वर्षों से यूक्रेन रूस के आक्रमण का विरोध करने के लिए अमरीकी समर्थन पर निर्भर रहा है। पिछले प्रशासनों के तहत इस सहायता को लोकतंत्र की रक्षा के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में तैयार किया गया था। अब कीव एक ऐसे प्रशासन का सामना कर रहा है जो यूक्रेन की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की तुलना में आर्थिक लाभ हासिल करने में अधिक रुचि रखता है। यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की द्वारा इन शर्तों को स्वीकार करने से इनकार करने पर व्हाइट हाउस की हताशा कीव पर बढ़ते दबाव को दर्शाती है। संदेश स्पष्ट है, यूक्रेन को इसका पालन करना चाहिए या फिर उसे छोड़ दिए जाने का जोखिम उठाना चाहिए। इस नीतिगत बदलाव का सबसे खतरनाक संकेत यूक्रेन को अमरीका-रूस की प्रमुख वार्ताओं से बाहर रखना है। ट्रंप द्वारा जेलेंस्की पर व्यक्तिगत हमले, उन्हें 'चुनावों के बगैर तानाशाह' कहना और युद्ध के आगे बढ़ने के लिए उन्हें दोषी ठहराना जटिलता की एक और परत जोड़ता है। वैश्विक सुरक्षा संघर्ष में भागीदार बनाने के बजाय यूक्रेन को सहायता के कृतघ्न प्राप्तकर्ता के रूप में चित्रित करके ट्रंप ने एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव की नींव रख दी है। किसी व्यापारिक सौदे की तरह यूक्रेन को अपने प्राकृतिक संसाधनों से पिछली सैन्य सहायता का भुगतान करने के लिए कहना अभूतपूर्व है। सहयोगियों के बीच आर्थिक सौदे यूं तो आम होते हैं, लेकिन अस्तित्व के युद्ध के बीच में महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच के लिए सैन्य सहायता को जोड़ना नैतिक और भू-राजनीतिक दोनों तरह की चिंताएं खड़ी करता है। यूक्रेन के लिए 'इधर कुआं, उधर खाई' वाली स्थिति हो चली है। यदि वह अमरीकी मांगों के आगे झुकता है तो यह दबाव में मूल्यवान संपत्ति सौंप कर अपनी संप्रभुता को कमजोर करने का जोखिम उठाना है। अगर वह विरोध करता है तो उसे सैन्य सहायता में नाटकीय कमी देखने को मिल सकती है, जिससे वह खतरनाक रूप से असुरक्षित हो जाएगा। फिलहाल फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पोलैंड जैसे देशों ने एकता दिखाने के लिए भले ही जेलेंस्की का समर्थन किया है, पर जैसे-जैसे हकीकत सामने आएगी, भावावेश का उफान कम होता जाएगा। नाटो पिछले 75 साल से अमरीका के दम पर ही सोवियत और रूसी चुनौती का सामना कर पाया है। रूस की परमाणु शक्ति की काट केवल अमरीका के ही पास है। तथ्य यही है कि आज भी यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता में 47 प्रतिशत हिस्सा अमरीका का है। 24 फरवरी 2022 को रूस द्वारा यूक्रेन पर पूर्व नियोजित आक्रमण शुरू करने के बाद से अमरीका अब तक 65.9 अरब अमरीकी डॉलर की सैन्य सहायता प्रदान कर चुका है। यूरोप के देश पैसा और हथियार देकर यूक्रेन की आत्मरक्षा की लड़ाई जारी रखने में मदद तो कर सकते हैं, पर रूस को हरा कर यूक्रेन के उस 20 प्रतिशत भाग से वापस नहीं खदेड़ सकते, जिस पर रूस ने कब्जा कर लिया है। दीर्घकालिक साझेदारी पर आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देकर वाशिंगटन यह संदेश दे रहा है कि युद्धकालीन गठबंधन भी कीमत के साथ आते हैं। अमरीका और यूक्रेन के बीच खनिज सौदे को अंतिम रूप देने में विफलता बढ़ती दरार को और रेखांकित करती है। इस तरह के समझौते से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती थी और दीर्घकालिक अमरीकी निवेश सुरक्षित हो सकता था। इसके बजाय, ट्रंप का इस सौदे से दूर जाने का निर्णय व्यापक अलगाव को दर्शाता है, जो यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य रूप से कमजोर कर सकता है। अगर यूक्रेन को युद्ध की कीमत असहनीय लग रही है, तो अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 500 बिलियन डॉलर की 'वापसी' की मांग चेतावनी देती है कि शांति की कीमत भी कम नहीं हो सकती। यूरोपीय विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का मसौदा अनुबंध यूक्रेन को आने वाले वर्षों के लिए एक अमरीकी आर्थिक उपनिवेश में बदल देगा। अमरीका शेष दुनिया के लिए इस मौके को एक उदाहरण बनाना चाहता है। यूक्रेन और दुनिया के लिए इस नई वास्तविकता के निहितार्थ बहुत गहरे हैं। प्रत्येक लड़ाई का अपना संदर्भ होता है जिसमें अलग-अलग परिस्थितियां, भूगोल और सेनाएं शामिल होती हैं। रूस पूरे यूक्रेन को नहीं जीत सकता और यूक्रेन रूसी सेनाओं को व्यापक रूप से बाहर नहीं कर सकता। प्रत्येक पक्ष को न्यूनतम आश्वासन की भी आवश्यकता होती है। यूक्रेन को इस बात की गारंटी चाहिए कि रूस उसे मानचित्र से मिटाने की कोशिश नहीं करेगा। यूक्रेन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मान्यता प्राप्त संप्रभु देश है। रूसी राष्ट्रपति द्वारा पेश किए गए कपटपूर्ण झूठे बहानों के बावजूद, यह पश्चिम की ओर यूक्रेन का झुकाव है, जिसने उनके युद्ध को प्रेरित किया है, जो वास्तविक रूसी हितों को प्रभावित करता है। नाटो सदस्यता के बारे में बहस से एक बड़े सच के धुंधला होने का खतरा है। यूक्रेन की सुरक्षा पश्चिम के साथ और पश्चिम में निहित है, और जब तक यूक्रेन इसका हिस्सा नहीं बनता तब तक संघर्ष समाप्त नहीं हो सकता। सवाल यह नहीं है कि क्या यूक्रेन को पश्चिम का हिस्सा बनना चाहिए, बल्कि सवाल यह है कि कैसे और कब। इसलिए दोनों देशों को समाधान की जरूरत है, अंतहीन युद्ध की नहीं। भले ही यूक्रेन रूस के सैन्य बलों को 1991 की सीमाओं पर वापस धकेलने में सफल हो जाए, फिर भी संघर्ष वास्तव में समाप्त नहीं होगा। यूक्रेनी खुफिया अधिकारियों का अनुमान है कि अगर इस साल लड़ाई रुक भी जाती है, तो रूस आर्थिक प्रतिबंध लागू रहने के बावजूद 2027-2028 तक युद्ध को फिर से शुरू करने के लिए पर्याप्त क्षमताओं का पुनर्गठन करने में सक्षम हो जाएगा। इसलिए, वास्तव में संघर्ष को समाप्त करने के लिए रूस को यह समझना होगा या समझाना होगा कि यूक्रेन का भविष्य मास्को में नहीं, बल्कि कीव में तय किया जाएगा। पुतिन ने जब युद्ध शुरू किया था, तब यह युद्ध उनके लिए अस्तित्वगत नहीं था, लेकिन अब है। क्योंकि तीन साल बाद भी यूक्रेन को पराजित न कर पाने से उनकी वैश्विक धाक को धक्का पहुंचा है। पुतिन इतनी आसानी से इस युद्ध से अलग नहीं होंगे, वे यूक्रेन से इतना कुछ तो लेंगे ही, जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके विश्व की दूसरी महाशक्ति होने की ठसक बरकरार रहे।
अमरीका से किनारा नहीं कर सकता यूक्रेन
