1962 में चीन से और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद से दक्षिण एशिया के इस भूभाग में एक प्रकार की स्थिरता और शांति आ गई थी और भारत, पाकिस्तान तथा चीन अपने अपने देश की आंतरिक स्थिति एवं आर्थिक व्यवस्था को सुधारने की तरफ ध्यान देने लगे थे। सीमाओं पर यथास्थिति थी तथा हथियारों की होड़ तो थी, लेकिन वह सीमित दायरे में थी। यह स्थिति 1971 तक चली जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश में तथा पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई की और पूर्वी पाकिस्तान को तोड़कर पृथक बांग्लादेश का निर्माण करवाया। इस कदम ने पाकिस्तान तथा चीन को भारत की सैन्य मंशा के बारे में शंकित कर दिया जिसके कारण दोनों देश रणनीतिक विषयों पर एक साथ रहने लगे। इसी क्रम में चीन ने पाकिस्तान को आधुनिक सैन्य हथियार देने प्रारंभ किए। इससे पूर्व पाकिस्तान केवल अमेरिकी हथियारों पर ही निर्भर था। चीन अपने रोड एंड बिल्ट कार्यक्रम के तहत पाकिस्तान में सड़कों का जाल बिछाने लगा तथा वहां एक सैन्य बंदरगाह का विकास भी उसने किया। इन सब कार्यों की वजह से स्वाभाविक रूप से भारत को चिंता होने लगी थी और इस खतरे से निपटने के लिए उसने अपनी रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने का कार्य तेज किया। 36 राफेल विमान तथा एस-400 हवाई रक्षा प्रणाली की खरीद और तेजस उत्पादन एवं पांचवीं पीढ़ी के एमआरसीए स्टेल्थ विमान का विकास इसी सतर्कता का परिणाम थे। उधर चीन नित्य अपने अत्याधुनिक हथियारों के शोध, परीक्षण एवं निर्माण कार्यों में विपुल धनराशि व्यय कर रहा है और भारत के चारों तरफ के पड़ोसी देशों से सैन्य एवं आर्थिक समझौते करके भारत को घेरने में लगा है। पाकिस्तान ने चीन तथा तुर्की की मदद से अपने नेवल एवं वायु सीमा की रक्षा के लिए अत्याधुनिक युद्धपोत, पनडुब्बी, द्रोण एवं चौथी-पांचवीं पीढ़ी के विमानों का भारी जखीरा इकट्ठा कर लिया है। जे-10, जे-17 और जे-35 विमान और पी-15 एवं पी-17 एयर टू एयर मिसाइलों की गुणवत्ता में भी किसी को शंका नहीं रही। घातक मिसाइलों के निर्माण में चीन बहुत समय पहले ही रूस को पीछे छोड़कर अब अमेरिका से बराबरी की प्रतिस्पर्धा कर रहा है। पाकिस्तान भी अपने शार्ट एवं लोंग रेंज बैलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण एवं परीक्षण में लगातार लगा हुआ है। परमाणु बम चीन और पाकिस्तान दोनों के ही पास हैं। भारत की चिंता तब और बढ़ गई है जब पहलगाम हत्याकांड के बाद भारत पाकिस्तान के बीच हुए सीमित युद्ध में चीन ने पाकिस्तान को अपने उपग्रह एवं सर्विलांस उपकरणों के माध्यम से सटीक सैन्य जानकारियां उपलब्ध कराई जिसके कारण कथित तौर पर भारत के कुछ विमानों को क्षति पहुंची। इस युद्ध के समाप्त होते होते चीन ने यह आधिकारिक वक्तव्य देकर कि ‘चीन पाकिस्तान की अखंडता एवं सार्वभौमिकता की रक्षा के लिए उसके साथ खड़ा रहेगा’ दुनिया के सामने एवं भारत के सामने एक स्पष्ट संदेश रख दिया है जिसके अपने गंभीर निहितार्थ हैं। अब सवाल यह उठता है कि भारत के पास इस दोतरफा खतरे से निबटने की क्या योजना है? और योजना है भी या हम ‘कुछ नहीं होगा, कोई नहीं आयेगा’ वाली मानसिकता में ही जी रहे हैं? भारत को जो सबसे बड़ा खतरा इस संभावित गठजोड़ से बना हुआ है वह वायुक्षेत्र में है। इस चिंता को हमारे वर्तमान और पूर्व वायुसेना प्रमुख भी अनेक मौकों पर इंगित कर चुके हैं। चीन की वायुसेना इस समय विश्व में नंबर दो पर है और जेम्स डिफेंस वीकली की ताजा रिपोर्ट के अनुसार जब पाकिस्तान को चीन से 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान मिलने आरंभ हो जाएंगे तो वह अमेरिका, रूस, चीन और ब्रिटेन के बाद विश्व की 5वीं वायु शक्ति बन जाएगा। अभी के हालातों में भी अपने एफ-16, जे-10, जे-17 जैसे शक्तिशाली युद्धक विमानों के साथ वह जमीन पर भारतीय वायुसेना के मुकाबले कुछ अधिक या बराबरी की शक्ति है। चीन के ढाई हजार युद्धक विमानों के मुकाबले भारत के पास लगभग चार सौ सक्रिय विमान ही हैं जिनमें से दो सौ अस्सी एसयू-30, 36 राफेल और 36 तेजस विमानों के अलावा बाकी सब रिटायरमेंट के मुहाने पर खड़े हैं। इसके साथ ही चीन की 26 लाख आर्मी के मुकाबले भारत के पास 6 लाख नियमित फील्ड आर्मी और तीन लाख रिजर्व सेना है। अब अग्निवीर योजना के कारण इसमें भी प्रतिवर्ष कमी हो रही है। हां युद्धक हेलीकॉप्टर, टैंक, तोप, आर्मर्ड व्हीकल आदि के मामले में भारत चीन को पहाड़ी क्षेत्र में बराबरी की और कहीं-कहीं बढ़कर टक्कर देने की क्षमता रखता है। नौसेना में भी भारत अत्याधुनिक युद्धपोत, पनडुब्बी, विमानवाहक पोत आदि निरंतर अपने बेड़े में शामिल करते हुए चीन और पाकिस्तान को संयुक्त रूप से आंखें दिखाने की स्थिति में आ चुका है।
इस सबके बावजूद भारत को दो मोर्चों पर एक साथ सफलतापूर्वक लड़ने के लिए अभी बहुत ज्यादा तैयारियों के साथ आगे जाना होगा। सबसे पहले यह जरूरी है कि भारत अपने युद्धक विमान बेड़े को 32 स्क्वाड्रन से बढ़ाकर 60 स्क्वाड्रन करे। इसके लिए न केवल निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए तेजस और एमआरसीए का निर्माण तेजी से करना होगा, अपितु बड़ी संख्या में विदेशी अत्याधुनिक विमानों की खरीद सुनिश्चित करनी होगी। भारत को हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में अपनी समुद्री सीमाओं की पूर्ण सुरक्षा के लिए चार विमानवाहक पोत चाहिए जिसमें से अभी दो उपलब्ध हैं। दो के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना होगा। परमाणु चलित पनडुब्बियों के निर्माण और आयात पर भी गंभीरता से काम करना होगा।
भारत को चीन के सुदूर पूर्व, दक्षिण और उत्तर के हिस्से को निशाना पहुंचाने के लिए अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि 6 या सूर्य मिसाइल का परीक्षण एवं निर्माण आरंभ कर देना चाहिए। भारत को अपना डीप पेनिट्रेशन राडार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम को ठीक रखना होगा। हाल के भारत-पाक युद्ध में इसकी कमी देखने में आई जब इस कमी के चलते सात, आठ और नौ मई को तीन दिन तक हमारे विमानों को मजबूरन ग्राउंडेड रखना पड़ा। हमें चीनी पी-17 के मुकाबले के लिए 400 किमी से ज्यादा रेंज की बीवीआर (बियोंड विजुअल रेंज) मिसाइलों की भी आवश्यकता है। भारत में द्विमोर्चा युद्ध की जो चर्चा अभी केवल वैचारिक स्तर पर ही होती रही है वह अब हकीकत में हमारे सामने खड़ी है और हमें इससे निबटने के लिए दृढ़ता से, गंभीरता से और विद्वत्ता से कार्य करना होगा। खाली भाषणों से और कागज पर योजनाएं बनाने से अब कुछ नहीं होगा।
1962 में चीन से और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद से दक्षिण एशिया के इस भूभाग में एक प्रकार की स्थिरता और शांति आ गई थी और भारत, पाकिस्तान तथा चीन अपने अपने देश की आंतरिक स्थिति एवं आर्थिक व्यवस्था को सुधारने की तरफ ध्यान देने लगे थे। सीमाओं पर यथास्थिति थी तथा हथियारों की होड़ तो थी, लेकिन वह सीमित दायरे में थी। यह स्थिति 1971 तक चली जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश में तथा पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई की और पूर्वी पाकिस्तान को तोड़कर पृथक बांग्लादेश का निर्माण करवाया। इस कदम ने पाकिस्तान तथा चीन को भारत की सैन्य मंशा के बारे में शंकित कर दिया जिसके कारण दोनों देश रणनीतिक विषयों पर एक साथ रहने लगे। इसी क्रम में चीन ने पाकिस्तान को आधुनिक सैन्य हथियार देने प्रारंभ किए। इससे पूर्व पाकिस्तान केवल अमेरिकी हथियारों पर ही निर्भर था। चीन अपने रोड एंड बिल्ट कार्यक्रम के तहत पाकिस्तान में सड़कों का जाल बिछाने लगा तथा वहां एक सैन्य बंदरगाह का विकास भी उसने किया। इन सब कार्यों की वजह से स्वाभाविक रूप से भारत को चिंता होने लगी थी और इस खतरे से निपटने के लिए उसने अपनी रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने का कार्य तेज किया। 36 राफेल विमान तथा एस-400 हवाई रक्षा प्रणाली की खरीद और तेजस उत्पादन एवं पांचवीं पीढ़ी के एमआरसीए स्टेल्थ विमान का विकास इसी सतर्कता का परिणाम थे। उधर चीन नित्य अपने अत्याधुनिक हथियारों के शोध, परीक्षण एवं निर्माण कार्यों में विपुल धनराशि व्यय कर रहा है और भारत के चारों तरफ के पड़ोसी देशों से सैन्य एवं आर्थिक समझौते करके भारत को घेरने में लगा है। पाकिस्तान ने चीन तथा तुर्की की मदद से अपने नेवल एवं वायु सीमा की रक्षा के लिए अत्याधुनिक युद्धपोत, पनडुब्बी, द्रोण एवं चौथी-पांचवीं पीढ़ी के विमानों का भारी जखीरा इकट्ठा कर लिया है। जे-10, जे-17 और जे-35 विमान और पी-15 एवं पी-17 एयर टू एयर मिसाइलों की गुणवत्ता में भी किसी को शंका नहीं रही। घातक मिसाइलों के निर्माण में चीन बहुत समय पहले ही रूस को पीछे छोड़कर अब अमेरिका से बराबरी की प्रतिस्पर्धा कर रहा है। पाकिस्तान भी अपने शार्ट एवं लोंग रेंज बैलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण एवं परीक्षण में लगातार लगा हुआ है। परमाणु बम चीन और पाकिस्तान दोनों के ही पास हैं। भारत की चिंता तब और बढ़ गई है जब पहलगाम हत्याकांड के बाद भारत पाकिस्तान के बीच हुए सीमित युद्ध में चीन ने पाकिस्तान को अपने उपग्रह एवं सर्विलांस उपकरणों के माध्यम से सटीक सैन्य जानकारियां उपलब्ध कराई जिसके कारण कथित तौर पर भारत के कुछ विमानों को क्षति पहुंची। इस युद्ध के समाप्त होते होते चीन ने यह आधिकारिक वक्तव्य देकर कि ‘चीन पाकिस्तान की अखंडता एवं सार्वभौमिकता की रक्षा के लिए उसके साथ खड़ा रहेगा’ दुनिया के सामने एवं भारत के सामने एक स्पष्ट संदेश रख दिया है जिसके अपने गंभीर निहितार्थ हैं। अब सवाल यह उठता है कि भारत के पास इस दोतरफा खतरे से निबटने की क्या योजना है? और योजना है भी या हम ‘कुछ नहीं होगा, कोई नहीं आयेगा’ वाली मानसिकता में ही जी रहे हैं? भारत को जो सबसे बड़ा खतरा इस संभावित गठजोड़ से बना हुआ है वह वायुक्षेत्र में है। इस चिंता को हमारे वर्तमान और पूर्व वायुसेना प्रमुख भी अनेक मौकों पर इंगित कर चुके हैं। चीन की वायुसेना इस समय विश्व में नंबर दो पर है और जेम्स डिफेंस वीकली की ताजा रिपोर्ट के अनुसार जब पाकिस्तान को चीन से 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान मिलने आरंभ हो जाएंगे तो वह अमेरिका, रूस, चीन और ब्रिटेन के बाद विश्व की 5वीं वायु शक्ति बन जाएगा। अभी के हालातों में भी अपने एफ-16, जे-10, जे-17 जैसे शक्तिशाली युद्धक विमानों के साथ वह जमीन पर भारतीय वायुसेना के मुकाबले कुछ अधिक या बराबरी की शक्ति है। चीन के ढाई हजार युद्धक विमानों के मुकाबले भारत के पास लगभग चार सौ सक्रिय विमान ही हैं जिनमें से दो सौ अस्सी एसयू-30, 36 राफेल और 36 तेजस विमानों के अलावा बाकी सब रिटायरमेंट के मुहाने पर खड़े हैं। इसके साथ ही चीन की 26 लाख आर्मी के मुकाबले भारत के पास 6 लाख नियमित फील्ड आर्मी और तीन लाख रिजर्व सेना है। अब अग्निवीर योजना के कारण इसमें भी प्रतिवर्ष कमी हो रही है। हां युद्धक हेलीकॉप्टर, टैंक, तोप, आर्मर्ड व्हीकल आदि के मामले में भारत चीन को पहाड़ी क्षेत्र में बराबरी की और कहीं-कहीं बढ़कर टक्कर देने की क्षमता रखता है। नौसेना में भी भारत अत्याधुनिक युद्धपोत, पनडुब्बी, विमानवाहक पोत आदि निरंतर अपने बेड़े में शामिल करते हुए चीन और पाकिस्तान को संयुक्त रूप से आंखें दिखाने की स्थिति में आ चुका है।
इस सबके बावजूद भारत को दो मोर्चों पर एक साथ सफलतापूर्वक लड़ने के लिए अभी बहुत ज्यादा तैयारियों के साथ आगे जाना होगा। सबसे पहले यह जरूरी है कि भारत अपने युद्धक विमान बेड़े को 32 स्क्वाड्रन से बढ़ाकर 60 स्क्वाड्रन करे। इसके लिए न केवल निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए तेजस और एमआरसीए का निर्माण तेजी से करना होगा, अपितु बड़ी संख्या में विदेशी अत्याधुनिक विमानों की खरीद सुनिश्चित करनी होगी। भारत को हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में अपनी समुद्री सीमाओं की पूर्ण सुरक्षा के लिए चार विमानवाहक पोत चाहिए जिसमें से अभी दो उपलब्ध हैं। दो के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना होगा। परमाणु चलित पनडुब्बियों के निर्माण और आयात पर भी गंभीरता से काम करना होगा।
भारत को चीन के सुदूर पूर्व, दक्षिण और उत्तर के हिस्से को निशाना पहुंचाने के लिए अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि 6 या सूर्य मिसाइल का परीक्षण एवं निर्माण आरंभ कर देना चाहिए। भारत को अपना डीप पेनिट्रेशन राडार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम को ठीक रखना होगा। हाल के भारत-पाक युद्ध में इसकी कमी देखने में आई जब इस कमी के चलते सात, आठ और नौ मई को तीन दिन तक हमारे विमानों को मजबूरन ग्राउंडेड रखना पड़ा। हमें चीनी पी-17 के मुकाबले के लिए 400 किमी से ज्यादा रेंज की बीवीआर (बियोंड विजुअल रेंज) मिसाइलों की भी आवश्यकता है। भारत में द्विमोर्चा युद्ध की जो चर्चा अभी केवल वैचारिक स्तर पर ही होती रही है वह अब हकीकत में हमारे सामने खड़ी है और हमें इससे निबटने के लिए दृढ़ता से, गंभीरता से और विद्वत्ता से कार्य करना होगा। खाली भाषणों से और कागज पर योजनाएं बनाने से अब कुछ नहीं होगा।