भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका है। दशकों से कहा जा रहा कि यदि भारत को आॢथक स्तर पर मजबूत बनाना है तो यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हर हाल में में जरूरी है। यदि कृृषि क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होती है तो हमारी अर्थव्यवस्था में यकायक वृद्धि दर्ज की जाएगी। इसलिए सरकार की जिम्मेवारी है कि वह ऐसी योजनाएं चलाए, जिनसे कृृषि उत्पाद में वृद्धि हो, ग्रामीणों के पास पैसे आएं और उनकी क्रय शक्ति में भी बढ़ोत्तरी हो। आज भारत की अर्थव्यवस्था में जो सुधार दिख रहा है, उनमें ग्रामीण क्षेत्रों में पैसे के आगमन को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जानकार बताते हैं कि साल के आखिर में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने में मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। हालांकि उत्पादन क्षेत्र अब भी विकास से दूर है और कुल मिलाकर जीडीपी में जो बढ़ोतरी दिखी है,वह महामारी के बाद के तीन सालों की तिमाहियों के हिसाब से कम ही है। जीडीपी के आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था साल के आखिर में अपने मानकों पर काफी नरम है। हालांकि नीतियां अब निर्णायक तौर पर ज्यादा समर्थन दे रहे रही हैं और आर्थिक विकास को साल की आखिरी तिमाही में और आगे बढ़ना चाहिए। भारत अब भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है लेकिन उसके सामने भी अनिश्चितताएं हैं। खास तौर से अमरीका और ट्रंप प्रशासन के जवाबी शुल्क लगाने की योजनाओं के सामने आने के बाद से कारोबार को लेकर यह अनिश्चितता और ज्यादा बढ़ी है। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में अक्टूबर-दिसंबर के दौरान विकास की दर उम्मीद से थोड़ा कम थी। विश्लेषकों के साथ किए रॉयटर्स के एक पोल में इसके 6.3 और भारत के केंद्रीय बैंक के अनुमानों में इसे 6.8 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई थी। इससे पहले की तिमाही में अर्थव्यवस्था का विकास 5.6 फीसदी के दर से हुआ था। आर्थिक विकास का मापने का एक पैमाना ग्रोस वैल्यू ए़ेडेड (जीवीए)भी है, इसे ज्यादा स्थायी समझा जाता है। इसके मुताबिक अर्थव्यवस्था का विकास 6.2 फीसदी हुआ,जबकि पिछली तिमाही में संशोधन के बाद यह 5.8 फीसदी था। पूरे साल के लिए विकास दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान सरकार ने लगाया है। यह शुरुआती अनुमान 6.4 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है। हालांकि 2023-24 की संशोधित विकास दर 9.2 फीसदी से यह काफी कम है। पूरे साल के लिए 6.5 फीसदी के विकास दर को हासिल करने के लिए भारत को जनवरी-मार्च के बीच 7.6 फीसदी की दर से विकास करना होगा, इसे हासिल किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की मांग में उछाल भारत के विकास को सहारा देगी। इस बीच शहरी उपभोग भी अपनी पहले वाली स्थिति में आ रहा है। रोजगार की खराब स्थिति और आय में वृद्धि कम होने के कारण शहरी उपभोग कमजोर पड़ गया था। इसके साथ ही खुदरा महंगाई की दर बीते साल के ज्यादातर हिस्से में ऊंची ही रही हैं। जनवरी में महंगाई की दर नीचे आ कर 4.3 फीसदी पर पहुंची। रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि 1 अप्रैल से शुरू हो रहे वित्तीय वर्ष में यह 4.2 फीसदी के औसत पर पहुंच जाएगी। पिछले तीन महीनों में सरकारी खर्च 8.3 फीसदी बढ़ गया जबकि इससे पहले के तीन महीनों में यह महज 3.8 फीसदी बढ़ा था। निजी उपभोक्ताओं का खर्च साल दर साल के हिसाब से 6.9 फीसदी बढ़ा है, इससे पहले की तिमाही में यह 5.9 फीसदी बढ़ा था। त्योहारों के मौसम में लोगों ने पिछले साल के मुकाबले इस बार ज्यादा खरीदारी की। माना जा रहा है कि अक्टूबर-दिसंबर के बीच जीडीपी का विकास, उम्मीदों से थोड़ा बेहतर है। उन्होंने इसके लिए कृषि क्षेत्र में बेहतरी और ग्रामीण मांग में बढ़ोतरी को श्रेय दिया। कृृषि उत्पादन साल दर साल के हिसाब से 5.6 फीसदी बढ़ा जो पिछली तिमाही के 4.1फीसदी से काफी ज्यादा है। हालांकि अर्थव्यवस्था में 17 फीसदी की भागीदारी वाले उत्पादन क्षेत्र का विकास 3.5 फीसदी ही रहा। इससे पहले कि तिमाही में यह 2.2 फीसदी था। अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए भारत के रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की। यह कटौती पिछले पांच सालों में पहला पहली बार हुई थी। महंगाई कम होने के बाद ऐसी और कटौती के आसार हैं। सरकार ने सालाना बजट में आयकरों में भी कुछ छूट का ऐलान किया है, इसे भी उपभोग बढ़ाने वाले कारण के रूप में देखा जा रहा है। अर्थशास्त्री अप्रैल में कम से कम एक और कटौती के आसार देख रहे हैं। A
ग्रामीण अर्थव्यवस्था
