हिंदू धर्म में होलाष्टक को अनुकूल समय नहीं माना जाता है। इस अवधि में शुभ और मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि करने से मना किया जाता है। आइए जानते हैं कि होलाष्टक कब समाप्त होगा, इसकी परंपरा क्या है और इस दौरान क्या गतिविधियां होती हैं। होली से पूर्व 7 मार्च, शुक्रवार से होलाष्टक की शुरुआत हो चुकी है जो 13 को होलिका दहन के साथ समाप्त होगी। होलाष्टक का समय अशुभ माना जाता है और इस अवधि में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है। इस दौरान शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश व अन्य मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे। होलाष्टक के दौरान चौराहों पर स्थापित होलिका को बढ़ाने और सजाने का कार्य तेज हो जाएगा।

होलाष्टक की पौराणिक मान्यता : शिव पुराण में कथा के अनुसार तारकासुर राक्षस का वध करने के लिए भगवान् शिव और माता पार्वती का विवाह होना जरुरी था क्योंकि, उस असुर का वध शिव पुत्र के हाथों ही होना था। लेकिन देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान् शिव गहन तपस्या में लीन थे। देवताओं ने भगवान् शिव को तपस्या से जगाने के लिए कामदेव और देवी रति को जिम्मेदारी सौंपी। कामदेव और रति ने भगवान् शिव की तपस्या को भंग कर दिया, जिससे शिवजी बेहद क्रोधित हो गए और अपने तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। जिस दिन भगवान शिव से कामदेव को भस्म किया उस दिन फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि थी। भगवान् शिव के कोप से भयभीत होकर सभी देवताओं ने क्षमा याचना की। भगवान शिव को मनाने में सभी को आठ दिन लग गया। क्रोध शांत होने के इसके बाद शिवजी ने कामदेव को जीवित होने का आशीर्वाद दिया। इस वजह से इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है। श्री स्वामी नरोत्तमानन्द गिरि वेद विद्यालय के सामवेदाचार्य ब्रजमोहन पांडेय ने बताया होलाष्टक की आठ रात्रियों का काफी अधिक महत्व है। इन आठ रात्रियों में की गई साधनाएं जल्दी सफल होती हैं। इन रातों में तंत्र-मंत्र से जुड़े लोग विशेष साधनाएं करते हैं। ज्योतिषीय एवं वैदिकीय मान्यता है कि होलाष्टक के आठ दिनों की अलग-अलग तिथियों पर अलग-अलग ग्रह उग्र स्थिति में रहते हैं।