सनातन धर्म में धार्मिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक के 8 दिनों में समस्त मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है, जबकि धार्मिक अनुष्ठान यथावता चलते रहते हैं। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार होली से 8 दिन पहले का समय होलाष्टक कहलाता है। इस बार होलाष्टक की शुरुआत 7 मार्च, शुक्रवार से 14 मार्च, शुक्रवार तक रहेगा। इस बार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि 6 मार्च, गुरुवार को दिन में 10 बजकर 52 मिनट से 7 मार्च, शुक्रवार को प्रात: 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। इस दिन प्रीतियोग रहेगा। होलाष्टक शब्द 'होली' और 'अष्टक' दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है होली के आठ दिन। फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूॢणमा तिथि तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। होली से पूर्व 8 दिनों का समय होलाष्टïक के नाम से जाना जाता है। अष्टïमी तिथि के दिन चन्द्रमा, नवमी तिथि के दिन सूर्य, दशमी तिथि के दिन शनि, एकादशी तिथि के दिन शुक्र, द्वादशी तिथि के दिन वृहस्पति, त्रयोदशी तिथि के दिन बुध, चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल तथा पूॢणमा तिथि के दिन राहुग्रह उग्र स्वरूप में माने गए हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ जाती है, जिसके कारण व्यक्ति संकल्प-विकल्प में खोया रहता है। कई बार उसके निर्णय ऐसे भी हो जाते हैं, जो कि अनुकूल नहीं रहते। इस कारण उसे लाभ के स्थान पर हानि की संभावना बढ़ जाती है। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्रमा छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों विशेष सावधानी व सतर्कता रखनी चाहिए। ज्योतिषविद् के अनुसार समस्त मांगलिक कृत्य जैसे—वैवाहिक मुहूर्त, वधू प्रवेश, द्विरागमन, मुण्डन, नामकरण, अन्नप्राशन, देवप्रतिष्ठा, नवगृह निर्माण व प्रवेश, नवप्रतिष्ठारम्भ आदि ये सभी कार्य स्थगित रहते हैं। पौराणिक कथा—प्रहलाद को प्रभुभक्ति से दूर रखने के लिए समस्त उपाय निष्फल हो गए तब हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बंदी बनाकर परलोक भेजने यानि मृत्यु के लिए उपाय करने लगे किन्तु भगवत भक्ति में लीन होने के कारण प्रहलाद हमेशा जीवित बच जाते। इसी प्रकार सात दिन बीत गए आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यपु की विवशता देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में जलाने का सुझाव दिया, जिसे हिरण्यकश्यपु ने स्वीकार कर लिया।
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