विराट कोहली का टेस्ट क्रिकेट से संन्यास न केवल भारतीय क्रिकेट के एक युग के अंत का प्रतीक है, बल्कि यह उस विरासत का भी समापन है, जो पांच दिवसीय खेल के प्रति जुनून और निष्ठा की मिसाल बनी। जब दुनिया की नजरें छोटे फॉर्मेट की चकाचौंध पर केंद्रित थीं, तब विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को जीवित रखने के लिए अपनी आक्रामक शैली और अडिग समर्पण के साथ एक मोर्चा संभाला। छत्तीस वर्षीय कोहली ने पिछले साल ही टी-20 अंतर्राष्ट्रीय से संन्यास ले लिया था। अब वह सिर्फ एक दिवसीय क्रिकेट खेलेंगे। 36 वर्षीय कोहली ने 123 टेस्ट में 9,230 रन बनाए, जिनमें 30 शतक शामिल हैं। वहीं दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने सात दोहरे शतकों के साथ इस प्रारूप के दिग्गज के रूप में अपनी पहचान बनाई, जो किसी भारतीय खिलाड़ी के लिए सबसे अधिक है। वह महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर (4), सचिन तेंदुलकर (6), वीरेंद्र सहवाग (6) और राहुल द्रविड़ (5) से काफी आगे हैं। एक समय जब दर्शकों की रुचि टी-20 की तेज रफ्तार की ओर बढ़ रही थी, विराट ने सफेद जर्सी में एक नई जान फूंकी। उनके कवर ड्राइव, उनकी आक्रामक कप्तानी और मैदान पर उनका जुनून एक पूरी पीढ़ी को टेस्ट क्रिकेट की ओर वापस खींच लाया।
2011 में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करने वाले विराट ने भारत को टेस्ट रैंकिंग में शिखर पर पहुंचाया और 2018–19 में ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक श्रृंखला में जीत भी दिलाई। क्रिकेट के पारंपरिक स्वरूप में यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रही। कोहली का यह फैसला कि वह अब केवल वनडे प्रारूप में खेलेंगे, भले ही व्यक्तिगत रूप से सही हो, लेकिन भारतीय क्रिकेट के लिए एक खालीपन छोड़ गया है। हाल में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उनके औसत प्रदर्शन और मानसिक थकान के संकेतों ने इस संन्यास की भूमिका पहले ही बना दी थी। लेकिन इसके बावजूद, उनके बल्ले की चमक और मैदान पर उनकी उपस्थिति अब भी भीड़ को खींचने में सक्षम थी। कोहली का टेस्ट क्रिकेट से मोह महज़ प्रदर्शन तक सीमित नहीं था, वह इसे खेल की आत्मा मानते थे। उन्होंने खुद लिखा, “सफेद कपड़ों में खेलना एक व्यक्तिगत अनुभव है।” यह भावना ही उन्हें बाकी समकालीनों से अलग करती है।
उनका यह संन्यास ऐसे समय पर आया है जब रविचंद्रन अश्विन और रोहित शर्मा जैसे वरिष्ठ खिलाड़ी भी टेस्ट क्रिकेट से विदा ले चुके हैं। इसका अर्थ यह है कि भारत अब टेस्ट क्रिकेट के उस अनुभवी और भावनात्मक स्तंभ से वंचित हो गया है जो न केवल रन बनाता था, बल्कि एक दिशा देता था। विराट की तुलना अक्सर सर विव रिचर्ड्स से की जाती रही है—आक्रामकता, शैली और आत्मविश्वास के मामले में। लेकिन उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में अपने आचरण में संयम और परिपक्वता लाई, जिसने उन्हें और अधिक सम्माननीय बनाया। अपने सीनियर खिलाड़ियों के लिए गोल-मटोल ‘चीकू’ से जूनियर खिलाड़ियों के ‘भैया’ तक ‘किंग कोहली’ ने लंबा सफर तय किया है और अपने करियर में काफी उतार-चढ़ाव भी देखे।
2006 में अठारह बरस के कोहली ने अपने पिता प्रेम कोहली के निधन की खबर सुनकर भी 90 रन बनाकर दिल्ली को फॉलोऑन से बचाया और फिरोज शाह कोटला स्टेडियम से सीधे श्मशान घाट जाकर उनकी अंतिम संस्कार की। हम कह सकते हैं कि कोहली का करियर संकल्प, संघर्ष और सफलता की मिसाल रहा है। जहां जो रूट और स्टीव स्मिथ जैसे समकालीन खिलाड़ी 10,000 से ज्यादा रन बना चुके हैं, वहीं कोहली 770 रन से इस आंकड़े से चूक गए। लेकिन क्रिकेट केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, यह उस जुनून, उस ऊर्जा और उस प्रेरणा का नाम है जिसे कोहली ने मैदान पर जिया।अब जब वह केवल वनडे में नजर आएंगे, टेस्ट क्रिकेट एक ऐसे नायक को खो चुका है जिसकी जगह शायद लंबे समय तक कोई नहीं भर पाएगा। कोहली टी-20 के इस युग में टेस्ट क्रिकेट के अंतिम सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। उनकी विदाई के साथ ही एक स्वर्णिम युग का अंत हो गया है। भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने ठीक ही कहा, उनकी विरासत हमेशा कायम रहेगी। और यह विरासत सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि उस जुनून में जिंदा रहेगी, जो उन्होंने हर बार सफेद जर्सी पहनकर मैदान में उतारा। टेस्ट क्रिकेट को कोहली की कमी हमेशा खलेगी, क्योंकि उन्होंने खेल को सिर्फ खेल नहीं, एक इम्तिहान समझा