाहर हो नया रास्ता तलाशने के लिए मजबूर हुए। कुछ खुद्दार कांग्रेसी इन स्थितियों से बाहर निकलने में इसलिए कामयाब हुए क्योंकि वे जानते थे कि उनका भविष्य जी हजूरी में सुरक्षित नहीं है। उन्हें यदि कुछ बड़ा करना है तो बदलना ही होगा। ऐसे नेताओं में कुछ आज भाजपा में न केवल पूरी तरह से सफल हैं बल्कि भाजपा द्वारा दिए गए अतिरिक्त सम्मान से अभिभूत भी हैं। इनमें असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा और वर्तमान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कौन नहीं जानता। इन नेताओं ने कांग्रेस पार्टी में सिद्धांतों के क्षरण की वजह से पार्टी नहीं छोड़ी, बल्कि अपमानित महसूस करने की वजह से पार्टी छोड़ी। हिमंत विश्व शर्मा ने पार्टी छोड़ने का जो कारण बताया था वह यही था कि उन्हें राहुल गांधी से मिलने के लिए हफ्तों इंतजार करना पड़ता था और जब पार्टी छोड़ने के पहले की भेंट हुई तो राहुल जी की उपेक्षा ने उन्हें झकझोर दिया। दूसरे व्यक्ति ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश में 18 साल कांग्रेस में रहने के बाद पार्टी को अलविदा कहा। 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जी जान लगाकर बेहद लोकप्रिय शिवराज सरकार को प्रदेश में मात दी थी किंतु उसके बदले में उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। सिंधिया ने विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग की थी लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। सच्चाई तो यह है कि नेतृत्व करना कोई आसान काम नहीं है। किसी पार्टी के सिरमौर की जवाबदारियां तो और अधिक होती हैं क्योंकि वह नेताओं का नेता होता है जिसमें राहुल गांधी अब तक सफल होते दिखाई नहीं दे रहे हैं। राहुल गांधी अपने वक्तव्य से जहां एक ओर जनता में अब तक उच्च स्कोर अर्जित नहीं कर पाए तो वह दूसरी ओर अपने नेताओं के लिए भी समस्या बन जाते हैं। राहुल अवसर की नजाकत को नहीं पहचानते। कब क्या कहना है या क्या नहीं कहना है इस पर अगर ध्यान देते तो पार्टी की स्थिति कुछ और ही होती। अभी भोपाल में उन्होंने अपने भाषण में घोड़े पर अपने चिंतन को सार्वजनिक कर दिया। कांग्रेस के मिशन 2028 के संगठन सृजन अभियान कार्यक्रम में कांग्रेस के नेताओं का नेतृत्व करते हुए उन्होंने कहा कांग्रेस पार्टी में कुछ रेस के घोड़े हैं तो कुछ बारात के घोड़े हैं। दिक्कत यह है कि कांग्रेस पार्टी ने बारात के घोड़ों को रेस में डाल दिया और रेस के घोड़ों को बारात का घोड़ा बना दिया। एक और घोड़ा होता है जो लंगड़ा होता है। हमें घोड़ों को छांटना है। बारात के घोड़े को बारात में और रेस के घोड़े को रेस में भेजना है और लंगड़े घोड़ों को रिटायर करना है। आश्चर्य इस बात का है कि वहां उपस्थित कांग्रेस के नेताओं ने राहुल की वाहवाही में खूब तालियां बजाईं। क्या राहुल अपने नेताओं को घोड़े की संज्ञा देकर अपमानित नहीं कर रहे थे। निश्चित ही इस वक्तव्य से शशि थरूर, सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी सहित कई अन्यों को सचेत होने की जरूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल इन्हें लंगड़ा घोड़ा कहकर रिटायर करना चाहते हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह द्वारा की गई आलोचना को इतना गंभीरता  से नहीं लिया जाता कि उनका निष्कासन किया जाता।लक्ष्मण सिंह ने राहुल द्वारा दिए गए उनके निष्कासन पत्र को कैमरे के सामने फाड़कर खुली चुनौती दे दी है। जिसका कितना खामियाजा पार्टी को होगा यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। राहुल गांधी इससे क्या कोई सबक सीखेंगे देखने वाली बात होगी। ठ्ठ