अक्षय पुण्यफल की कामना के लिए प्रत्येक वर्ष मनाए जानेवाला पर्व अक्षय तृतीया वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन हर्षोल्ïलास के साथ मनाने की धार्मिक  परंपरा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया से ही त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। इस दिन भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु के अंश के रूप में अवतरित हुए थे, जिसके फलस्वरूप भगवान परशुराम जयंती मनाने की पौराणिक परंपरा है। इस बार वृहस्पति व चंद्रमा के संयोग से गजकेशरी योग बन रहा है, जो कि पूजा-अर्चना के लिए विशेष फलदायी है। प्रख्यात् ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि अक्षय पुण्यफल की कामना के संग मनाए जाने वाला पर्व अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाया जाएगा। वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि 29 अप्रैल, मंगलवार को सायं 5 बजकर 32 मिनट पर लगी जो कि अगले दिन 30 अप्रैल, बुधवार को दिन में 2 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। इस बार रोहिणी नक्षत्र 29 अप्रैल, मंगलवार को सायं 6 बजकर 47 मिनट से 30 अप्रैल, बुधवार को दिन में 4 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही इस बार शोभन योग 29 अप्रैल, मंगलवार को दिन में 3 बजकर 54 मिनट से 30 अप्रैल, बुधवार को दिन में 12 बजकर 02 मिनट तक रहेगा। फलस्वरूप 30 अप्रैल, बुधवार को तृतीया तिथि में रोहिणी नक्षत्र एवं शोभन योग का अनूठा संयोग बन रहा है, जो कि पूजा-अर्चना के लिए विशेष पुण्यदायी है। इस दिन भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की प्रसन्नता के लिए व्रत एवं उपवास रखकर यह पर्व मनाने का विधान है। 'अक्षय' का वास्तविक अर्थ है, जिसका कभी क्षय न होता हो। इस तिथि के दिन जो कुछ भी किया जाता है, उसका प्रभाव अक्षय हो जाता है। किस देवता की करें पूजा : इस दिन भगवान श्री विष्णु, लक्ष्मीजी तथा कृष्णजी की पंचोपचार या दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करने का विधान है। शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव और माता पार्वती जी की मालती, मल्लिका, जवा, चम्पा एवं कमल के पुष्पों से पूजा-अर्चना करने पर मनुष्य के कोटि-कोटि जन्म के तन-मन-वचन से किए गए महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। विमल जैन के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्रीपरशुराम को ककड़ी, हयग्रीवजी को चने की भीगी दाल, नर-नारायणजी को भुने हुए सत्तू से निर्मित नैवेद्य  अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। 

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