पिछले एक-दो दशकों में दुनियाभर में कई प्रकार की बीमारियों के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर जैसी बीमारियों की चर्चा तो हम सभी अक्सर करते रहते हैं पर क्या आप पार्किंसंस रोग के बारे में जानते हैं? पिछले 10-15 साल के आंकड़े उठाकर देखें तो पता चलता है कि ये बीमारी वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में लोगों को अपना शिकार बनाती जा रही है। तंत्रिका तंत्र में समस्या वाली ये बीमारी आपके क्वालिटी ऑफ लाइफ को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली हो सकती है। पार्किंसंस रोग में शरीर के अंगों विशेषकर हाथ-पैर में कंपन होते रहना बहुत आम है, ये दिक्कत लगातार बनी रहती है जिसके कारण रोजमर्रा के सामान्य काम काज में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है। हाल ही में वैज्ञानिकों की टीम ने एक अध्ययन में इस रोग के बढ़ते जोखिमों को लेकर सभी लोगों को अलर्ट किया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि जिस गति से ये बीमारी बढ़ती जा रही है, ऐसे में आशंका है कि अगले 25 वर्षों में यानी कि साल 2050 तक दुनियाभर में ढाई करोड़ से अधिक लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। चीन स्थित कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी सहित कुछ अन्य शोधकर्ताओं ने हाल ही में चिंता जताई है कि साल 2021 की तुलना में 2050 में पार्किंसन रोगियों की संख्या में 112 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इसके कारण साल 2050 तक ढाई करोड़ से अधिक लोगों के इस रोग की चपेट में आने का डर है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है इस रोग का खतरा भी बढ़ता जाता है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि अकेले दक्षिण एशिया में दो दशकों में अनुमानित रोगियों की संख्या 68 लाख हो सकती है। पार्किंसंस रोग भारत में भी बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करती है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति एक लाख लोगों में इसके 15 से 43 मरीज हो सकते हैं। मेडिकल रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पुरुषों में इस बीमारी का जोखिम महिलाओं की तुलना में अधिक देखा जाता रहा है। पुरुषों और महिलाओं में पार्किंसन अनुपात 2021 में 1.46 था, जो 2050 तक 1.64 हो सकता है। आमतौर पर, यह 50 वर्ष या उससे अधिक उम्र में शुरू होता है। कुछ मामलों में देखा गया है कि पार्किंसंस रोग कम उम्र के वयस्कों में भी हो रहा है, लेकिन ऐसे मामले अब भी दुर्लभ हैं। जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को ये बीमारी रही हो उनमें आनुवांशिक तौर पर भी इसका जोखिम अधिक हो सकता है। इसके अलावा अगर आप ऐसे काम करते हैं जिनमें विषाक्त पदार्थों, कीटनाशकों और रसायनों के लगातार संपर्क में रहना होता है तो इसके कारण भी पार्किंसंस रोग का जोखिम बढ़ सकता है। पार्किंसंस रोग के लक्षण हर किसी में अलग-अलग हो सकते हैं। शुरुआती लक्षण हल्के हो सकते हैं, और हो सकता है कि आपको उन पर ध्यान भी न जाए। इसमें कंपन होते रहना बहुत आम है और ये आमतौर पर हाथों या उंगलियों में शुरू होता है। कभी-कभी ये पैर या जबड़े में भी हो सकता है। इतना ही नहीं जब आप आराम कर रहे हों तब भी आपका हाथ हिलता रह सकता है। इसके अलावा कुछ लोगों को बोलने में भी दिक्कत होने लगती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, पार्किंसंस रोग को ठीक नहीं किया जा सकता है, इसका कोई विशिष्ट उपचार भी नहीं है। कुछ दवाएं लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं। कुछ लोगों को सर्जरी करवानी पड़ सकती है। जीवनशैली में कुछ बदलाव आपके पार्किंसंस रोग के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं। फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ खाने और खूब सारे तरल पदार्थ पीने से कब्ज को रोकने में मदद मिल सकती है, जोकि इस रोग में होने वाली एक आम समस्या है। इसके अलावा व्यायाम करने से आपकी मांसपेशियों की ताकत, चलने की क्षमता, लचीलापन और संतुलन बेहतर हो सकता है।